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Indian Navy:भारत में बनेंगी न्यूक्लियर सबमरीन, इस खास प्लान से होगी समंदर में चीन की घेराबंदी

Indian Navy: भारत अपनी नौसेना को अधिक से अधिक मजबूत करने की दिशा में बड़े कदम उठा बढ़ा रहा है। इसी क्रम में दो स्वदेशी परमाणु पनडुब्बियां भारत में बनने जा रही

Indian Navy: इंडियन ओशन रीजन (IOR) में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों और उसकी नौसेना की उपस्थिति को देखते हुए भारत ने अपनी सामरिक और नौसैनिक ताकत को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। भारत सरकार की कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS), जो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में होती है, ने दो नई स्वदेशी परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण की मंजूरी दे दी है। यह निर्णय भारतीय नौसेना की शक्ति और आक्रामक क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित होगा, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में भारत की सुरक्षा और प्रभाव मजबूत होगा।

समंदर में चीन की बढ़ती मौजूदगी

भारतीय नौसेना के इस नए कदम का महत्व तब और बढ़ जाता है जब हम इंडियन ओशन रीजन (IOR) में चीन की लगातार बढ़ती उपस्थिति को देखते हैं। हर महीने इस क्षेत्र में लगभग 7-8 चीनी नौसैनिक युद्धपोत और 3-4 अर्धसैनिक जहाज देखे जा सकते हैं, जो भविष्य में और बढ़ सकते हैं। चीनी निगरानी जहाज जैसे "Xiang Yang Hong 3" और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकर "Yuan Wang 7" पहले ही भारतीय समुद्री सीमाओं के करीब देखे गए हैं। यह संकेत है कि चीन इंडियन ओशन रीजन में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जिसे रोकने के लिए भारत ने अपनी परमाणु पनडुब्बी ताकत को प्राथमिकता दी है।

पनडुब्बियों के निर्माण से भारत की नौसैनिक क्षमता में वृद्धि

विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में बनाई जाने वाली ये पनडुब्बियां 95% तक स्वदेशी होंगी और अरिहंत क्लास की पनडुब्बियों से अलग होंगी। इन्हें प्रोजेक्ट एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल के तहत विकसित किया जाएगा। ये पनडुब्बियां हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सुरक्षा को और मजबूती देंगी। अभी फिलहाल दो पनडुब्बियों के निर्माण की अनुमति दी गई है, लेकिन भविष्य में चार और पनडुब्बियां बनाई जा सकती हैं।

न्यूक्लियर सबमरीन की जरूरत क्यों है?

परमाणु शक्ति से चलने वाली स्ट्राइक सबमरीन लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं, जिससे दुश्मन के हमलों से बचाव और गोपनीय ऑपरेशन करने में सहूलियत मिलती है। चीन के पास पहले से ही 6 शांग क्लास की न्यूक्लियर पनडुब्बियां हैं, जबकि भारत के लिए रूस से मिलने वाली अकुला क्लास की पनडुब्बी 2028 तक टल गई है। इस कारण भारत को अपनी रक्षा क्षमताओं में सुधार की जरूरत है। पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की सीमाओं को देखते हुए, न्यूक्लियर पनडुब्बियां इस चुनौती का बेहतर समाधान प्रदान करती हैं। डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर आना पड़ता है, जिससे वे दुश्मन के हमलों के लिए असुरक्षित हो जाती हैं। दूसरी ओर, एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन से लैस डीजल पनडुब्बियां लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं, लेकिन उनकी गति और हथियार क्षमता सीमित होती है।

भारतीय नौसेना की ताकत में इजाफा

भारत की नई परमाणु पनडुब्बियां न केवल चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में मदद करेंगी, बल्कि भारतीय नौसेना को इंडियन ओशन रीजन में चीन की गतिविधियों पर नजर रखने और मुकाबला करने की शक्ति देंगी। इन पनडुब्बियों के शामिल होने से भारतीय नौसेना की क्षमता और आक्रामक क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। इसके साथ ही, भारत ने हाल ही में अपनी दूसरी एसएसबीएन (परमाणु पनडुब्बी) आईएनएस अरिघात को कमीशन किया है, जो समुद्र में दुश्मनों के खिलाफ मिसाइल हमले करने में सक्षम है।

भारत का न्यूक्लियर ट्रायड में स्थान

भारत ने अपनी पहली एसएसबीएन पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत से 2022 में सफलतापूर्वक K-15 SLBM का परीक्षण किया था, जिससे भारत ने न्यूक्लियर ट्रायड में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। इसके साथ ही भारत अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद दुनिया का छठा न्यूक्लियर ट्रायड देश बन गया। इसका मतलब यह है कि भारत जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हमले करने में सक्षम हो गया है, जिससे देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ है।

निष्कर्ष

चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों और समुद्री क्षेत्रों में उसके प्रभाव को देखते हुए, भारत द्वारा नई परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण का फैसला सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह कदम भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए अधिक ताकत देगा। इसके साथ ही, यह स्वदेशी निर्माण और आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है, जिससे भारत की रक्षा क्षमताएं और मजबूत होंगी।

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