CM Siddaramaiah: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक बड़ा झटका लगा है, क्योंकि कर्नाटक हाई कोर्ट ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में उनकी याचिका खारिज कर दी है। इस मामले में राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी, जिसे मुख्यमंत्री ने अदालत में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट की नागप्रसन्ना पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिससे सिद्धारमैया के सामने अब नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
राज्यपाल की मंजूरी और याचिका की पृष्ठभूमि
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने प्रदीप कुमार एस.पी., टी.जे. अब्राहम, और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं के आधार पर 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। आरोप था कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में भूमि आवंटन में अनियमितताएं हुई थीं। आरोप यह भी है कि यह भूमि MUDA द्वारा अधिगृहीत की गई थी, और पार्वती को 3.16 एकड़ जमीन के बदले में विशेष शर्तों पर भूखंड दिए गए थे।
अदालत में सिद्धारमैया की चुनौती
सिद्धारमैया ने 19 अगस्त को राज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने राज्यपाल के आदेश को 'बिना विचार किए' और 'वैधानिक नियमों का उल्लंघन' बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए राज्यपाल के फैसले को बरकरार रखा।
बीजेपी का पलटवार
हाई कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर निशाना साधा। पार्टी ने कहा कि अब सिद्धारमैया के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है। बीजेपी ने यह भी आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे मुख्यमंत्री का पद पर बने रहना नैतिक रूप से गलत है।
कांग्रेस का विरोध
कांग्रेस ने राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ विरोध जताया था। अगस्त में, कांग्रेस विधायकों और मंत्रियों ने ‘राजभवन चलो’ प्रदर्शन किया था। पार्टी ने राज्यपाल पर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया और कहा कि अन्य लंबित मामलों पर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि सिद्धारमैया के मामले में तत्काल अनुमति दी गई।
आगे का रास्ता
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के राजनीतिक करियर पर संकट के बादल मंडराते दिख रहे हैं। अब देखना यह होगा कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं या फिर अपनी सरकार और पार्टी के साथ मिलकर इस मुद्दे से निपटने का प्रयास करते हैं।
कर्नाटक की राजनीति में यह मामला एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है, और इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं।