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Politics News:गांधी परिवार दक्षिण की संजीवनी से मजबूत होता रहा, कब-कब बची साख

Politics News: भारतीय राजनीति में कांग्रेस पर जब-जब संकट गहराया तो सियासी संजीवनी उत्तर भारत से नहीं बल्कि दक्षिण से मिली. कांग्रेस को दक्षिण से मिली संजीवनी

Politics News: भारतीय राजनीति में जब भी कांग्रेस पार्टी को संकट का सामना करना पड़ा है, तब दक्षिण भारत ने हमेशा उसके लिए संजीवनी का काम किया है। महाभारत में जब लक्ष्मण रावण के पुत्र मेघनाद के दिव्यास्त्र से मूर्छित हुए थे, तब हनुमान जी ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर उनकी जान बचाई थी। ठीक इसी तरह, जब कांग्रेस राजनीतिक मुश्किलों में घिरी, तब दक्षिण भारत ने उसे न केवल बचाया बल्कि नई ताकत भी दी। यह कहानी कांग्रेस के लिए एक लंबी यात्रा है, जिसमें इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया और राहुल गांधी तक के अनुभव शामिल हैं।

दक्षिण भारत: कांग्रेस की सेफ पैसेज

कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत हमेशा से एक सुरक्षित मार्ग रहा है। हाल ही में, राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने के बाद, प्रियंका गांधी ने यहाँ चुनावी मैदान में प्रवेश किया है। उनका मुकाबला बीजेपी की नव्या हरिदास और लेफ्ट के सत्यन मोकेरी से है। राहुल गांधी ने वायनाड के लोगों से अपने भावनात्मक संबंधों का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने उन्हें मुश्किल समय में ऊर्जा प्रदान की थी।

दक्षिण भारत ने कांग्रेस को कई बार मुश्किल समय में संजीवनी प्रदान की है। 1977 के आम चुनावों में जब कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब थी, तब दक्षिण के राज्यों ने पार्टी की लाज बचाई। कांग्रेस को कुल 154 सीटें मिलीं, जिनमें से 92 सीटें सिर्फ दक्षिण से आई थीं।

आपातकाल के दौरान दक्षिण का समर्थन

आपातकाल के समय में, जब इंदिरा गांधी को राजनीतिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, तब कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट ने उनकी राजनीतिक जिंदगी को संजीवनी दी। इंदिरा गांधी ने वहाँ से चुनाव लड़ा और 77,000 वोटों से जीत हासिल की, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इसके बाद इंदिरा गांधी ने दक्षिण भारत को अपने राजनीतिक कर्मभूमि के रूप में अपनाया और 1980 में फिर से सत्ता में आईं।

सोनिया गांधी का संघर्ष

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी ने पार्टी की कमान संभाली, लेकिन 1989 में कांग्रेस उत्तर भारत से कमजोर हुई। इसके बाद सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर संभाली, और दक्षिण ने फिर से कांग्रेस की लाज बचाई। 1999 में सोनिया गांधी ने अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ा, जहाँ उन्होंने एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की।

राहुल और प्रियंका गांधी की नई राह

2014 में जब कांग्रेस का उत्तर भारत में सफाया हुआ, तब राहुल गांधी ने वायनाड से चुनाव लड़कर पार्टी को एक नई राह दिखाई। 2019 में भी वायनाड ने कांग्रेस को महत्वपूर्ण सीटें दिलाईं। अब प्रियंका गांधी को वायनाड से उपचुनाव में उतारकर कांग्रेस ने यह संदेश दिया है कि वह दक्षिण भारत को पूरी अहमियत देती है।

दक्षिण में कांग्रेस की स्थिति

कांग्रेस पहले से ही कर्नाटक और तेलंगाना में सरकारों में है, और तमिलनाडु में डीएमके के साथ सहयोगी है। प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी कांग्रेस के मिशन-दक्षिण का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य दक्षिण भारत में पार्टी की जड़ों को मजबूत करना है।

निष्कर्ष

कांग्रेस पार्टी के लिए दक्षिण भारत हमेशा एक संजीवनी की तरह रहा है। यह न केवल पार्टी के अस्तित्व के लिए आवश्यक है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पार्टी अपनी पहचान और ताकत को बनाए रख सके। जैसे हनुमान जी ने लक्ष्मण की जान बचाई थी, ठीक वैसे ही दक्षिण भारत ने कांग्रेस को हर संकट में उबारने का काम किया है। आज, जब प्रियंका गांधी चुनावी मैदान में हैं, तो यह स्पष्ट है कि कांग्रेस अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने और दक्षिण भारत में अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिए तत्पर है।

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