Uttar Pradesh Politics: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार नजूल भूमि विधेयक 2024 को भले ही विधानसभा से पास कराने में कामयाब रही हो, लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के कड़े विरोध के चलते विधान परिषद में यह लटक गया है. विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मंजूरी दे दी है. इस विधेयक ने सूबे के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है. विधेयक के विरोध में विपक्षी दल की नहीं बल्कि सत्तापक्ष की तरफ से भी आवाज उठी.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायकों के साथ-साथ सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ कदमताल करने वाले विधायक रघुराज प्रताप सिंह भी नजूल भूमि विधेयक विरोध में खड़े नजर आए. यही वजह है कि विधानसभा से पास होने के बाद भी विधान परिषद में जाकर नजूल विधेयक लटक गया. योगी कैबिनेट से बुधवार को नजूल भूमि विधेयक की मंजूरी मिलने के बाद संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में यह बिल पेश किया, जिसके साथ ही विपक्ष ही नहीं बल्कि बीजेपी के कई विधायक भी विरोध में उतर गए.
BJP के कई सहयोगी भी हुए खिलाफ
बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी, सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ सहयोगी निषाद पार्टी और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के विधायक भी विरोध में आ गए. बीजेपी विधायकों के विरोध के बावजूद योगी सरकार नजूल बिल को विधानसभा से पास कराने में कामयाब रही, लेकिन विधान परिषद में पेश होने से पहले सियासी नफा-नुकसान का आकलन कर लिया. इसके चलते ही विधान परिषद में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बिल का विरोध कर दिया और उसे पास नहीं होने दिया.
योगी सरकार के नजूल भूमि संबंधी बिल का सबसे अधिक विरोध प्रयागराज क्षेत्र के बीजेपी विधायकों ने किया है. प्रयागराज के पश्चिमी सीट से बीजेपी विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह हों या फिर शहर उत्तरी सीट के विधायक हर्षवर्धन दोनों ने पुरजोर तरीके से बिल का विरोध किया. इसके अलावा रघुराज प्रताप सिंह भले ही प्रतापगढ़ के कुंडा क्षेत्र से विधायक हों, लेकिन उनका प्रभाव प्रयागराज तक माना जाता है. इसी तरह कांग्रेस विधायक आरधना मिश्रा भी प्रतापगढ़ के रामपुर खास से विधायक हैं, लेकिन वह भी प्रयागराज की सियासत में पूरा दखल रखती हैं.
सवाल उठता है कि प्रयागराज और उससे लगे क्षेत्र के विधायक ही नजूल भूमि बिल पर सबसे ज्यादा मुखर क्यों दिखे. इसे समझने से पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि नजूल की भूमि कौन सी होती है और उसे लेकर बीजेपी के विधायकों को क्यों विरोध करना पड़ा. इतना ही नहीं विधानसभा से पास होने के बाद विधान परिषद में भूपेंद्र चौधरी को प्रवर सामित भेजने की मांग क्यों उठानी पड़ी.
क्या होती है नजूल भूमि
नजूल शब्द अरबी भाषा से लिया गया है. सरकार के पास भी जमीन होती है, जिस जमीन को शासकीय जमीन कहा जाता है. इन शासकीय जमीनों में से एक जमीन नजूल जमीन भी होती है. आजादी से पहले अंग्रेजों के विरुद्ध तमाम भारतीयों ने विद्रोह किया था. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले राजा-रजवाड़े या फिर स्वतंत्रता सेनानी जब युद्ध में परास्त हो जाते थे, तो ब्रिटिश सेना उनसे उनकी जमीनें छीन लेती थी. इन जमीन को अंग्रेजी हुकुमत अपने कब्जे में ले लिया करती थी.
अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ने वाले कई लोग ऐसे थे जो खेती करते थे और उनके पास जमीन होती थी. अंग्रेज उनकी जमीन को राजसात कर लेते थे. ऐसी जमीन को नजूल की जमीन कहा गया.
देश को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों की जमीन से अंग्रेजों का कब्जा छूट गया. स्वतंत्रता के बाद जिन जमीन मालिकों से अंग्रेजों ने जमीन हड़पी थी, वो उनके वारिसों को वापस लौटा दी गई. हालांकि, कई जमीन ऐसी भी थी जिनके वारिस ही नहीं बचे. इसके अलावा बहुत सी ऐसी भी जमीनें थीं जो राजघरानों को दोबारा वापस नहीं दी सकती थी, क्योंकि राजघरानों के पास इन पर अपना स्वामित्व साबित करने के लिए उचित दस्तावेज नहीं थे. यही जमीन नजूल भूमि है. आजादी के बाद ढेरों रियासतों के विलय होने के बाद अलग-अलग राज्यों को नजूल जमीनें सौंप दी गईं.
