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GST Council Meeting:यूं ही नहीं लगा पॉपकॉर्न पर जीएसटी, दुनिया में इतना बड़ा है बाजार

GST Council Meeting: साधारण नमक और मसालों से तैयार पॉपकॉर्न, जिस पर पैकेज्ड और लेबल्ड नहीं होगा उस पर 5 फीसदी जीएसटी लगेगा. पैकेज्ड और लेबल्ड पॉपकॉर्न पर जीएसटी

GST Council Meeting: जीएसटी काउंसिल ने हाल ही में पॉपकॉर्न को तीन अलग-अलग टैक्स स्लैब में शामिल किया है: 5%, 12% और 18%। यह फैसला कई लोगों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, लेकिन अगर पॉपकॉर्न के बढ़ते बाजार को समझा जाए, तो यह कदम आर्थिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

पॉपकॉर्न का भारतीय बाजार

भारत में पॉपकॉर्न का बाजार तेजी से विस्तार कर रहा है। मौजूदा समय में इसका अनुमानित मार्केट साइज करीब 1,200 करोड़ रुपये का है। रिपोर्ट के अनुसार, यह 2030 तक 2,600 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। 2024 से 2030 के बीच इस क्षेत्र में लगभग 12.1% की वार्षिक वृद्धि होने का अनुमान है।

इस ग्रोथ का एक बड़ा कारण मल्टीप्लेक्स और मूवी थिएटर्स में पॉपकॉर्न की बढ़ती खपत है। इसके साथ ही, घरेलू मनोरंजन जैसे कि फिल्मों और क्रिकेट मैचों के दौरान इसका उपयोग भी बढ़ा है। रेडी-टू-ईट पॉपकॉर्न का बाजार सबसे बड़ा है, जबकि माइक्रोवेव पॉपकॉर्न का सेगमेंट सबसे तेज़ी से बढ़ रहा है।

मल्टीप्लेक्स का योगदान

भारत में पॉपकॉर्न की बिक्री में मल्टीप्लेक्स का अहम योगदान है। उदाहरण के लिए, पीवीआर सिनेमा रोज़ाना 18,000 पॉपकॉर्न टब बेचता है। इसके अलावा, बानाको जैसी कंपनियां लगभग 80% मल्टीप्लेक्सों को पॉपकॉर्न के दाने सप्लाई करती हैं।

वैश्विक पॉपकॉर्न बाजार

दुनिया भर में पॉपकॉर्न का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है। मॉरडोर इंटेलीजेंस की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में यह बाजार लगभग 8.80 बिलियन डॉलर (75,000 करोड़ रुपये) का था, जो 2029 तक 14.89 बिलियन डॉलर (1.26 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच सकता है। वैश्विक स्तर पर 11.10% की वार्षिक वृद्धि का अनुमान है।

नॉर्थ अमेरिका पॉपकॉर्न का सबसे बड़ा बाजार है, जबकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला बाजार है। हर्शीज़, पेप्सिको, पॉप वीवर और कोनाग्रा जैसी कंपनियां इस उद्योग की प्रमुख खिलाड़ी हैं।

जीएसटी स्लैब और पॉपकॉर्न का वर्गीकरण

जीएसटी काउंसिल ने पॉपकॉर्न को इसके प्रकार और तैयारी के आधार पर अलग-अलग टैक्स स्लैब में रखा है:

  1. 5% टैक्स: साधारण नमक और मसालों से बना पॉपकॉर्न (पैकेज्ड और लेबल्ड न हो)।
  2. 12% टैक्स: पैकेज्ड और लेबल्ड साधारण पॉपकॉर्न।
  3. 18% टैक्स: कारमेल जैसे मीठे फ्लेवर वाले पॉपकॉर्न।

सरकार का नजरिया और राजस्व बढ़ाने की संभावना

पॉपकॉर्न का बड़ा और तेजी से बढ़ता बाजार इसे टैक्स के दायरे में लाने के लिए एक उपयुक्त कारण है। इसके माध्यम से सरकार को राजस्व में बढ़ोतरी की उम्मीद है।

निष्कर्ष

पॉपकॉर्न को जीएसटी के दायरे में लाना केवल एक साधारण टैक्सेशन निर्णय नहीं है; यह सरकार की आर्थिक नीतियों और बढ़ते उपभोक्ता बाजार का प्रतीक है। बढ़ती मांग, बड़े पैमाने पर उत्पादन, और वैश्विक स्तर पर उभरते अवसरों को देखते हुए, यह कदम भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

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