J&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर को होने जा रहा है, जिसमें 26 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इस चरण में श्रीनगर जिले की महत्वपूर्ण सीटें जैसे हजरतबल, खानयार, हब्बाकदल, लाल चौक, चन्नपोरा, जदीबल, ईदगाह और सेंट्रल शाल्टेंग शामिल हैं। इसके साथ ही बडगाम, बीरवाह, खानसाहिब, चरार-ए-शरीफ और चदूरा सीटों पर भी मतदान होगा। इस चुनावी चरण में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के नेता उमर अब्दुल्ला बडगाम से मैदान में हैं। खास बात यह है कि उमर इस बार दो सीटों, गांदरबल और बडगाम से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन इन सीटों पर उनकी पार्टी के सामने कई चुनौतियाँ हैं।
गुपकार गठबंधन से अलग पीडीपी का कड़ा मुकाबला
महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), जो पहले गुपकार गठबंधन का हिस्सा थी, इस बार अकेले चुनाव लड़ रही है। इसका सीधा असर नेशनल कॉन्फ्रेंस पर पड़ा है, क्योंकि पीडीपी ने कई महत्वपूर्ण सीटों पर NC को कड़ी टक्कर दी है। खासकर गांदरबल और बडगाम जैसी सीटों पर पीडीपी ने मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं। गांदरबल में उमर अब्दुल्ला के सामने पीडीपी के आगा सैयद मैदान में हैं, जो उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।
निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या
इस बार के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सामने सबसे बड़ी चुनौती निर्दलीय उम्मीदवारों की भरमार है। कई निर्दलीय उम्मीदवार, जो पहले पार्टी से जुड़े रहे हैं या अन्य दलों से नाराज होकर चुनावी मैदान में उतरे हैं, NC के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इन निर्दलीय उम्मीदवारों का चुनावी मैदान में उतरना वोटों के विभाजन की संभावना को बढ़ा रहा है, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है।
आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवार और पीडीपी की रणनीति
नेशनल कॉन्फ्रेंस के कुछ उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक आरोप लगे हुए हैं, और पीडीपी के स्थानीय नेता इस मुद्दे को जनता के सामने जोर-शोर से उठा रहे हैं। इससे भी NC की चुनावी स्थिति प्रभावित हो रही है। पीडीपी के स्थानीय नेताओं और निर्दलीय उम्मीदवारों ने इस मुद्दे को अपनी चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाया है, जिससे मतदाताओं के बीच नाराजगी पैदा की जा रही है।
अलगाववादियों का राजनीति में प्रवेश
इस बार का चुनाव कश्मीर की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लेकर आया है। अलगाववादी नेता, जो पहले चुनाव का बहिष्कार करते थे, अब खुद चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है, जिसमें अलगाववादी नेता भी किस्मत आजमा रहे हैं। यह बदलाव नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए गंभीर चुनौती साबित हो रहा है, क्योंकि इन नेताओं का चुनाव में उतरना NC के पारंपरिक वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा सकता है।
आंतरिक चुनौतियाँ और मनोबल की कमी
नेशनल कॉन्फ्रेंस को बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ आंतरिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला की इंजीनियर राशिद के हाथों हार ने पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा दिया था। इस हार का असर विधानसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है। पार्टी के बड़े नेताओं की हार से कार्यकर्ताओं में मनोवैज्ञानिक तौर पर निराशा का माहौल है, जिससे पार पाना पार्टी के लिए जरूरी हो गया है। इस स्थिति से निपटने के लिए उमर अब्दुल्ला खुद मैदान में कड़ी मेहनत कर रहे हैं और चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। पीडीपी, निर्दलीय उम्मीदवारों, आपराधिक आरोपों और अलगाववादी नेताओं की भागीदारी ने इस चुनाव को काफी पेचीदा बना दिया है। उमर अब्दुल्ला की मेहनत और पार्टी की रणनीति पर यह निर्भर करेगा कि NC इन चुनौतियों से कैसे निपटती है और कश्मीर घाटी में अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब होती है।