28 हजार हेक्टेयर से ज्यादा नजूल जमीन
उत्तर प्रदेश में अलग-अलग शहरों में करीब 28 हजार हेक्टेयर से ज्यादा नजूल की जमीनें हैं. सबसे ज्यादा जमीन प्रयागराज में है. सरकारी अनुदान अधिनियम 1895 और उसके बाद के सरकारी अनुदान अधिनियम, 1960 के तहत जारी अनुदान के रूप में विभिन्न निजी व्यक्तियों और निजी संस्थाओं को पट्टे पर दिया गया. नजूल जमीन को विभिन्न राज्यों की सरकारें आम तौर पर सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे – स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत भवन आदि के निर्माण के लिए इस्तेमाल करती हैं. इसके कई शहरों में नजूल भूमि के बड़े हिस्से को पट्टे पर दिया गया.
नजूल की जमीन जिन लोगों को पट्टे पर दी गई थी, उसे बेचने का अधिकार नहीं होता था. ऐसे में पट्टे की जमीन को बेचने के लिए चौहदी का इस्तेमाल किया. इस तरह पट्टाधारियों ने काफी जमीनें चौहदी बनाकर बेच दी, जिस पर आसानी से रजिस्ट्री भी हो गई और कुछ लोग घर बनाकर रह रहे तो कुछ लोग अपना व्यवसाय संस्थान बनाए हुए हैं. इस तरह से यूपी में नजूल जमीन पर लाखों घर बन चुके हैं और कई पीढ़ियों से लोग आवास बनाकर रह रहे हैं.
प्रयागराज का बड़ा हिस्सा नजूल के हिस्से
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के खुसरो बाग के पास के इलाके, सिविल लाइंस, अशोक नगर, राजापुर, लूकरगंज, शिवकुटी और जार्जटाउन का बहुत बड़ा हिस्सा नजूल की जमीन पर बसा हुआ है. प्रयागराज के शहरी क्षेत्र में नजूल भूमि ज्यादा है. खासकर शहर के उत्तरी क्षेत्र में नजूल जमीन का सबसे अधिक हिस्सा है और पश्चिमी विधानसभा के लुकरगंज समेत कई हिस्सों में भी नजूल जमीन है. इसीलिए नजूल जमीन बिल का सबसे ज्यादा विरोध बीजेपी विधायक हर्ष बाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह कर कर रहे हैं, क्योंकि उनका क्षेत्र ज्यादा चपेटे में आ रहा है.
उत्तर प्रदेश की सरकार ने समय-समय पर जनहित में नजूल जमीन को फ्री होल्ड घोषित करने की नीति बनाई है. प्रयागराज में करीब 1300 हेक्टेयर नजूल की जमीन है, जिन पर पीढ़ियों से लोग घर बनाकर रह रहे हैं. कल्याण सिंह की सरकार ने 1997 में नजूल की जमीन पर बन चुके घरों को फ्री होल्ड करने के लिए आदेश दिया था, जिसके बाद जांच पूरा होने पर उनके नवीनीकरण और जो लोग फ्री-होल्ड की किश्ते दे रहे थे, मामला अदालत में पहुंच गया. कोर्ट ने नजूल जमीन को लेकर निर्णय दिया कि सरकार नजूल जमीन की कस्टोडियन यानि संरक्षक है, मालिक नहीं. इस तरह से नजूल जमीन के फ्री होल्ड कानून पर ग्रहण लग गया.
बीजेपी नेताओं को वोट बैंक की चिंता
नजूल जमीन पर सालों से रह रहे लोगों को उम्मीद थी कि एक दिन फ्री होल्ड का नया कानून उनके आशियाने के सपने को पूरा करेगा, लेकिन अब योगी सरकार के विधेयक आने के बाद लोगों के आशियाने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. सुरेश खन्ना ने बिल पेश करते हुए कहा था, पहले की नीतियों के कारण कई तरह के दावे हुए हैं और ये बैंकों पर बोझ बनती चली गई. भूमि की जरूरत को देखते हुए अब इन नीतियों को जारी रखना और जनहित को देखते हुए नजूल जमीन को फ्री होल्ड में बदलने की अनुमति देना उत्तर प्रदेश सरकार के हित में नहीं है.
नजूल जमीन पर विधेयक से बीजेपी नेताओं को वोट बैंक की चिंता सताने लगी है. इससे सीधे तौर पर अकेले प्रयागराज के ही 25 हजार परिवार प्रभावित होने की संभावना है तो लखनऊ, मुरादाबाद, सहारनपुर, गोरखपुर, बरेली और आगरा में बड़ी संख्या में नजूल की जमीनें हैं. इसीलिए बीजेपी के विधायक से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक नजूल भूमि बिल के विरोध में उतर गए.
विरोध के बीच डिफेंसिव मोड में योगी सरकार
ऐसे में योगी सरकार को डिफेंसिव मोड में आना पड़ा. ऐसे में रास्ता यह निकाला गया है कि विधानसभा से भले ही बिल पास हो गया हो, लेकिन विधान परिषद में एकमत से प्रवर सामिति को भेजने की सिफारिश की जाए. इसीलिए केशव प्रसाद मौर्य ने जैसे ही विधेयक पेश किया, वैसे ही भूपेंद्र चौधरी उठे और बिल को प्रवर समिति के पास भेजने की सिफारिश कर दी. सभापति ने मंजूरी दे दी है. इस तरह इस बिल के प्रवर समिति के पास भेजे जाने के बाद यह विधेयक अधर में लटक गया है.