BRICS Summit 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में रूस के कजान में हो रहे 16वें BRICS शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपना दो दिवसीय दौरा शुरू किया। इस समिट में वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी नेता शी जिनपिंग जैसे विश्व के प्रमुख नेताओं से मुलाकात करेंगे। BRICS समूह, जो कि अमेरिका के वैश्विक दबदबे को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है, की लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है। दुनियाभर के कई देश इस समूह में शामिल होने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं।
BRICS का उदय और विस्तार
BRICS का गठन 1990 के दशक में भारत, रूस और चीन की पहल से हुआ था, और इसकी औपचारिक स्थापना 16 जून 2009 को की गई। प्रारंभ में इसमें सिर्फ भारत, रूस, चीन और ब्राज़ील शामिल थे, लेकिन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद इसे BRICS नाम दिया गया। अब इस समूह के सदस्यों की संख्या बढ़ रही है, और 1 जनवरी 2024 से सऊदी अरब, अर्जेंटीना और अन्य देशों को शामिल करने का प्रस्ताव भी मंजूर हो चुका है।
नए विश्व व्यवस्था की दिशा में BRICS
BRICS को एक मजबूत समूह के रूप में देखा जा रहा है, जो विकासशील देशों की आवाज को वैश्विक मंच पर उठाता है। अब यह संगठन तेजी से विस्तार कर रहा है, जिससे कई देश जैसे तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने भी BRICS में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है। यह संकेत देता है कि BRICS के प्रति वैश्विक रुचि बढ़ रही है, जो अमेरिका के प्रभाव वाले NATO और G7 को चुनौती दे सकता है।
पश्चिमी देशों के खिलाफ BRICS का दृष्टिकोण
रूस और चीन BRICS के माध्यम से एक ऐसा गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे सके। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के अनुसार, BRICS का उद्देश्य किसी को चुनौती देना नहीं है, बल्कि यह बदलाव का प्रतीक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिमी देशों के खिलाफ BRICS का दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं है।
BRICS का आर्थिक और राजनीतिक महत्व
BRICS का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी प्रभाव को कम करना और राजनीतिक तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। इस समूह में शामिल होने के लिए देश जैसे सऊदी अरब और तुर्की, अमेरिका पर निर्भरता को कम करना चाहते हैं। BRICS देशों की वैश्विक GDP में 28% भागीदारी है, और इसके विस्तार से यह संभावना बढ़ रही है कि यह संगठन G7 को पीछे छोड़ सकता है।
BRICS की बैठकें और भविष्य की योजनाएँ
अब तक 15 BRICS समिट हो चुकी हैं, जिसमें से तीन (2020, 2021, 2022) कोरोना महामारी के कारण वर्चुअली आयोजित की गई थीं। भारत ने 2012, 2016 और 2021 में BRICS की मेज़बानी की है। इस बार रूस BRICS की अध्यक्षता कर रहा है, और कजान में हो रही इस समिट पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं।
अमेरिका पर संभावित प्रभाव
BRICS देश अब स्थानीय मुद्रा के जरिए तेल व्यापार करने पर विचार कर रहे हैं, जिससे अमेरिका को आर्थिक झटका लग सकता है। यदि BRICS देश स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का निर्णय लेते हैं, तो इससे अमेरिका की मुद्रा के वैश्विक भंडार में कमी आ सकती है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का रूस दौरा और BRICS शिखर सम्मेलन वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत दे रहा है। BRICS का विस्तार और विकासशील देशों की भागीदारी इस समूह को एक नई दिशा में ले जा सकती है। अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने के लिए BRICS के प्रयासों की चर्चा लगातार बढ़ रही है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस समिट से किस प्रकार की नई संभावनाएँ और रणनीतियाँ उभरकर सामने आती हैं।