Supreme Court:बांग्लादेश से आए लोगों को मिलेगी भारतीय पहचान! क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A?

11:54 AM Oct 18, 2024 | zoomnews.in

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में असम में बांग्लादेश से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने वाली नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A को वैध और संवैधानिक ठहराया है। इस फैसले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से पारित किया। यह फैसला असम समझौते से जुड़े प्रवासियों की नागरिकता को लेकर लंबे समय से चली आ रही बहस पर विराम लगाता है।

धारा 6A: असम समझौते का हिस्सा

धारा 6A को 1985 में असम समझौते के बाद नागरिकता अधिनियम में शामिल किया गया था। इस समझौते पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अखिल असम छात्र संघ (AASU) के बीच हस्ताक्षर हुए थे। यह प्रावधान 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 तक असम में आए प्रवासियों की नागरिकता से संबंधित है। असम समझौते के अनुसार, इन प्रवासियों को भारतीय नागरिकता पाने के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक था, जबकि 25 मार्च, 1971 के बाद आए प्रवासियों को देश से बाहर भेजने का प्रावधान था।

धारा 6A की संवैधानिकता की चुनौती

असम के विभिन्न संगठनों और नागरिक समूहों ने धारा 6A को असम की सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय संरचना के लिए खतरा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह प्रावधान असम को भारत के अन्य राज्यों से अलग करता है और बड़े पैमाने पर प्रवासियों को बढ़ावा देता है, जिससे असम की जनसंख्या में असंतुलन हो गया है। याचिकाकर्ताओं ने 1951 को प्रवासियों के लिए कट-ऑफ तिथि मानने की मांग की थी, ताकि अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाला जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 19 अक्टूबर को बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A को संवैधानिक ठहराया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और तीन अन्य न्यायाधीशों ने कहा कि असम में प्रवासियों की आमद को देखते हुए यह प्रावधान उचित है। कोर्ट ने माना कि असम की भू-राजनीतिक स्थिति और विदेशी प्रवासियों की पहचान एक जटिल प्रक्रिया है, इसलिए संसद के पास इसे लागू करने का अधिकार है।

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 6A विशेष रूप से असम में बढ़ते प्रवासियों के दबाव को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी और इसका संवैधानिक ढांचा उचित है। अन्य तीन जजों—जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा—ने भी इस फैसले से सहमति जताई।

जस्टिस जेबी पारदीवाला की असहमति

हालांकि, जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस फैसले से असहमति जताई और धारा 6A को असंवैधानिक करार दिया। उनका तर्क था कि धारा 6A की वजह से जाली दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान असम की जनसांख्यिकी और सामाजिक संरचना को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर असम में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। अखिल असम छात्र संघ (AASU), जिसने 1979-1985 के बीच अवैध प्रवासियों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, ने इस फैसले का स्वागत किया। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम समझौते की वैधता को बरकरार रखा है, जिसके तहत असम में अवैध रूप से आए प्रवासियों की पहचान कर उन्हें बाहर किया जाना चाहिए।

हालांकि, AASU के पूर्व नेता मतिउर रहमान, जिन्होंने धारा 6A को चुनौती दी थी, ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इससे असम विदेशियों के लिए "डंपिंग ग्राउंड" बन जाएगा और राज्य की सांस्कृतिक पहचान पर खतरा मंडराने लगेगा।

केंद्र सरकार का रुख

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने असम में बढ़ती अप्रवासी समस्या पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि धारा 6A के माध्यम से प्रवासियों की आमद एक सीमित समय अवधि तक ही रहेगी, लेकिन इसे असंवैधानिक ठहराना असम की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। साथ ही, उन्होंने स्वीकार किया कि असम में प्रवासियों के बढ़ते दबाव से संसाधनों पर बोझ पड़ा है और यह राज्य की सामाजिक संरचना को प्रभावित कर रहा है।

भारत-बांग्लादेश सीमा और प्रवासन

भारत-बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर की सीमा में से 267 किलोमीटर असम से जुड़ी है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान बड़ी संख्या में लोग असम की ओर प्रवासित हुए थे, जिससे राज्य में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई। असम के स्थानीय निवासी और संगठन इस अवैध प्रवास के खिलाफ लंबे समय से विरोध करते आ रहे हैं, जिससे राज्य में सांस्कृतिक और राजनीतिक संघर्ष बढ़ा है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असम की प्रवासी समस्या पर कानूनी स्थिति स्पष्ट हो गई है। धारा 6A की वैधता को बरकरार रखे जाने से असम समझौते के प्रावधानों के तहत नागरिकता का सवाल अब और अधिक स्पष्ट हो गया है। हालांकि, इस फैसले के दीर्घकालिक परिणामों को लेकर राज्य में अभी भी असंतोष और आशंका बनी हुई है, जिसे संबोधित करने की जरूरत होगी।