AMU Minority Status: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने का समर्थन किया। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया, जिसमें अदालत ने कहा कि AMU भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक दर्जे की पात्र है। इस फैसले ने 57 साल पहले 1967 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकती।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
AMU की स्थापना का श्रेय सर सैयद अहमद खान को जाता है, जिन्होंने ब्रिटिश भारत में एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान स्थापित करने की आकांक्षा से इसकी नींव रखी थी। उनका सपना था कि भारत में ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी उच्च शिक्षा संस्थाएं स्थापित हों। इस उद्देश्य के तहत, 1873 में अलीगढ़ में ‘मदरसा-तुल-उलूम’ नामक एक मदरसा की स्थापना की गई, जो बाद में 1877 में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज बना और अंततः 1920 में इसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया।
AMU के प्रारंभिक उद्देश्यों में मुस्लिम समुदाय के उत्थान और शिक्षा में वृद्धि करना शामिल था। लेकिन 1920 में आए ‘एएमयू एक्ट’ में कुछ संशोधन किए गए, जिससे धार्मिक शिक्षा पर रोक लगाई गई और सभी धर्मों के विद्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालय के दरवाजे खोल दिए गए।
1967 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
1967 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विचार करते हुए कहा कि AMU को ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित किया गया था और इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि इस विश्वविद्यालय को बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कानूनी मान्यता दी थी, इसलिए इसे मुस्लिम समुदाय का संस्थान नहीं माना जा सकता।
1981 में कानून में संशोधन और अल्पसंख्यक दर्जा
1967 के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने 1981 में AMU एक्ट के सेक्शन 2(1) में संशोधन करते हुए इसे "मुसलमानों का पसंदीदा संस्थान" माना और इसे अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान किया। इसके तहत AMU को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में अधिकार मिला।
2006 का इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला और नए विवाद
2005 में, AMU ने मेडिकल के पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस में 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दीं, जिसके खिलाफ हिन्दू छात्रों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2006 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने का विरोध करते हुए कहा कि यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इस आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके बाद AMU ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और 2019 में मामला सात जजों की संविधान पीठ को भेजा गया।
2024 में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला: अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार
हालिया फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने 4-3 के बहुमत से AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया है। इस फैसले में कहा गया कि अल्पसंख्यक दर्जा का दावा इस बात पर निर्भर नहीं करता कि कोई संस्थान कानूनी रूप से स्थापित हुआ है या नहीं। अदालत ने इस बात को स्पष्ट किया कि यदि संस्थान की स्थापना का उद्देश्य और उसकी मंशा किसी अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इशारा करती है, तो वह अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकती है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता की जांच के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजा जाना चाहिए, ताकि इस पर विचार के लिए एक नई पीठ का गठन हो सके।
निष्कर्ष
यह निर्णय भारत के संवैधानिक ढांचे के तहत अल्पसंख्यकों को प्रदत्त अधिकारों का सम्मान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस फैसले से न केवल AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों को संविधान द्वारा प्रदान की गई सांस्कृतिक और शैक्षिक स्वायत्तता भी मजबूत होगी।