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Election 2024:मायावती हुईं इस बार फेल तो बिखर जाएगी BSP? वोट बैंक बचाने की कोशिश

Election 2024: बसपा सुप्रीमो मायावती के पास अपनी पार्टी के वोटबैंक को बचाने का एक बड़ा मौका मिला है. इसे वो अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती हैं. यही वजह है कि आजकल वो एसटी-एससी आरक्षण में क्रीमी लेयर के मुद्दे पर सुबह-सुबह ही सोशल मीडिया पर पोस्ट कर

Election 2024: मायावती और उनकी पार्टी बीएसपी इस समय संकट के दौर से गुजर रही हैं। यूपी में बीएसपी का प्रभाव कम हो गया है, जहां पार्टी को हाल के लोकसभा चुनावों में कोई सीट नहीं मिली और वोट शेयर सिंगल डिजिट में चला गया। मायावती अब सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी रिजर्वेशन पर फैसले को एक बड़ा मुद्दा मान रही हैं, जिससे पार्टी की खोई हुई ताकत वापस पाई जा सके। बीएसपी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है, और 27 अगस्त को लखनऊ में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मायावती फिर से पार्टी के अध्यक्ष चुनी जाएंगी। उनकी कोशिश है कि इस मुद्दे के जरिए वे दलित वोटरों को एकत्रित कर सकें और पार्टी को पुनर्जीवित कर सकें।

एससी-एसटी रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मायावती को उम्मीदें नजर आती हैं. उम्मीद बीएसपी को पुराने फार्म में लाने की. चुनौतियों का पहाड़ उनके सामने है. अब तक उनका साथ दे रहा दलित वोटर धीरे-धीरे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में शिफ्ट होने लगा है. गैर जाटव वाल्मीकि, खटीक और सोनकर जाति के वोटर तो पहले ही बीजेपी में जा चुके हैं. यूपी में दलित समाज की युवा पीढ़ी चंद्रशेखर रावण की तरफ जाने लगे हैं.

अरसे बाद बीएसपी नेताओं का जोश हाई

मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने यूपी में लोकसभा प्रचार की शुरुआत नगीना से की थी. चंद्रशेखर यहां से अपनी पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे. जीत कर वे लोकसभा के सांसद बन गए हैं. वे हर मंच से मायावती को अपना नेता बताते हैं. लेकिन उनकी पार्टी बीएसपी का वोट काट रही है. लंबे समय बाद बीएसपी नेताओं का जोश हाई है. भारत बंद के दौरान देश के कई जगहों पर पार्टी के कार्यकर्ता नीले झंडे लेकर पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बीएसपी समर्थक सड़क पर उतरे.

बीएसपी में धरना और प्रदर्शन की परंपरा नहीं रही है. लेकिन इस बार तो भारत बंद में पटना से लेकर देवरिया तक पार्टी कार्यकर्ता पुलिस से भिड़ गए. लाठी डंडे खाए. पर कोटे के अंदर कोटे वाले आरक्षण का विरोध जारी रहा. पार्टी अध्यक्ष मायावती को इतने बड़े समर्थन की उम्मीद नहीं थी. लोकसभा चुनाव में तो पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया. यूपी में बीएसपी के बस एक विधायक हैं. ऐसे हालात में कार्यकर्ताओं के उत्साह ने मायावती को नई ताकत दे दी है.

कई सालों बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारा

बीएसपी के एक नेता इस बात से दुखी थे कि बहिन जी सोशल मीडिया तक सिमट गई हैं. लेकिन बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने कई सालों बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने मायावती की कोशिश अपना वोट बैंक बचाने की है. पिछले कुछ समय से वे अपने दिन की शुरुआत इसी मुद्दे से करती हैं. सोशल मीडिया पर सवेरे-सवेरे वे दलित आरक्षण को लेकर बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के खिलाफ लिखती हैं. एससी रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर से लेकर सब कैटेगरी बनाने का मायावती जबरदस्त विरोध कर रही हैं. बीएसपी चीफ को लगता है इस फैसले से यूपी में दलित वोट का बिखराव रूक सकता है.

27 अगस्त को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक

बीएसपी चीफ मायावती ने 27 अगस्त को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. देश भर से पार्टी के सीनियर नेता मीटिंग के लिए लखनऊ पहुंचेंगे. इस बैठक में मायावती को फिर से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाएगा. इससे पहले वे 2019 में अध्यक्ष बनीं थीं. पहले तीन साल पर पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होता था. पर अब पांच सालों बाद चुनाव होने लगे हैं.

मायावती से पहले कांशीराम पार्टी के अध्यक्ष चुने जाते रहे. उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद मायावती पहली बार 18 सितंबर 2003 को अध्यक्ष चुनी गई थीं. लखनऊ में होने वाली बैठक का पहला एजेंडा पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव है. फिर दलित रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मायावती देश भर में जन समर्थन जुटाना चाहती हैं. उन्होंने मोदी सरकार से संसद में बिल लाकर कोर्ट के फैसले को बदलने की मांग की है. इसी इमोशनल मामले से मायावती अपनी खोई हुई जनाधार को वापस पाने की तैयारी में हैं.

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