Asaduddin Owaisi News: अटाला मस्जिद विवाद को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। ओवैसी ने कहा कि देश को इतिहास की लड़ाई में धकेला जा रहा है और इससे 14% मुस्लिम आबादी दबाव में है। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में भारत महाशक्ति नहीं बन सकता। ओवैसी ने सत्ताधारी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि हर 'वाहिनी', 'परिषद', और 'सेना' इन्हीं के समर्थन से कार्य कर रही हैं। उन्होंने पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा करने और इन विवादों को समाप्त करने की अपील की।
क्या है अटाला मस्जिद विवाद?
जौनपुर स्थित अटाला मस्जिद का मामला अब इलाहाबाद हाई कोर्ट तक पहुंच चुका है। यह मस्जिद 14वीं शताब्दी में बनाई गई थी, लेकिन स्वराज वाहिनी एसोसिएशन ने दावा किया है कि जहां यह मस्जिद है, वहां पहले अटला देवी का मंदिर था। संगठन ने जिला अदालत में याचिका दायर की है, जिसमें अटाला मस्जिद में पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा गया है।
मस्जिद की प्रबंधन समिति ने स्थानीय अदालत के आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी है। समिति ने कहा है कि यह आदेश मस्जिद को मंदिर बताने वाले दावों पर आधारित है और यह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उल्लंघन करता है। इस मामले की सुनवाई 9 दिसंबर 2024 को हाई कोर्ट में होगी।
ओवैसी का बयान और सत्ताधारी पार्टी पर हमला
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पूजा स्थल अधिनियम का पालन सुनिश्चित करे। 1991 का यह अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार बनाए रखा जाएगा। ओवैसी ने कहा कि झूठे विवाद खड़े कर धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने सत्ताधारी पार्टी पर आरोप लगाया कि उनके समर्थित संगठनों के माध्यम से जानबूझकर विवाद खड़े किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, "देश को इतिहास की लड़ाई में धकेलने से हम महाशक्ति नहीं बन सकते। सत्तारूढ़ दल को चाहिए कि वह अपने समर्थन वाले संगठनों पर लगाम लगाए और पूजा स्थल अधिनियम की रक्षा करे।"
पूजा स्थल अधिनियम और इसके मायने
1991 में बनाए गए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उद्देश्य धार्मिक स्थलों की स्थिति को 1947 की स्थिति के अनुसार बनाए रखना है। इसका मतलब है कि धार्मिक स्थलों के स्वामित्व या स्थिति में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता। हालांकि, अयोध्या विवाद को इस अधिनियम से छूट दी गई थी।
लेकिन हाल के वर्षों में देश के कई हिस्सों में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद उठे हैं। यह मामला न केवल धार्मिक भावनाओं बल्कि कानूनी और राजनीतिक तकरार का भी मुद्दा बन गया है।
विवाद का भविष्य और संभावित असर
अटाला मस्जिद विवाद का नतीजा न केवल जौनपुर के इस मामले पर बल्कि देश के अन्य धार्मिक स्थलों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आने वाले दिनों में कानूनी और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करेगा।
ओवैसी का बयान ऐसे समय में आया है जब देश में धार्मिक मुद्दे एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन रहे हैं। उन्होंने धार्मिक सौहार्द बनाए रखने और कानून के तहत विवाद सुलझाने की अपील की है। यह देखना अहम होगा कि अदालत और सरकार इस विवाद को कैसे संभालती है।
निष्कर्ष:
ऐसे मुद्दों पर संवेदनशीलता और कानूनी समझदारी की जरूरत है। यह विवाद न केवल न्यायपालिका की परीक्षा है, बल्कि सरकार की प्रतिबद्धता को भी परखता है कि वह धार्मिक सौहार्द और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कितनी तत्पर है।