Lok Sabha Election: बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक बिसात बिछ गई है. एनडीए और उनके सहयोगी दलों ने अपने सभी उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. इधर महागठबंधन अब तक 10 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं कर पाई है. आरजेडी-01, कांग्रेस-06 और महागठबंधन की नई सहयोगी वीआईपी ने 03 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया है. बिहार में लोकसभा की चालीस सीटें हैं. इसमें 23 सीटों पर आरजेडी, 09 पर कांग्रेस, 3 पर मुकेश सहनी की वीआईपी और 05 सीटों पर वाम दल चुनाव लड़ रहे हैं.
एनडीए में बीजेपी- 17, जेडीयू- 16, चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (RV)-05, जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर- 01 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा- 01 सीट पर चुनाव लड़ रही है. बीजेपी-जेडीयू और उसके सभी सहयोगी दलों ने करीब एक सप्ताह पहले अपने सभी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है.
क्या लालू को नहीं मिल रहा है पहलवान
बिहार की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि लालू यादव गठबंधन में अपने सहयोगी दल को सीट देने से पहले पहलवान दिखाने के लिए कहते हैं. फिर पहलवान मजबूत है या नहीं, वह विरोधी दल के उम्मीदवार को कितनी टक्कर दे पाएगा ये सब देखने के बाद सीट देने का फैसला करते हैं. लेकिन इसबार लालू ने शायद बिना पहलवान देखे ही अपने सहयोगियों को सीट दे दी. कांग्रेस और मुकेश सहनी को लेकर तो ऐसा ही लग रहा है.
आरजेडी की एक सीट पर फंसा है पेंच
महागठबंधन में वाम दलों ने अपने सभी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. आरजेडी भी 23 में 22 सीटों पर उम्मीदवार के नामों का ऐलान कर चुकी है. एक सीट सीवान पर हिना शहाब को लेकर पेंच फंसा हुआ है. हिना के निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने के ऐलान के बाद MY समीकरण चटकने का डर लालू यादव को सता रहा है. बिहार की राजनीति को जानने वालों का कहना है कि हिना शहाब को नाराज कर लालू शहाबुद्दीन समर्थकों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते हैं.
लालू को बिहार के साथ सीवान के पड़ोस में सारण लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रही बेटी रोहिणी की राह मुश्किल होने का भी डर है. क्योंकि सीवान की तरह ही सारण में शहाबुद्दीन के नाम का आज भी सिक्का चलता है.
कांग्रेस को नहीं मिल रहा है उम्मीदवार
इधर कांग्रेस पार्टी 9 सीटों में महज तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर पाई है. कांग्रेस पार्टी के हिस्से में सासाराम, पटना साहिब, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण, महाराजगंज, भागलपुर, किशनगंज और कटिहार सीट है. इसमें किशनगंज से वर्तमान सांसद मोहम्मद जावेद, वरिष्ठ नेता तारिक अनवर कटिहार,कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा को भागलपुर से टिकट दिया है. बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस में शामिल हुए अजय निषाद के नाम का भी ऐलान नहीं किया गया है. जबकि अजय निषाद मुजफ्फरपुर से टिकट तय करने के बाद ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं.
कहा जा रहा है कि कई सीटों पर कांग्रेस को मजबूत उम्मीदवार नहीं मिल रहा है. जहां मिल रहा है वहां दावेदारों के बीच घमासान है. बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह अपने बेटे आकाश सिंह को पश्चिमी चंपारण से टिकट दिलाना चाह रहे हैं. 2019 में आकाश सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से चुनाव लड़ा था और हार गए थे.
खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे मुकेश सहनी
महागठबंधन में तीन सीटें मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के खाते में है-आरजेडी ने अपने खाते से वीआईपी को झंझारपुर,गोपालगंज और मोतिहारी लोकसभा सीट दी हैं. मुकेश सहनी मुजफ्फरपुर सीट पर दावेदारी कर रहे थे. लेकिन उनके महागठबंधन में आने से पहले ही मुजफ्फरपुर कांग्रेस के खाते में चली गई. इसके बाद मुकेश सहनी ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि वह तीनों सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ाएंगे. कहा तो ये भी जा रहा है कि इन सीटों पर उन्हें उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं. उन्हें दूसरी पार्टी खासकर आरजेडी के घर झांकना पड़ रहा है.
झंझारपुर सीट पर वीआईपी से गुलाब यादव को टिकट मिलने के चर्चे हैं. गुलाब यादव आरजेडी के पूर्व विधायक हैं. उनकी पत्नी ने निर्दलीय एमएलसी चुनाव जीता है. रेप के आरोपी गुलाब यादव वीआईपी के उम्मीदवार हो सकते हैं.वहीं गोपालगंज और मोतिहारी में तो अभी संभावितों का भी नाम सामने नहीं आया है. वीआईपी प्रवक्ता देव ज्योति ने बताया कि झंझारपुर में नाम करीब-करीब तय हैं. बस अधिकारिक ऐलान होना बाकी है. देव ज्योति ने कहा- वीआईपी प्रमुख और तेजस्वी यादव के बीच उम्मीदवारों को लेकर चर्चा चल रही है जल्द ही उनके नाम ऐलान कर दिए जाएंगे.
‘महागठबंधन के पास उम्मीदवारों का टोटा’
महागठबंधन 10 सीटों पर अपने उम्मीवार का नाम ऐलान नहीं कर पाई है. क्या इसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ेगा. इस सवाल के जवाब में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं- महागठबंधन के पास उम्मीदवारों का टोटा है. उम्मीदवारों के टोटा होने की वजह से ही आरजेडी ने आसानी से अपने हिस्से की तीन सीटें सहनी को दे दी है. सहनी को जो तीन सीटें मिली है वहां आरजेडी की स्थिति अच्छी नहीं थी. उन्हें वहां उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे. रही बात नुकसान की तो एनडीए के उम्मीदवारों के नाम ऐलान होने के बाद वह प्रचार प्रसार में लग गए हैं. दूसरी तरफ महागठबंधन के उम्मीदवार तय नहीं है. इस स्थिति में एनडीए को शुरुआती फायदा हो सकता है.