Jagdeep Dhankhar News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में किसानों की समस्याओं को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि किसान हमारे देश की रीढ़ हैं, लेकिन उनके साथ किए गए वादे न तो पूरे हो रहे हैं और न ही उनकी आवाज़ को सुना जा रहा है। उनके इस बयान ने कृषि क्षेत्र की समस्याओं और सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया पर गंभीर चर्चा को जन्म दिया है।
किसानों से संवाद की कमी पर चिंता
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पूछा, "किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है?" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसानों को उनकी मेहनत का उचित हक नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कृषि मंत्री से आग्रह किया कि इस मामले में जल्द से जल्द स्पष्टता लाई जाए और यह बताया जाए कि किसानों से किए गए वादे क्यों अधूरे हैं।
कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है। मेरा आप से आग्रह है कि कृपया करके मुझे बताइये,
— Vice-President of India (@VPIndia) December 3, 2024
क्या किसान से वादा किया गया था?
किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया?
वादा निभाने के लिए हम क्या करें हैं?
गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है।
कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे… pic.twitter.com/7WawdAu5c9
धनखड़ ने किसानों की पीड़ा को लेकर कहा, "जब भारत विश्व स्तर पर नई ऊंचाइयों को छू रहा है, तो किसान क्यों परेशान और असहाय है?" उन्होंने यह भी कहा कि किसान अकेला ऐसा वर्ग है जो अपनी समस्याओं के समाधान के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा है, लेकिन उसकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
विकसित भारत के सपने में किसान कहां?
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में भारत के बढ़ते वैश्विक कद की सराहना की। उन्होंने कहा, "पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था।" लेकिन इस बदलाव के बावजूद, किसान की स्थिति में सुधार न होने पर उन्होंने गहरी निराशा व्यक्त की।
उन्होंने कहा, "जब प्रधानमंत्री को विश्व के शीर्ष नेताओं में गिना जा रहा है, भारत की साख बढ़ रही है, तब हमारा किसान क्यों संघर्ष कर रहा है? यह सवाल हर नागरिक के लिए सोचने योग्य है।"
किसानों के उचित मूल्य की समस्या
धनखड़ ने नीति-निर्माण की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। उन्होंने इसे कृषि क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया। उनका कहना था कि किसानों के प्रति किए गए वादों को निभाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि किसानों की समस्याओं को हल्के में लेना, न केवल असंवेदनशीलता है बल्कि यह दिखाता है कि हमारी नीतियां सही दिशा में नहीं हैं।
क्या होना चाहिए आगे का रास्ता?
धनखड़ ने किसानों के मुद्दों को सुलझाने के लिए वार्ता और ठोस नीतिगत कदम उठाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए एक व्यावहारिक और समर्पित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने कृषि मंत्री और सरकार से अपील की कि वे किसानों के साथ संवाद बढ़ाएं और यह सुनिश्चित करें कि उनकी मेहनत का फल उन्हें मिले।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति का बयान देश के लिए एक गंभीर संदेश है। यह समय है कि सरकार, नीति-निर्माता और समाज के सभी वर्ग किसान के महत्व को समझें और उनके कल्याण के लिए ठोस कदम उठाएं। अगर भारत को सच में विकसित राष्ट्र बनाना है, तो किसानों को इस यात्रा में प्राथमिकता देनी होगी। उनके साथ संवाद और उनके लिए नीति निर्माण ही भारत के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।