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J&K Election 2024:जम्मू कश्मीर में चुनाव कोई जीते पर सरकार LG चलाएंगे?

J&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव एक राज्य में नहीं बल्कि केंद्रशासित प्रदेश में कराया गया. ऐसे केंद्रशासित प्रदेश में जिसके एलजी को पहले ही

J&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं, और राज्य की 90 सीटों पर तीन चरणों में मतदान हुआ। लेकिन चुनावी चर्चा के बीच, पिछले कुछ दिनों में एक नया मोड़ आ गया है। राजनीतिक विश्लेषण और सीटों के गणित के बीच अचानक से ध्यान उन 5 मनोनीत विधायकों पर चला गया है जिन्हें उपराज्यपाल (LG) बिना चुनाव लड़े सीधे विधानसभा में नामित करेंगे। इसने एक बड़ी बहस छेड़ दी है कि असली सत्ता किसके हाथ में होगी—चुनी हुई सरकार के या उपराज्यपाल के?

उपराज्यपाल के जरिए तय हो रही सरकार?

यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि उपराज्यपाल के पास इन 5 विधायकों को नामित करने का अधिकार है। ऐसे में, यह सवाल भी लाजमी है कि अगर किसी पार्टी के पास बहुमत नहीं हुआ, तो इन 5 मनोनीत विधायकों के वोट से सरकार का भविष्य तय हो सकता है। जब सरकार बनाने की प्रक्रिया में उपराज्यपाल का इतना अहम रोल हो, तो चुनी गई सरकार की स्वतंत्रता और शक्ति कितनी होगी, इस पर संदेह उठना स्वाभाविक है।

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद हुए, लेकिन यह चुनाव अब एक राज्य के बजाय केंद्र शासित प्रदेश में कराया गया है। इससे पहले ही केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल को अत्यधिक शक्तियां प्रदान की हैं, और ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि चुनाव जीतने के बाद भी सरकार क्या केवल प्रतीकात्मक रह जाएगी और असली नियंत्रण उपराज्यपाल के पास रहेगा?

LG के पास पुलिस और पब्लिक ऑर्डर का नियंत्रण

यह आशंका महज कल्पना नहीं है। बांग्लादेश के पुनर्गठन के बाद से, जम्मू-कश्मीर की चुनी हुई सरकार के पास पुलिस और पब्लिक ऑर्डर जैसे अहम विभागों का नियंत्रण नहीं होगा। ये शक्तियां सीधे उपराज्यपाल के पास रहेंगी। पुलिस, सिविल सेवाओं की नियुक्ति और तबादले से लेकर अन्य प्रशासनिक शक्तियां, जिन्हें पहले राज्य सरकार संभालती थी, अब उपराज्यपाल के पास हैं।

जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग, जिसे अक्सर राज्य के सबसे ताकतवर मंत्री संभालने की कोशिश करते हैं, अब चुनी हुई सरकार के दायरे से बाहर होगा। इसके अलावा, पब्लिक ऑर्डर, जिसका प्रभाव प्रशासनिक और कानूनी निर्णयों पर गहरा होता है, वह भी उपराज्यपाल के नियंत्रण में होगा। इससे साफ है कि सरकार की नीति निर्धारण और क्रियान्वयन की शक्ति काफी हद तक सीमित हो जाएगी।

समवर्ती सूची और कानूनी अधिकार

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास समवर्ती सूची के तहत दिए गए विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार सीमित कर दिया गया है। समवर्ती सूची में ऐसे मामले होते हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह शक्ति भी सीधे केंद्र या उपराज्यपाल के पास होगी।

इससे साफ होता है कि जम्मू-कश्मीर में बनने वाली सरकार न केवल सीमित शक्तियों के साथ काम करेगी, बल्कि महत्वपूर्ण निर्णयों में उपराज्यपाल की भूमिका हमेशा हावी रहेगी। चुनी हुई सरकार के लिए नीति निर्माण और प्रशासनिक स्वतंत्रता काफी हद तक चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

एलजी के फैसलों की समीक्षा असंभव

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून की धारा 55 के तहत उपराज्यपाल के फैसलों की समीक्षा चुनी गई सरकार या मंत्रिमंडल द्वारा नहीं की जा सकती। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो जम्मू-कश्मीर की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सवालों के घेरे में खड़ा कर रही है। इससे भी आगे, उपराज्यपाल का एक प्रतिनिधि सभी कैबिनेट बैठकों में शामिल रहेगा, जो यह स्पष्ट करता है कि केंद्र का हस्तक्षेप राज्य सरकार के हर निर्णय पर रहेगा।

क्या सरकार सिर्फ नाम की होगी?

इस पूरे परिदृश्य में यह सवाल प्रमुख है कि क्या जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद चुनी गई सरकार वास्तव में स्वतंत्र रूप से काम कर पाएगी या फिर सत्ता की असली चाबी उपराज्यपाल के हाथ में रहेगी। उपराज्यपाल के पास पुलिस, प्रशासन, कानून व्यवस्था और कई अन्य विभागों की सीधी शक्ति होने से सरकार की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

आजादी के बाद शायद ही किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में ऐसी स्थिति देखी गई हो कि कैबिनेट की बैठक में केंद्र का प्रतिनिधि शामिल हो और राज्य सरकार की नीति निर्धारण की क्षमता पर इतना बड़ा प्रश्नचिह्न लगा हो। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि चाहे कोई भी पार्टी चुनाव जीते, असल में सरकार उपराज्यपाल ही चलाएंगे।

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