Udaipur City Palace: राजस्थान के उदयपुर का मेवाड़ राजवंश भारत के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित राजवंशों में से एक है। महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा और उनकी अनमोल विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाला यह राजघराना आजकल सुर्खियों में है। कारण है 71वीं राजगद्दी को लेकर विवाद, जो अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बड़े भाई महेंद्र सिंह के परिवारों के बीच चल रहा है।
वर्तमान विवाद: लक्ष्यराज बनाम विश्वराज
महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह का हाल ही में राजतिलक किया गया और उन्हें मेवाड़ राजवंश का 71वां महाराणा घोषित किया गया। वहीं, अरविंद सिंह का दावा है कि उनका बेटा लक्ष्यराज सिंह इस गद्दी का असली हकदार है। विवाद तब और बढ़ गया जब राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह को सिटी पैलेस में स्थित धूणी माता के दर्शन से रोका गया।
इसका इतिहास 1955 में उस समय से जुड़ा है, जब भगवत सिंह मेवाड़ महाराणा बने। भगवत सिंह ने अपनी पैतृक संपत्ति को लीज पर देना शुरू किया था, जिससे उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह असहमति रखते थे। महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ मामला दर्ज करवाया और संपत्ति के बंटवारे की मांग की। भगवत सिंह ने 1984 में अपनी वसीयत में छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का उत्तराधिकारी और ट्रस्ट का संचालनकर्ता नियुक्त कर दिया।
सिसोदिया राजघराने का गौरवशाली इतिहास
मेवाड़ राजवंश का इतिहास गुहिल वंश से शुरू होता है, जिसे सिसोदिया वंश के नाम से भी जाना जाता है। इस वंश की उत्पत्ति भगवान राम के पुत्र लव से मानी जाती है। तीसरी शताब्दी में राजा कनकसेन ने वलभी नगर को अपनी राजधानी बनाया। उनके बेटे चंद्रसेन से गुहिल वंश की शुरुआत हुई।
566 ईस्वी में राजा गुहादित्य ने गुहिल वंश की स्थापना की। इसके बाद कई प्रमुख शासक हुए, जैसे महाराणा उदय सिंह और महाराणा प्रताप। महाराणा प्रताप ने 1572 से 1597 तक मेवाड़ पर शासन किया और अपनी वीरता और स्वतंत्रता प्रेम के लिए जाने गए।
आधुनिक काल में मेवाड़ राजवंश
1955 में भगवत सिंह मेवाड़ राजवंश के महाराणा बने। उनके शासनकाल में मेवाड़ की पैतृक संपत्तियों का व्यावसायीकरण शुरू हुआ। उनके बेटे महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह के बीच संपत्ति और राजगद्दी को लेकर मतभेद गहराते गए। भगवत सिंह ने अपनी वसीयत में महेंद्र सिंह को संपत्ति से बेदखल कर दिया और अरविंद सिंह को ट्रस्ट का संचालनकर्ता नियुक्त किया।
आज, महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज और अरविंद सिंह के बेटे लक्ष्यराज के बीच यह विवाद नई ऊंचाई पर है।
मेवाड़ राजवंश की विरासत और भविष्य
मेवाड़ राजवंश की धरोहर केवल राजगद्दी तक सीमित नहीं है। यह एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक पहचान का प्रतीक है। हालांकि, वर्तमान विवाद ने इस गौरवशाली राजवंश को विभाजित कर दिया है। राजगद्दी का यह संघर्ष केवल परिवारिक झगड़े तक सीमित नहीं है; यह मेवाड़ की ऐतिहासिक धरोहर की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित कर सकता है।
मेवाड़ के वर्तमान विवाद से एक सबक यह मिलता है कि ऐतिहासिक धरोहर की गरिमा बनाए रखने के लिए परिवारिक एकता और परंपरा का सम्मान बेहद आवश्यक है।