Parliament Winter Session: संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार से आरंभ हो चुका है, लेकिन यह सत्र हंगामों के बीच बाधित हो रहा है। विपक्ष के तीव्र विरोध और आरोपों के चलते दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ी। गुरुवार को भी स्थिति में सुधार की संभावना कम दिख रही है, क्योंकि विपक्ष ने उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे को लेकर संसद में हंगामा करने का संकेत दिया है।
लोकसभा अध्यक्ष का वक्तव्य
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हंगामा कर रहे विपक्षी सदस्यों से अपील करते हुए कहा, "प्रश्नकाल महत्वपूर्ण समय है। यह सभी सदस्यों के लिए है। आप इसे चलने दें। हर मुद्दे पर चर्चा का अवसर दिया जाएगा, लेकिन व्यवस्थित तरीके से गतिरोध उत्पन्न करना उचित नहीं है।" उनकी इस अपील के बावजूद सदन में शोर-शराबा जारी रहा, जिससे कार्यवाही बाधित हुई। गुरुवार सुबह सदन की बैठक शुरू होने के कुछ ही मिनटों में स्थगित करनी पड़ी और बाद में दिनभर के लिए कार्यवाही रोकनी पड़ी।
हंगामे के कारण कार्यवाही प्रभावित
संसद में बुधवार को भी कार्यवाही सामान्य रूप से नहीं चल सकी। विपक्ष ने अडानी समूह पर लगे आरोपों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग की। इसके अलावा संभल हिंसा और अन्य मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।
प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री
गुरुवार का दिन लोकसभा के लिए खास हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा आज सदन में शपथ ले सकती हैं। हाल ही में उन्होंने वायनाड लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीत दर्ज की है। उनकी इस उपस्थिति को कांग्रेस के लिए एक बड़ी राजनीतिक शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
संसदीय कार्यवाही का महत्व
शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा की जानी है। लेकिन विपक्ष और सरकार के बीच टकराव की वजह से विधायी कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है। प्रश्नकाल, जो सत्र का एक अहम हिस्सा होता है, भी विपक्ष के हंगामे के चलते बाधित हो रहा है।
संसद में आगे की राह
हालांकि विपक्षी दलों ने गौतम अडानी और अन्य मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाया है, लेकिन सरकार का कहना है कि वह सभी विषयों पर चर्चा के लिए तैयार है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों पक्ष किस तरह से गतिरोध को समाप्त कर संसद के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने की दिशा में कदम उठाते हैं।
इस सत्र में संसद के सुचारू संचालन और जनहित के मुद्दों पर चर्चा को प्राथमिकता देना लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इसमें कठिनाई होना तय है।