Haryana Election:हरियाणा की वो सीटें, जहां निर्दलीय प्रत्याशी है 'जीत की गारंटी'

05:14 PM Aug 23, 2024 | zoomnews.in

Haryana Election: हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में 4 सीटें ऐसी हैं, जहां निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। पुंडरी, नूह, निलोखेरी, और हाथिन में निर्दलीय ही जीतते आए हैं। पुंडरी में 1996 से, नूह में 2005 तक, निलोखेरी में 2019 तक, और हाथिन में 2009 तक निर्दलीय विजयी रहे हैं। इन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की लंबे समय से पकड़ बनी हुई है, और राज्य में भी निर्दलीय विधायकों की संख्या में उतार-चढ़ाव जारी है।

इन सीटों पर निर्दल का दबदबा

1. पुंडरी- कैथल जिले की पुंडरी विधानसभा सीट पर 1996 के बाद से निर्दलीय ही जीतते आ रहे हैं. इस सीट पर अब तक 7 बार निर्दलीय उम्मीदवार जीत हासिल कर चुके हैं. 1968 में पहली बार इश्वर सिंह ने निर्दलीय जीत हासिल की थी. सिंह ने उस वक्त कांग्रेस उम्मीदवार तारा सिंह को हराया था.

इश्वर सिंह निर्दल जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. 1996 में दूसरी बार नरेंद्र शर्मा ने इस सीट से निर्दलीय जीत दर्ज की. इसके बाद से अब तक यहां किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को जीत नहीं मिली है.

पुंडरी सीट से साल 2000 में तेजवीर सिंह, 2005 और 2014 में दिनेश कौशिक, 2009 में सुल्तान और 2019 में रणधीर सिंह गोलेन ने जीत हासिल की. 2019 में गोलेन ने कांग्रेस के सतबीर भामा को हराया था.

2. नूह- गुरुग्राम लोकसभा की नूह विधानसभा सीट भी निर्दलील के मुफीद मानी जाती है. यहां से अब तक 5 बार निर्दलीय विधायक जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं. 1967 में यहां से रहीम खान पहली बार निर्दलीय ही जीते थे. उन्होंने कांग्रेस के खुर्शीद अहमद को हराया था.

1972 में रहीम खान फिर से इस सीट से निर्दलीय जीत दर्ज की. इस बार भी उन्होंने कांग्रेस के खुर्शीद अहमद को हराया था. 1982 के उपचुनाव में भी रहीम खान ने यहां से तीसरी बार निर्दलीय जीत हासिल की. 1989 के उपचुनाव में नूह सीट से हसन मोहम्मद ने निर्दलीय जीत दर्ज की.

हालांकि, इसके बाद 16 साल तक इस सीट पर पार्टियों का ही कब्जा रहा. 2005 में निर्दलीय हबीबुर रहमान ने फिर से निर्दलीय जीत दर्ज की. नूह सीट पर मुस्लिमों की आबादी ज्यादा है.

3. निलोखेरी- करनाल की निलोखेरी सीट पर भी निर्दलीय का दबदबा रहा है. अब तक यहां से 5 बार निर्दलीय विधायक जीतकर सदन पहुंच चुके हैं. इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पहली बार 1968 में चंदा सिंह ने जीत दर्ज की थी. सिंह ने इस चुनाव में कांग्रेस के राम स्वरूप गिरी को हराया था.

1982 में चंदा सिंह दूसरी बार इस सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए. 1987 में जय सिंह राना ने निर्दलीय लड़कर चंदा सिंह को हरा दिया. राना 1991 में भी इस सीट से निर्दलीय ही जीत हासिल की. हालांकि, इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए.

2019 में इस सीट से फिर निर्दलीय को ही जीत मिली. धर्मपाल गोंडर ने निर्दलीय लड़कर बीजेपी के भगवान दास से यह सीट छीन ली.

4. हाथिन- पलवल जिले की हाथिन सीट से भी 4 बार निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं. यहां से 1968 में पहली बार हेमराज ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. उन्होंने इस चुनाव में कांग्रेस के देवी सिंह तेवतिया को हराया.

1972 के चुनाव में हेमराज कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में उतरे. इस बार उन्हें निर्दलीय रामजी लाल ने हरा दिया. दिलचस्प बात है कि बाद के सालों में रामजी लाल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे तो उन्हें हार ही नसीब हुई.

2005 में इस सीट से निर्दलीय हर्ष कुमार ने जीत दर्ज की. हर्ष ने कांग्रेस के चौधरी जालेब खान को पराजित किया. 2009 में जालेब खान निर्दलीय उतर गए और कांग्रेस सिंबल पर उतरे हर्ष को हरा दिया.

राज्य में भी रहा है निर्दल का दबदबा

2005 के चुनाव में हरियाणा से 10 निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2009 में इसकी संख्या में गिरावट आई, लेकिन फिर भी 6 निर्दलीय सदन पहुंचने में कामयाब रहे. 2014 में निर्दलीय विधायकों की संख्या 5 थी जो 2019 में बढ़कर 7 हो गई.

2009 और 2019 में निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाई.