Aam Aadmi Party: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजों के प्रभाव अब दूसरे राज्यों की राजनीति पर भी दिखने लगे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) ने घोषणा की है कि वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी। AAP की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने हाल ही में कहा, "हम दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे।" उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए उसे "अति आत्मविश्वासी" और बीजेपी को "अहंकारी" पार्टी करार दिया।
AAP ने अपने 10 साल के शासनकाल के दौरान किए गए कामों के आधार पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। पार्टी का कहना है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में जो विकास कार्य हुए हैं, वे उनकी मुख्य चुनावी रणनीति होंगे।
AAP का आत्मविश्वास और कांग्रेस पर कटाक्ष
प्रियंका कक्कड़ के बयान से साफ है कि AAP दिल्ली चुनाव में किसी भी प्रकार का गठबंधन नहीं करना चाहती। कक्कड़ ने कहा कि कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार उसके अतिआत्मविश्वास का नतीजा है। यह तंज साफ दर्शाता है कि AAP ने कांग्रेस के साथ किसी भी संभावित गठबंधन की गुंजाइश को पूरी तरह से नकार दिया है।
हरियाणा चुनाव से सीख
हरियाणा चुनाव के परिणामों ने AAP के इस फैसले को और भी मजबूत किया है। हरियाणा में AAP ने गठबंधन के लिए कांग्रेस से बातचीत की थी, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया। AAP हरियाणा में 7-10 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, पर कांग्रेस की राज्य इकाई ने इस पर सहमति नहीं जताई। इस वजह से दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े, जिसका खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ा। कांग्रेस राज्य में बहुमत से दूर रह गई, जबकि AAP अपना खाता खोलने में भी असफल रही।
दिल्ली चुनावों से पहले AAP अब यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह किसी गठबंधन की जटिलताओं में न फंसे। पार्टी के नेता मानते हैं कि गठबंधन न करने से ही उसे बेहतर चुनावी लाभ मिल सकता है, जैसा कि उसके पिछले दिल्ली चुनावों के नतीजों से स्पष्ट है।
दिल्ली में AAP की रणनीति
दिल्ली में पिछले 10 साल से AAP का शासन है। इस दौरान पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में सुधार का दावा किया है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार ने कई योजनाओं और नीतियों के जरिए अपने मतदाताओं का विश्वास जीतने की कोशिश की है।
हालांकि, पार्टी के कई बड़े नेताओं पर शराब घोटाले और अन्य मामलों में लगे आरोपों के बाद स्थिति कुछ जटिल हो गई है। लेकिन पार्टी का कहना है कि ये कानूनी चुनौतियां उनकी चुनावी संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेंगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर पूरी तरह से चुनावी तैयारियों पर ध्यान केंद्रित कर लिया है।
गठबंधन की राजनीति से दूरी
AAP की ओर से यह भी स्पष्ट संकेत मिले हैं कि पार्टी अब कांग्रेस से नाराज है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में गठबंधन की कोशिशों के असफल होने से AAP को यह समझ में आ गया है कि कांग्रेस के साथ साझेदारी से उसे कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा। लोकसभा चुनावों में दोनों दलों ने मिलकर लड़ाई की थी, लेकिन इसका परिणाम भी अपेक्षित नहीं था। बीजेपी ने प्रदेश की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी।
निष्कर्ष
दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला न सिर्फ उसकी आत्मनिर्भरता को दिखाता है, बल्कि यह हरियाणा के चुनाव नतीजों से ली गई सीख का भी परिणाम है। पार्टी अपने काम और केजरीवाल की लोकप्रियता के दम पर चुनाव जीतने का भरोसा जता रही है। वहीं, कांग्रेस और बीजेपी को वह अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानते हुए चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। अब देखना होगा कि AAP की यह रणनीति उसे दिल्ली की सत्ता में तीसरी बार वापसी दिला पाती है या नहीं।