Sachin Pilot News: पहले दानिश अबरार के साथ मंच साझा और फिर प्रताप सिंह खाचरियावास की मां को देखने पहुंचे.. राजस्थान के सियासी गलियारों में सोमवार को सचिन पायलट का राजनीतिक स्टैंड सुर्खियों का विषय बना हुआ है. वजह है- सचिन पायलट के साथ अबरार और प्रताप खाचरियावास के बीच की पूर्व की अदावत. 2020 में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स की वजह से पायलट के साथ अबरार और खाचरियावास के बीच की दूरियां काफी बढ़ गई थी. इसका असर इन नेताओं के राजनीतिक करियर पर भी देखने को मिला.
अबरार और खाचरियावास चुनाव हार गए तो पायलट राजस्थान की सियासत से दूर हो गए, लेकिन अब जिस तरह से पायलट इन नेताओं के साथ घुल-मिल रहे हैं, उससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर पायलट अपने पुराने करीबियों के साथ फिर से मेल-मिलाप क्यों बढ़ा रहे हैं?
दानिश ने लगाए पायलट जिंदाबाद के नारे
सोमवार को सवाई माधोपुर के बोंली में राजेश पायलट के प्रतिमा स्थापना कार्यक्रम में पूर्व विधायक दानिश अबरार भी आए. अबरार को जब मौलने का मौका मिला, तो उन्होंने सबसे पहले सचिन पायलट से नाराजगी खत्म करने की बात कही. अबरार इसके बाद मंच से पायलट जिंदाबार के नारे लगाने लगे.
राजस्थान में एक वक्त में अबरार को पायलट का करीबी नेता माना जाता था, लेकिन 2020 के रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के बाद दोनोंके बीच दूरी आ गई. पायलट समर्थकों का आरोप है कि जब सचिन ने मुद्दों को लेकर गहलोत सरकार की घेराबंदी की तो अबरार पलटी मार गए.
अबरार इसके बाद पायलट कैंप से बाहर हो गए. 2023 के विधानसभा चुनाव में अबरार को सवाई माधोपुर से टिकट तो जरूर मिला, लेकिन पायलट ने उनके समर्थन में कोई रैली नहीं की. अबरार पायलट से सभा कराने के लिए दिल्ली से लेकर जयपुर तक घुमते रह गए.
इन दूरियों का असर अबरार के चुनावी परिणाम पर भी दिखा. अबरार सवाई माधोपुर सीट पर बुरी तरह हार गए, वो भी तब जब यह सीट गुर्जर और मुस्लिम बाहुल्य है. हार के बाद से ही अबरार राजनीतिक नेप्थय में चल रहे थे.
खाचरियावास से मिले, शिकवे-गिले हुए दूर?
सचिन पायलट सोमवार शाम को अस्पताल में भर्ती पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास की मां को देखने पहुंचे. खाचरियावास ने इसको लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी शेयर की है. 2020 से पहले खाचरियावास की गिनती पायलट के भरोसेमंद नेता के रूप में होती थी.
2018 में जब राजस्थान में सरकार आई तो खाचरियावास को पायलट कोटे से ही मंत्री बनाया गया था. उन्हें पावरफुल परिवहन विभाग की कमान दी गई थी, लेकिन 2020 में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के बाद खाचरियावास और पायलट में दूरी बढ़ गई.
2023 के चुनाव में खाचरियावास सिविल लाइन्स सीट से मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई. खाचरियावास को 2024 में कांग्रेस ने जयपुर लोकसभा से टिकट दिया, लेकिन इस बार भी वे जीत नहीं पाए. खाचरियावास इसके बाद से ही साइड लाइन चल रहे थे.
अब सवाल- कौन सा समीकरण फिट कर रहे पायलट?
जयपुर में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में सचिन पायलट का गोविंद सिंह डोटासरा एक तंज के जवाब में की गई टिप्पणी ‘अब पता नहीं कौन किसकी कुर्सी पर बैठने वाला है’ खूब वायरल हुआ था. इस टिप्पणी के बाद पायलट जिस तरह से पुराने नेताओं को साध रहे हैं, उससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर पायलट राजस्थान में कौन सा समीकरण तैयार कर रहे हैं?
पायलट वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं और उनके पास छत्तीसगढ़ का प्रभार है, लेकिन वे कई बार राजस्थान की ही राजनीति करने की बात कह चुके हैं. कहा जा रहा है कि पायलट की नजर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर है, लेकिन डोटासरा उनके लिए चुनौती बने हुए हैं.
राजस्थान में अब तक खुले तौर पर कांग्रेस के भीतर 2 ही गुट थे. एक अशोक गहलोत का और दूसरा सचिन पायलट का, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा मजबूत हुए हैं. आने वाले वक्त में अगर वे कुर्सी पर और जम गए तो उन्हें साइड करना आसान नहीं होगा. इसकी 2 वजहें भी हैं-
1. गोविंद सिंह डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं और इसकी आबादी राजस्थान में करीब 10 प्रतिशत है, जो सचिन पायलट के गुर्जर समुदाय की आबादी के करीब दोगुनी है. डोटासरा जाटों के गढ़ शेखावटी में काफी लोकप्रिय हैं.
2. गोविंद सिंह डोटासरा को अशोक गहलोत का भी साथ है. 2020 में अशोक गहलोत के ही कहने पर हाईकमान ने डोटासरा को अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी थी. डोटासरा उस वक्त गहलोत सरकार में मंत्री थे.