Lok Sabha Elections: लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने बिहार की हाजीपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने बुधवार को पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक खत्म होने के बाद इसकी घोषणा की. चिराग ने कहा, हाजीपुर से एनडीए के प्रत्याशी के रूप में मैं लोकसभा चुनाव लड़ूंगा.
बता दें कि हाजीपुर के मौजूदा सांसद चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस हैं. पशुपति केंद्रीय मंत्री भी थे. NDA में सीट बंटवारे के बाद से पशुपति नाराज थे. उन्होंने मंगलवार को मोदी मंत्रिमंडल से अलग होने का फैसला लिया. पशुपति हाजीपुर से चुनाव लड़ने की जुगत में थे. लेकिन वह सीट उनके खाते में नहीं आई. यही नहीं बिहार में सीट बंटवारे में उन्हें चुनाव के लिए एक भी सीट नहीं मिली. चर्चा है कि पशुपति इंडिया गठबंधन के संपर्क में हैं और वह हाजीपुर से चुनाव लड़ सकते हैं.
पशुपति पारस पर चिराग का बयान
उधर, पशुपति पारस के हाजीपुर से चुनाव लड़ने के बयान पर चिराग पासवान ने कहा कि उन्होंने (पशुपति) हमेशा कहा है कि वो प्रधानमंत्री के साथ रहेंगे. ऐसे में अब उन्हें तय करना है कि वो एनडीए के 400 सीटें हासिल करने के लक्ष्य में साथ देंगे या रोड़ा अटकाएंगे.
चिराग ने कहा, मैं हर चुनौती को लेकर तैयार हूं. मुझे कहीं कोई कठिनाई नहीं है. लेकिन उन्होंने (पशुपति पारस) कहा है कि हम मरते दम तक प्रधानमंत्री के साथ रहेंगे. तो क्या वो 400 पार के लक्ष्य में रोड़ा बनेंगे. चिराग पासवान ने कहा, मैं पार्टी के संसदीय बोर्ड का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे लोकसभा चुनाव से जुड़े सभी फैसले लेने के लिए अधिकृत किया है. अगले दो से चार दिनों में सभी पांच प्रत्याशियों के नाम का ऐलान हो जाएगा.
चिराग पासवान ने आगे कहा, जो लोग पार्टी या परिवार छोड़कर गए थे, वापस आने का फैसला भी उन्हें ही करना है. चिराग ने कहा कि हाजीपुर मेरे नेता, मेरे पिताजी की कर्मभूमि रही है. अब उनके सपनों को मुझे पूरा करना है. बता दें कि हाजीपुर सीट बिहार की हाई प्रोफाइल सीट रही है. यहां से चिराग के पिता रामविलास पासवान 9 बार लोकसभा सांसद रहे. 2019 में पशुपति यहां से चुनाव लड़कर सांसद बने थे.
क्यों नाराज थे पशुपति पारस?
पशुपति पारस की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि मौजूदा मोदी सरकार में पांच सांसदों के समर्थन और खुद कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद बिहार में एनडीए की सीटों के बंटवारे को लेकर हुई एक भी मीटिंग में न तो उन्हें बुलाया गया और न ही भारतीय जनता पार्टी के किसी बड़े नेता ने उनसे संपर्क साधने की कोशिश की.
हालांकि 13 मार्च को चिराग पासवान और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच हुई मुलाक़ात के बाद ही इस तरह की खबरें आने लगी थी कि 2019 के फॉर्मूले के तहत लोकजनशक्ति पार्टी (पूर्ववर्ती नाम) के कोटे में गई सभी सीटें चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) को ही दी जाएंगी, जबकि पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी को गठबंधन में शामिल नहीं किया जाएगा.
एनडीए में तवज्जों नहीं मिलने के बावजूद पशुपति पारस फिलहाल बीजेपी नेतृत्व और प्रधानमंत्री को लेकर सोच समझकर अपनी बात रख रहे हैं, जबकि उनकी पार्टी की ओर से आक्रामक रुख अख्तियार किया गया है. आरएलजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल ने कहा कि हाजीपुर लोकसभा सीट से हर हाल में पशुपति पारस ही चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए हर संभव विकल्प पर काम किया जाएगा.
हाजीपुर पासवान परिवार का रहा है गढ़
हाजीपुर लोकसभा सीट रामविलास पासवान की पारंपरिक सीट मानी जाती है. रामविलास पासवान यहां से पहली बार 1977 और उसके बाद 1980 में रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीते थे. 1984 और 2009 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो रामविलास पासवान इस सीट से कभी चुनाव नहीं हारे.
रामविलास पासवान के राज्यसभा में चले जाने के बाद 2019 में हाजीपुर से उनके छोटे भाई पशुपति पारस चुनाव जीत गए, लेकिन जून 2021 में पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच रामविलास पासवान के राजनीतिक विरासत को लेकर तकरार शुरू हो गई. अंततः पशुपति पारस ने पार्टी के चार सांसदों को लेकर लोजपा का एक अलग धड़ा बना लिया और पार्टी में चिराग पासवान अकेले पड़ गए.