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Rajasthan Politics:क्या CM के खिलाफ मीणा का इस्तीफा बगावत है? उपचुनाव में बिगड़ न जाए गेम

Rajasthan Politics: किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा 25 जून को दे दिया था, लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐलान विधानसभा सत्र शुरू होने के साथ किया गया. ऐसे में मीणा की नाराजगी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी का सियासी गेम बिगाड़ ना दे?

Rajasthan Politics: राजस्थान में छह महीने पहले बनी भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को तगड़ा झटका लगा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के चलते भले ही किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया हो, लेकिन इसे सीएम भजनलाल के खिलाफ सियासी बगावत के तौर पर देखा जा रहा है. मुख्यमंत्री ने अभी तक इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया है. मीणा ने ऐलान किया है कि उन्हें न सरकार में और न ही संगठन में कोई पद की लालसा है. किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा 25 जून को दे दिया था, लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐलान विधानसभा सत्र शुरू होने के साथ किया गया. ऐसे में मीणा की नाराजगी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी का सियासी गेम बिगाड़ ना दे?

लोकसभा चुनावों के दौरान किरोड़ी लाल मीणा ने खुलेतौर पर वादा किया था कि पूर्वी राजस्थान और मीणा बहुल इलाके में आने वाली सभी सातों संसदीय सीटें बीजेपी जीतेगी और एक भी सीट हारती है तो मंत्री पद से इस्तीफे दे देंगे. 2024 में दौसा, टोंक सवाई माधोपुर, भरतपुर और करौली-धौलपुर चार सीटें बीजेपी हार गई और कोटा, जयपुर ग्रामीण और भीलवाड़ा सीट ही जीत सकी. इस तरह अपने वादे के मुताबिक किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफे दे दिया. 2024 चुनाव की हार से अभी राजस्थान में बीजेपी उभरी नहीं थी कि मीणा ने मंत्री पद छोड़कर बीजेपी को तगड़ा झटका दे दे दिया है.

मीणा का राजनीति में कितना बड़ा कद

किरोड़ी लाल मीणा राजस्थान बीजेपी के दिग्गज नेता माने जाते हैं और मीणा समुदाय का चेहरा हैं. सूबे में सीएम भजनलाल शर्मा और दोनों डिप्टी सीएम- दिया कुमारी और प्रेमचंद्र बैरवा के बाद किरोड़ी लाल मीणा सबसे पावरफुल मंत्री थे. तीन बार के सांसद और छठी बार विधायक मीणा का अपना सियासी कद है, जिन्हें राजस्थान सरकार में चार मंत्री पद दिए गए थे. इससे ही उनके सियासी कद का अंदाजा लगाया जा सकता है और गहलोत सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मोर्चा खोलने वाले बीजेपी नेताओं में उनका नाम आता है.

क्यों कहा जाता है विद्रोही नेता

किरोड़ी लाल मीणा के सियासी तेवर के चलते ही उन्हें विद्रोही नेता कहा जाता रहा है. भजनलाल सरकार बने अभी छह महीने ही हुए हैं, लेकिन किरोड़ी लाल मीणा के अपने ही कई नेताओं के साथ सियासी टकराव हो चुके हैं. मीणा लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं और अब नतीजे के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने विद्रोही रुख से भी अवगत करा दिया है. अगर उनकी भजनलाल से नाराजगी नहीं है तो विधानसभा सत्र के बीच में इस्तीफा दे कर मुख्यमंत्री के लिए टेंशन क्यों खड़ी कर दी है. लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद से कांग्रेस वैसे ही भजनलाल सरकार पर हमलावर थी और अब मीणा के इस्तीफे से उसे मौका मिल गया है.

पांच सीटों पर होने हैं उपचुनाव

लोकसभा चुनाव में पांच विधायकों के सांसद चुने जाने के चलते राजस्थान की पांच विधानसभा सीटें खाली हो गई हैं, जिस पर उपचुनाव होने है. भजनलाल कैबिनेट से किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफा देने के चलते उपचुनाव में बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है. उपचुनाव वाली पांच में से तीन चौरासी, देवली और दौसा सीट आदिवासी प्रभाव वाली सीटें हैं. टोंक सवाई माधोपुर सीट से कांग्रेस के हरीश मीणा चुनाव जीते जबकि यहीं से किरोड़ी लाल मीणा विधायक हैं. पांच सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव के बीच मीणा का इस्तीफा क्या बीजेपी को मुश्किल में डालने वाला नहीं है?

बीजेपी कर रही मीणा को मनाने की कोशिश

बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि किरोणी लाल मीणा घर बैठने वाले नेताओं में से नहीं हैं और न ही चुप रहने वाले हैं. अब जब मंत्री पद का प्रोटोकॉल भी नहीं है तो मुखर होकर आवाज उठाने और धरना-प्रदर्शन करने के लिए भी पूरी तरह आज़ाद हैं, जैसा कि वो गहलोत सरकार के समय किया करते थे. हालांकि, यह कोशिश बीजेपी में हो रही है कि किरोड़ी लाल मीणा को समझाए और उन्हें मंत्री पद पर बनाए रखा जाए. इसी के मद्देनजर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा है कि कृषि मंत्री किरोड़ी लाल से सरकार में अपने अनुभव का लाभ देते रहने का अनुग्रह किया गया है. मुख्यमंत्री से भी बात हुई है. हमारी कोशिश है कि वे मंत्री बने रहें.

क्या मीणा का इस्तीफा मंजूर किया जाएगा?

विधानसभा की पांच सीटों पर होने वाले उपचुनाव के चलते मीणा के इस्तीफे का मंजूर होना मुश्किल है. इसके पीछे सियासी गणित यह है कि मीणा समाज से सबसे बड़े नेता किरोड़ी लाल मीणा हैं और उपचुनाव में मीणा वोट की भूमिका अहम है. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी उपचुनाव में किसी तरह का कोई राजनीतिक रिस्क नहीं लेना चाहेगी. इसीलिए बीजेपी उन्हें साधकर अपने साथ फिलहाल रखना चाहती है, जिसके चलते मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अभी तक उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया है.

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