Israel-Iran War: ईरान और इजराइल के बीच का तनाव अब एक गंभीर मोड़ पर पहुंच चुका है, जिससे एक बड़ी जंग की संभावना बढ़ रही है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान दोनों के बयानों से यह स्पष्ट हो गया है कि मध्य पूर्व में जारी संघर्ष अब महज एक प्रारंभिक चरण से बाहर निकलकर सीधे युद्ध में तब्दील हो सकता है।
संघर्ष का वर्तमान परिदृश्य
ईरान के हालिया हमले ने इजराइल के लिए सीधी कार्रवाई का एक उचित कारण प्रस्तुत किया है। दोनों देशों के बीच पहले भी कई बार टकराव हो चुका है, लेकिन हालिया घटनाक्रमों ने एक नई उथल-पुथल की संभावना को जन्म दिया है। इजराइल ने अब स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान के खिलाफ सख्ती से निपटने के लिए तैयार है, जबकि ईरान भी अपनी स्थिति को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए तैयार है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और संभावित प्रभाव
यदि ईरान और इजराइल के बीच युद्ध होता है, तो दुनिया के अन्य देश अपनी स्थिति को चुनने के लिए मजबूर होंगे। अमेरिका, जो हमेशा इजराइल के साथ खड़ा रहा है, ईरान के खिलाफ अपनी नीतियों को और सख्त कर सकता है। दूसरी ओर, रूस, चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश ईरान के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। यह संयोग वैश्विक राजनीति को एक नया मोड़ दे सकता है और दुनियाभर में महाशक्तियों के बीच टकराव का कारण बन सकता है।
आर्थिक प्रभाव
इस संघर्ष के परिणामस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है। ईरान के हमले के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखी गई है। यदि संघर्ष बढ़ता है, तो अन्य सामानों की कीमतों में भी वृद्धि होने की संभावना है, जिससे कई देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। पहले से ही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था तनाव में है, और ईरान-इजराइल युद्ध इसके लिए और अधिक संकट पैदा कर सकता है।
मानवीय संकट
ईरान की बड़ी जनसंख्या और उसकी शिया बहुलता के कारण कई सुन्नी मुस्लिम देश ईरान के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। तुर्किए जैसे देश, जो NATO का सदस्य हैं, इजराइल के खिलाफ बल भेजने की मांग कर चुके हैं। इससे न केवल सैनिकों की जान पर खतरा बढ़ेगा, बल्कि लाखों नागरिकों के लिए भी संकट उत्पन्न होगा। जॉर्डन और सऊदी अरब जैसे देशों को भी इस संघर्ष में अपनी स्थिति तय करनी होगी, जिससे मानवीय संकट और अधिक बढ़ सकता है।
भारत की स्थिति
भारत, जो ईरान और इजराइल दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखता है, इस संघर्ष में एक चुनौती का सामना करेगा। भारत ने हमेशा से दो-राज्य समाधान का समर्थन किया है और इस स्थिति में तटस्थ रहने की कोशिश कर सकता है। लेकिन इसके आर्थिक हितों को देखते हुए भारत को किसी एक पक्ष का समर्थन करना कठिन होगा।
वैश्विक शक्तियों की भूमिका
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषकों का मानना है कि इस संघर्ष में अमेरिका, रूस और चीन की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होगी। यदि ये देश एक साथ बैठकर संवाद स्थापित कर सकें, तो संभवतः संघर्ष को टाला जा सकता है। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा होना कठिन लगता है।
निष्कर्ष
ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति एक नए युद्ध की आशंका पैदा करती है, जो न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि वैश्विक शक्तियां इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाएं, ताकि युद्ध की चिंगारी को और न बढ़ने दिया जाए। वैश्विक सुरक्षा के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय है, और सभी देशों को इस संघर्ष को रोकने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।