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India-America Relations:फिर बुरा मत मानना... अमेरिका को क्यों दिया जयशंकर ने दो टूक जवाब?

India-America Relations: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के टॉप थिंक टैंक 'कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' में एक सवाल का सीधा जवाब दिया.

India-America Relations: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अमेरिका के थिंक टैंक ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ में एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जब उनसे भारत में लोकतंत्र के बारे में अमेरिकी राजनीतिक नेताओं की टिप्पणियों के संदर्भ में सवाल पूछा गया। जयशंकर ने स्पष्टता के साथ कहा कि किसी को भी टिप्पणी करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें भी अपने विचार रखने का पूरा अधिकार है।

वैश्वीकरण और लोकतंत्र

जयशंकर ने कहा कि दुनिया आज एक बहुत ही ग्लोबलाइज्ड स्थिति में है, और राजनीतिक विचार-विमर्श केवल राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर सीमित नहीं रह सकता। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका की विदेश नीति का एक बड़ा हिस्सा इस पर निर्भर करता है कि कैसे विभिन्न देशों के राजनीतिक मामलों में दखल दिया जाता है। उनके अनुसार, कुछ राजनीतिक खिलाड़ी न केवल अपने देश में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।

लोकतंत्र का समान सम्मान

उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी लोकतंत्रों का समान सम्मान किया जाना चाहिए। किसी एक देश के लोकतंत्र पर टिप्पणी करने का अधिकार होना स्वाभाविक है, लेकिन जब दूसरे देश इस अधिकार का प्रयोग करते हैं, तो वह विदेशी हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा, "विदेशी हस्तक्षेप, विदेशी हस्तक्षेप है, चाहे यह कोई भी करे।"

दो टूक जवाब

जयशंकर ने कहा कि अगर वे किसी अमेरिकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया करते हैं, तो यह उनकी स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा, "आपको टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है, लेकिन मुझे भी आपकी टिप्पणी पर टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है। इसलिए जब मैं ऐसा करूं, तो बुरा मत मानना।" यह स्पष्ट संदेश था कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पारस्परिक सम्मान और संवाद की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

जयशंकर का यह बयान न केवल भारत की लोकतांत्रिक पहचान की रक्षा के लिए है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि वैश्विक राजनीति में संवाद और सम्मान की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। यह संदेश स्पष्ट करता है कि किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अपनी आवाज उठाना और अपनी स्थिति को स्पष्ट करना आवश्यक है। ऐसे समय में, जब वैश्विक संबंधों में जटिलता बढ़ रही है, इस तरह के बयान विचारों के आदान-प्रदान को और मजबूती प्रदान करते हैं

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