Rahul Gandhi News: कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में संभल जाने की जिद पर अड़े रहे, लेकिन प्रशासन ने उन्हें अनुमति देने से इनकार कर दिया। गाजीपुर बॉर्डर पर रोके जाने के बाद राहुल ने कहा कि वह पुलिस के साथ अकेले जाने को भी तैयार हैं, मगर प्रशासन ने उनकी इस पेशकश को भी ठुकरा दिया। राहुल का दावा है कि उन्हें संभल जाने से रोका जाना उनके संवैधानिक और विपक्षी नेता के विशेषाधिकारों का उल्लंघन है।
नेता प्रतिपक्ष के अधिकार का मुद्दा
गाजीपुर बॉर्डर पर संवाददाताओं से बातचीत में राहुल गांधी ने जोर देकर कहा, "लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के नाते मेरा अधिकार बनता है कि मैं हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर सकूं। यह लोकतंत्र की आत्मा का हिस्सा है।"
हालांकि, पुलिस ने उनकी यात्रा को रोकते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में शांति बनाए रखना प्राथमिकता है। प्रशासन ने भारतीय दंड संहिता की धारा 144 का हवाला दिया, जो सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगाती है।
संविधान और लोकतंत्र पर सवाल
राहुल गांधी ने संविधान की प्रति दिखाते हुए इस घटना को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, "यह भारत के संविधान को खत्म करने की कोशिश है। हम केवल पीड़ितों से मिलकर सच्चाई जानना चाहते हैं। मगर हमें संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है।"
प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे पर रोष व्यक्त किया। उन्होंने राहुल को रोकने की घटना को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा, "नेता प्रतिपक्ष को रोका नहीं जा सकता। उनके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।"
संभल हिंसा का संदर्भ
राहुल गांधी का दौरा हिंसा प्रभावित संभल में पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए था। यह हिंसा 24 नवंबर को तब भड़की, जब एक मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान सामुदायिक तनाव चरम पर पहुंच गया। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई। स्थानीय अदालत ने याचिका के आधार पर यह सर्वेक्षण करवाने का आदेश दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि जामा मस्जिद की जगह पहले हरिहर मंदिर हुआ करता था।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
गाजियाबाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अजय कुमार मिश्रा ने स्पष्ट किया कि संभल में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए निषेधाज्ञा लागू है। प्रशासन ने बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर 10 दिसंबर तक रोक लगा दी है।
राजनीतिक और संवैधानिक पहलू
राहुल गांधी के इस घटनाक्रम ने लोकतंत्र, संवैधानिक अधिकारों और प्रशासनिक विवशताओं के बीच संतुलन को लेकर बहस छेड़ दी है। क्या यह विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास है, या प्रशासन का सावधानी भरा कदम?
यह सवाल अनुत्तरित है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष के अधिकार और संवैधानिक प्रावधानों पर गहन विचार की आवश्यकता को उजागर कर दिया है।