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UPSC Lateral Entry:जानिए UPSC की लेटरल एंट्री क्या है, विपक्ष ने जिसपर काटा बवाल?

UPSC Lateral Entry: यूपीएससी ने लेटरल एंट्री के जरिए विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशकों के 45 पदों पर भर्तियां निकाली हैं, जिसको लेकर अब बवाल हो गया है. विपक्ष के कई नेताओं ने इस भर्ती प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है.

UPSC Lateral Entry: यूपीएससी ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशकों के 45 पदों पर भर्ती के लिए आवेदन निकाला है. ये भर्तियां लेटरल एंट्री के तहत की जाएंगी. बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए अधिकारी बनने का ये सुनहरा मौका है. इसमें उम्मीदवारों का चयन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर किया जाएगा. हालांकि विपक्ष ने यूपीएससी की इस भर्ती प्रक्रिया को लेकर विरोध शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर मायावती और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी विरोध जताया है और इस भर्ती प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यूपीएससी की ये लेटरल एंट्री है क्या और इसपर इतना बवाल क्यों हो रहा है?

लेटरल एंट्री को समझने से पहले ये समझना और जानना जरूरी है कि यूपीएससी में भर्ती होती कैसे है? दरअसल, यूपीएससी को देश की सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है, जो तीन चरणों में होती है. पहले प्रीलिम्स परीक्षा होती है, जो 400 अंकों की होती है और इसमें पास करने वाले उम्मीदवारों को ही मुख्य परीक्षा में बैठने का मौका मिलता है. मुख्य परीक्षा 1,750 अंकों की होती है. जो उम्मीदवार मुख्य परीक्षा पास करते हैं, उन्हें ही आखिरी राउंड यानी इंटरव्यू में शामिल होने का मौका मिलता है. इंटरव्यू 275 अंकों का होता है.

फिर मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में मिले अंकों के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार की जाती है और उसी के आधार पर उम्मीदवारों का आईएएस (IAS), आईएफएस (IFS), आईपीएस (IPS) और तमाम मंत्रालयों और सरकारी विभागों में अफसर के पद पर सेलेक्शन होता है. अब आइए जानते हैं कि यूपीएससी की लेटरल एंट्री क्या है?

क्या है लेटरल एंट्री?

यूपीएससी में लेटरल एंट्री की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. इसे सीधी नियुक्ति कहा जाता है. दरअसल, केंद्र सरकार ने 2017 में ब्यूरोक्रेसी में सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से नियुक्ति के अलावा लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से बड़े पदों पर अधिकारियों की भर्ती करने पर विचार करने की बात कही थी. सरकार का कहना था कि निजी क्षेत्र के अनुभवी उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को भी विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव स्तर के पदों पर नियुक्त किया जाए, ताकि ब्यूरोक्रेसी को और गति मिले. इस विचार के साथ ही अगले साल यानी 2018 में ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री की शुरुआत हो गई और इसके तहत पहली बार सिर्फ इंटरव्यू के जरिए विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव के 9 पदों पर निजी क्षेत्र के उच्चाधिकारियों का चयन हुआ.

इस बार किस पद पर कितनी वैकेंसी?

इस बार यूपीएससी ने लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के लिए जो आवेदन निकाला है, उसमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव पदों पर भर्ती की बात कही गई है. वित्त मंत्रालय में दो पद, गृह मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में एक-एक पद पर संयुक्त सचिव की भर्ती होगी. इसके अलावा कृषि मंत्रालय में 8, शिक्षा मंत्रालय में 2 और विदेश मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में एक-एक पद पर निदेशक/उप सचिव की भर्ती होगी. ये भर्तियां 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट यानी अनुबंध पर की जाएंगी और परफॉर्मेंस और जरूरत के हिसाब से कॉन्ट्रैक्ट को 5 साल तक के लिए बढ़ाया भी जा सकता है.

उम्र और अनुभव कितना चाहिए?

संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर भर्ती के लिए यूपीएससी ने कम से कम 15 साल का अनुभव मांगा है, जबकि निदेशक स्तर के पदों के लिए अनुभव 10 साल और उप सचिव स्तर के पदों के लिए अनुभव 7 साल मांगा गया है. संयुक्त सचिव स्तर के पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवार की उम्र सीमा 40 से 55 साल के बीच होनी चाहिए, जबकि निदेशक स्तर के पद के लिए उम्र सीमा 35 से 45 साल और उप सचिव स्तर के पद के लिए उम्र सीमा 32 से 40 साल होनी चाहिए.

कौन कर सकता है आवेदन?

वर्तमान में किसी भी राज्य सरकार में कार्यरत अधिकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू), स्वायत्त निकायों, वैधानिक संगठनों, यूनिवर्सिटीज, रिसर्च से जुड़े संस्थानों में कार्यरत समकक्ष अधिकारी, निजी क्षेत्र की कंपनियों, कंसल्टेंसी ऑर्गेनाइजेशन और अंतरराष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय संगठनों में समकक्ष पदों पर कार्यरत लोग ही इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं. केंद्र सरकार का कोई भी कर्मचारी इन पदों पर आवेदन नहीं कर सकता है.

क्यों विपक्ष ने काटा बवाल?

यूपीएससी की लेटरल एंट्री भर्ती प्रक्रिया पर विपक्ष ने खूब बवाल काटा है. यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि इस भर्ती के जरिए बीजेपी अपनी विचारधारा के लोगों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की साजिश कर रही है. वहीं, मायावती का कहना है कि इस सीधी भर्ती से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को प्रमोशन से वंचित रहना पड़ेगा. उन्होंने ये भी कहा कि अगर इन सरकारी नियुक्तियों में एससी (SC), एसटी (ST) और ओबीसी (OBC) वर्ग के लोगों को उनके कोटे के अनुसार नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का उल्लंघन होगा.

तेजस्वी यादव ने क्या कहा?

इस मुद्दे पर बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का कहना है कि केंद्र सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ खिलवाड़ कर रही है, क्योंकि यूपीएससी ने लेटरल एंट्री के जरिए जो सीधी भर्तियां निकाली हैं, उनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘अगर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से 45 आईएएस की नियुक्ति करती तो उसे एससी/एसटी और ओबीसी को आरक्षण देना पड़ता यानी 45 में से 22-23 अभ्यर्थी दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से चयनित होते.

राहुल गांधी ने क्या कहा?

इस मामले में राहुल गांधी ने भी बीजेपी और केंद्र सरकार पर हमला बोला है. उनका कहना है कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. उन्होंने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘IAS का निजीकरण आरक्षण खत्म करने की मोदी की गारंटी है.

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