S Jaishankar News: विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया श्रीलंका यात्रा ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलचल बढ़ा दी है, खासकर चीन के संदर्भ में, जो दक्षिण एशिया में अपनी गहरी पैठ बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। श्रीलंका में अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व में नई सरकार के गठन के बाद जयशंकर की यह पहली यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों की अहमियत को दर्शाती है। राष्ट्रपति दिसानायके के शपथ ग्रहण के कुछ ही दिनों बाद जयशंकर का श्रीलंका दौरा करना भारत-श्रीलंका संबंधों में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे चीन की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है।
जयशंकर की श्रीलंका यात्रा: चीन की चिंता
एस. जयशंकर की यह यात्रा श्रीलंका के राजनीतिक नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संबंधों को पुनः सुदृढ़ करने और भारत-श्रीलंका साझेदारी को नई ऊंचाई देने की दिशा में है। हालांकि, इस यात्रा पर चीन की पैनी नजर बनी हुई है, क्योंकि श्रीलंका में चीन का निवेश और प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन ने श्रीलंका में अपने रणनीतिक हितों को साधने के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता दी है, विशेषकर बंदरगाह परियोजनाओं और अन्य बुनियादी ढांचा विकास के माध्यम से।
हालांकि, श्रीलंका की नई सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन से चीन की चिंताएं बढ़ गई हैं। जयशंकर की इस यात्रा को लेकर चीन इसलिए भी असहज हो सकता है क्योंकि यह यात्रा भारत के पड़ोसी पहले नीति (नेबरहुड फर्स्ट) और सागर दृष्टिकोण (Security and Growth for All in the Region) के तहत की जा रही है, जो भारत के रणनीतिक हितों को मजबूत करती है।
भारत-श्रीलंका संबंध: नई सरकार के साथ नया अध्याय
जयशंकर की यात्रा से यह साफ संकेत मिलता है कि भारत श्रीलंका के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को और गहरा करना चाहता है। कोलंबो में उतरते ही उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने उत्साह को साझा करते हुए कहा कि वह श्रीलंका के नेतृत्व के साथ अपनी बैठकों को लेकर काफी उत्साहित हैं।
उनकी इस यात्रा में श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके और विदेश मंत्री विजिथा हेराथ से मुलाकातें हुईं, जिनमें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई। यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब श्रीलंका को अपने आर्थिक पुनर्निर्माण में सहयोग की सख्त जरूरत है, और भारत इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारतीय परियोजनाओं पर राष्ट्रपति दिसानायके की पूर्व आपत्तियां
दिसानायके ने विपक्ष में रहते हुए भारत द्वारा समर्थित कुछ परियोजनाओं पर आपत्तियां जताई थीं, विशेषकर अदाणी समूह द्वारा संचालित सतत ऊर्जा परियोजनाओं को लेकर। उन्होंने सत्ता में आने पर इन परियोजनाओं की समीक्षा का वादा किया था। ऐसे में जयशंकर की दिसानायके से मुलाकात काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने और क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
भारत की पड़ोसी पहले नीति और सागर दृष्टिकोण
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत श्रीलंका के आर्थिक पुनर्निर्माण में अपना निरंतर सहयोग जारी रखेगा। "नेबरहुड फर्स्ट" नीति और "सागर दृष्टिकोण" दोनों देशों के संबंधों के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। भारत-श्रीलंका साझेदारी को गहराने की दिशा में यह यात्रा दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
श्रीलंका के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों को बनाए रखना भारत की क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब चीन ने श्रीलंका में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
निष्कर्ष
जयशंकर की श्रीलंका यात्रा भारत के कूटनीतिक एजेंडे का हिस्सा है, जो दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ गहरे संबंधों पर केंद्रित है। यह यात्रा न केवल भारत-श्रीलंका संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, बल्कि चीन की बढ़ती उपस्थिति के प्रति भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया भी मानी जा सकती है।
Honored to call on President @anuradisanayake today in Colombo. Conveyed warm greetings of President Droupadi Murmu and PM @narendramodi.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) October 4, 2024
Appreciate his warm sentiments and guidance for the 🇮🇳 🇱🇰 relations. Discussed ways to deepen ongoing cooperation and strengthen India-Sri… pic.twitter.com/bDIpaiT4te