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J&K Election 2024:J-K चुनाव में पहले चरण का चुनाव प्रचार थमा, कौन से मुद्दे हावी रहे? जानिए

J&K Election 2024: जम्मू कश्मीर में पहले चरण की 24 सीटों के लिए आज चुनाव प्रचार थम गया. वोटिंग 18 सितंबर, बुधवार को होगी. पहले चरण में किन दलों ने प्रचार में

J&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का प्रचार आज समाप्त हो गया है। 7 जिलों की 24 सीटों पर 18 सितंबर, बुधवार को मतदान होगा। इस चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए बहुमत के संघर्ष में बीजेपी, पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन, इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी और प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी के गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है। इसके अलावा सज्जाद गनी लोन की पीपल्स कांफ्रेंस, अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और गुलाम नबी आजाद की पार्टी भी कुछ सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

चुनाव प्रचार: प्रमुख दलों की रणनीतियाँ

भाजपा ने जम्मू में अपनी पूरी ताकत झोंकी। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने 6 सितंबर को घोषणापत्र जारी किया और इसके बाद जम्मू में कई रैलियों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू डिवीजन के डोडा में एक सभा को संबोधित किया, लेकिन कश्मीर में प्रचार नहीं किया। भाजपा के कश्मीर अभियान की जिम्मेदारी राम माधव ने संभाली।

कांग्रेस ने जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों में मिलाजुला प्रचार किया। राहुल गांधी ने जम्मू के रामबन और अनंतनाग में रैलियां कीं, जबकि मल्लिकार्जुन खरगे ने श्रीनगर और अनंतनाग में जनसभाएं कीं। कांग्रेस ने राज्य का दर्जा बहाल करने की बात की, लेकिन धारा 370 पर उसकी स्थिति अस्पष्ट रही।

पीडीपी की ओर से महबूबा मुफ्ती और उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने चुनाव प्रचार की बागडोर संभाली। नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अबदुल्ला और उनके बेटे ने भी अपने मोर्चे पर काम किया। एक नई घटना तब सामने आई जब इंजीनियर राशिद को यूएपीए मामले में जमानत मिली और उन्होंने चुनाव प्रचार में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

प्रमुख मुद्दे: धारा 370 से लेकर बेरोजगारी तक

1. धारा 370 और राज्य का दर्जा: जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद यह पहला चुनाव है। इस चुनाव में धारा 370, 35ए और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग प्रमुख मुद्दे बने हैं। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दल धारा 370 की वापसी की बात कर रहे हैं, जबकि भाजपा ने इसे हटाए जाने को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश किया। कांग्रेस ने राज्य का दर्जा बहाल करने की बात की, लेकिन धारा 370 पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया।

2. दिल्ली का प्रॉक्सी: चुनाव के पहले चरण के दौरान, विभिन्न दलों ने एक दूसरे को दिल्ली या भाजपा का प्रॉक्सी बताया। इंजीनियर राशिद की जमानत और जमात ए इस्लामी की चुनावी भागीदारी ने इस मुद्दे को और उछाला। पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने राशिद की जमानत को भाजपा की चाल के रूप में देखा, जबकि राशिद ने भाजपा और पीडीपी के गठजोड़ पर सवाल उठाए।

3.स्वायत्ता और जेल फ्री कश्मीर: यह पहला विधानसभा चुनाव है जिसमें कोई संगठन चुनाव बहिष्कार की बात नहीं कर रहा। अलगाववादी नेताओं की चुनाव में भागीदारी और स्वायत्ता की मांग ने चुनावी बहस को नई दिशा दी। पार्टियों ने जेल फ्री कश्मीर के वादे को भी जोर-शोर से उठाया, साथ ही पीएसए, यूएपीए और अफ्सपा जैसे काले कानूनों को खत्म करने की मांग की।

4. बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और डर: बेरोजगारी और भ्रष्टाचार भी प्रमुख मुद्दे रहे हैं। भाजपा ने पूर्व की सरकारों पर आरोप लगाया, जबकि अन्य दलों ने मौजूदा सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया। सभी पार्टियों ने रोजगार के अवसर सृजन का वादा किया, लेकिन इसकी वास्तविकता पर कोई स्पष्ट योजना नहीं दी। चुनावी माहौल में डर और असुरक्षा की भावना भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरी है, जिसे विभिन्न दलों ने अपने-अपने ढंग से पेश किया।

इस पहले चरण के चुनाव प्रचार ने स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर का चुनावी परिदृश्य बेहद जटिल और विविधतापूर्ण है। चुनावी मुद्दे, दलों की रणनीतियाँ और जनता की उम्मीदें इस चुनाव को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर ले आए हैं। अब यह देखना होगा कि 18 सितंबर को वोटर किसे चुनते हैं और किस दल को बहुमत हासिल होता है।

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