Uniform Civil Code:राज्यों को UCC लागू करने के लिए दिशा-निर्देश? सरकार ने दिया क्या जवाब?

11:02 AM Dec 07, 2024 | zoomnews.in

Uniform Civil Code: भारत के संसद के शीतकालीन सत्र में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया, जिसमें पूछा गया कि क्या केंद्र सरकार ने देश के विभिन्न राज्यों में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) लागू करने के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी किए हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने स्पष्ट किया कि सरकार ने राज्य सरकारों को इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश नहीं जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रचारित सूचनाएं पूरी तरह से गलत हैं।

कानून मंत्री ने संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए बताया कि संविधान सभा में अंबेडकर ने यह बात स्पष्ट की थी कि भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। हालांकि, अंबेडकर ने यह भी कहा कि विवाह और उत्तराधिकार जैसे विषय नागरिक कानून के अंतर्गत नहीं आते। इसी कारण, संविधान में अनुच्छेद 44 (जो पहले अनुच्छेद 35 था) के तहत समान नागरिक संहिता की बात कही गई, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा है।

समान नागरिक संहिता का क्या मतलब है?

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य यह है कि सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू किया जाए, जो किसी विशेष धर्म पर आधारित न हो। इसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से व्यक्तिगत कानूनों जैसे विवाह, गोद लेना, उत्तराधिकार आदि में। हालांकि, अभी तक इस दिशा में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया गया है।

प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में समान नागरिक संहिता पर अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर कई निर्देश दिए हैं और यह संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में शामिल है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि भारतीय संविधान निर्माताओं का सपना था कि देश में एक समान नागरिक संहिता लागू हो, और इसे लागू करना हमारी जिम्मेदारी है। उनका मानना ​​है कि इस विषय पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए और यह राज्य का कर्तव्य है कि वह पूरे देश में समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करें।

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू

वर्तमान में उत्तराखंड राज्य ने अपने यहां समान नागरिक संहिता लागू कर दी है। इस कदम ने इस विषय को एक नया मोड़ दिया है, और अन्य राज्य सरकारों के लिए यह एक उदाहरण बन सकता है। केंद्रीय सरकार ने इस मुद्दे को विधि आयोग के पास भेज दिया है, जिसने पिछले साल इस पर नए सिरे से सार्वजनिक परामर्श शुरू किया था। इससे पहले, 21वें विधि आयोग ने इस पर 2018 तक काम किया था और इस विषय पर दो बार सभी हितधारकों से सुझाव मांगे थे। इसके परिणामस्वरूप, 2018 में पारिवारिक कानूनों में सुधार के लिए एक एडवाइजरी जारी की गई थी।

निष्कर्ष

समान नागरिक संहिता का विषय भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है। सरकार ने इस पर अभी तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और विधि आयोग इसे लेकर सक्रिय हैं। यह मुद्दा न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी चर्चा का विषय बना हुआ है। अब यह देखना होगा कि भविष्य में समान नागरिक संहिता को लेकर देशभर में क्या कदम उठाए जाते हैं और यह भारतीय समाज पर किस प्रकार का प्रभाव डालता है।