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Bangladesh News:डोलने लगा यूनुस का सिंहासन- अब बांग्लादेश का नाम और संविधान भी बदलेगा?

Bangladesh News: ढाका में सेंट्रल शहीद मीनार पर हजारों छात्रों का हुजूम जुटा. इसी शहीद मीनार से शेख हसीना सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले छात्रों के गुट ने इस

Bangladesh News: बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अब गंभीर संकट का सामना कर रही है। जिस छात्र आंदोलन के सहारे शेख हसीना सरकार को हटाकर यूनुस सत्ता में आए थे, वही आंदोलन अब उनके खिलाफ खड़ा हो गया है। इस बार छात्रों की मांगें न केवल सरकार के लिए चुनौती हैं, बल्कि ये देश के संवैधानिक ढांचे और सामाजिक समरसता के लिए भी खतरा हैं।


छात्र आंदोलन और बढ़ता असंतोष

ढाका के सेंट्रल शहीद मीनार पर हजारों छात्र जमा होकर यूनुस सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। ये नारे कट्टरपंथी विचारधारा और भारत-विरोधी भावनाओं से भरे हुए थे।

  • नारे और भारत-विरोधी एजेंडा:
    • "मेरा भाई कब्र में है, हत्यारा आज़ाद क्यों है?"
    • "दिल्ली या ढाका?"
    • "अन्याय खून की नदियों में डूब जाएगा।"

इन नारों से यह स्पष्ट है कि आंदोलन केवल यूनुस सरकार के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसमें भारत-विरोधी भावनाओं को भी भड़काया जा रहा है। इस संदर्भ में कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी की भूमिका स्पष्ट नजर आती है, जो इस आंदोलन को बैकडोर से समर्थन दे रहा है।


अब्दुल हन्नान: आंदोलन का चेहरा

इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे छात्र नेता अब्दुल हन्नान ने सरकार के "जुलाई क्रांति" के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। यूनुस सरकार द्वारा संविधान और देश का नाम बदलने की योजना को छात्रों ने कट्टरपंथी एजेंडा करार दिया और इसका विरोध किया।

  • जुलाई क्रांति और छात्रों का प्रतिरोध:
    मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव द्वारा "जुलाई क्रांति" की घोषणा के बाद हन्नान ने आपातकालीन बैठक बुलाकर इसका विरोध किया। उनका कहना था कि इतना बड़ा फैसला केवल छात्र ही कर सकते हैं।

कट्टरपंथी एजेंडा और खतरे

छात्र आंदोलन की प्रमुख मांगें बांग्लादेश को कट्टरपंथ की ओर धकेलने का प्रयास हैं:

  1. देश का नाम बदलने की मांग:
    "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश" या "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईस्ट पाकिस्तान" नाम प्रस्तावित हैं। यह पाकिस्तान समर्थित साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है।

  2. शरिया और सुन्नत का कानून:
    कट्टरपंथ को कानूनी मान्यता देने का प्रयास, जिससे अल्पसंख्यकों की स्थिति और खराब हो सकती है।

  3. 1972 के संविधान को खत्म करना:
    छात्रों का कहना है कि 1972 का संविधान भारत समर्थक है। यह विचार बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।


जमात-ए-इस्लामी की भूमिका

जमात-ए-इस्लामी इस आंदोलन को खुलकर समर्थन नहीं दे रहा है, लेकिन बैकडोर से फंडिंग और सोशल मीडिया प्रचार के जरिए इसे हवा दे रहा है। यूनुस, जो पहले जमात के समर्थन से सत्ता में आए थे, अब उनके निशाने पर क्यों हैं, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।


क्या भविष्य में संकट और गहराएगा?

मोहम्मद यूनुस की सरकार कट्टरपंथी संगठनों और छात्रों की दोहरी चुनौती का सामना कर रही है।

  • यदि यूनुस सरकार छात्रों की मांगों के आगे झुकती है, तो देश कट्टरपंथ की ओर बढ़ सकता है।
  • अगर वे इन मांगों को खारिज करते हैं, तो उनकी सरकार गिरने का खतरा बढ़ जाएगा।

इस संकट का समाधान केवल राजनीतिक संवाद और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के जरिए हो सकता है। लेकिन मौजूदा हालात में बांग्लादेश की स्थिरता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है।


निष्कर्ष:
बांग्लादेश में चल रहा यह छात्र आंदोलन केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं है, बल्कि यह देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सरकार को इस चुनौती से निपटने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे, वरना देश एक बार फिर अस्थिरता और कट्टरपंथ की भंवर में फंस सकता है।

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