Diwali 2024 Kali Puja:दिवाली पर बंगाल में क्यों की जाती हैं मां काली की पूजा?

10:24 AM Oct 30, 2024 | zoomnews.in

Diwali 2024 Kali Puja: दिवाली का त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन हर राज्य में इस पर्व को मनाने का तरीका भिन्न होता है। खासकर पश्चिम बंगाल में, दिवाली को काली पूजा के नाम से मनाया जाता है। यहां इस दिन मां काली की विशेष पूजा की जाती है, जो इस अवसर का मुख्य आकर्षण है। मान्यता है कि इस दिन आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने से सभी दुख और संकट दूर होते हैं, शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

काली पूजा का पौराणिक महत्व

बंगाल में मां काली की पूजा करने की पौराणिक कथा बहुत रोचक है। एक समय था जब चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ जैसे दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया था। इन दैत्यों ने इंद्रलोक तक पर कब्जा करने के लिए देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी। भगवान शिव ने माता पार्वती के एक रूप, अंबा को प्रकट किया। माता अंबा ने दैत्यों का वध करने के लिए मां काली का भयानक रूप धारण किया और सभी अत्याचारी दैत्यों का नाश कर दिया।

इस बीच, एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य रक्तबीज का जन्म हुआ। रक्तबीज एक ऐसा दैत्य था जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरते ही उस रक्त से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था। मां काली ने रक्तबीज का वध करने के लिए अपनी जीभ बाहर निकाली और अपनी तलवार से उस पर वार किया। लेकिन रक्त का एक भी बूँद जमीन पर गिरने से पहले ही उसने उसे पी लिया। इस प्रकार रक्तबीज का नाश हुआ, लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ।

जैसे ही भगवान शिव ने देखा कि मां काली संहार की प्रवृत्ति में हैं, उन्होंने अपने शरीर को मां काली के रास्ते में लेटाकर उन्हें रोकने का प्रयास किया। मां काली का पैर भगवान शिव की छाती पर पड़ा, और जैसे ही उन्हें यह एहसास हुआ कि यह भगवान शिव हैं, उनका क्रोध समाप्त हो गया। इस प्रकार, मां काली ने सभी जीवों को आशीर्वाद दिया और इसलिए कार्तिक मास की अमावस्या को उनकी पूजा की जाती है।

मां काली की पूजा विधि

मां काली की पूजा विधि बहुत सरल है। पूजा के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. स्नान और व्रत का संकल्प: सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. पूजा स्थल की सजावट: देवी काली की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखें और इसे लाल या काले कपड़े से सजाएं।
  3. आह्वान और अर्पण: मां काली का आह्वान करें और उन्हें पूजा में आमंत्रित करें। देवी की मूर्ति पर जल, दूध और फूल अर्पित करें।
  4. सिंदूर और दीपक: सिंदूर, हल्दी, कुमकुम और काजल चढ़ाएं। सरसों के तेल का दीपक जलाएं और कपूर से आरती करें।
  5. धूप और नैवेद्य: धूप या अगरबत्ती जलाकर मां काली के सामने रखें और मिठाई, फल, और नैवेद्य अर्पित करें।
  6. मंत्र का जाप: “ॐ क्रीं काली” या “क्रीं काली” का जाप करें, जो मां काली को प्रिय है।
  7. आरती और समापन: पूजा के अंत में मां काली की कपूर से आरती कर पूजा संपन्न करें।

निष्कर्ष

दिवाली का यह पर्व न केवल रोशनी और खुशियों का प्रतीक है, बल्कि यह शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है। मां काली की पूजा का यह विशेष अवसर न केवल बंगाल की संस्कृति को दर्शाता है, बल्कि यह हमें शक्ति और साहस का भी संदेश देता है। इस दिवाली, मां काली से प्रार्थना करें कि वे हमें अपने आशीर्वाद से शक्ति दें और हमारे जीवन में सुख-समृद्धि लाएं।