Bangladesh Violence: बांग्लादेश, जो अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता था, अब एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से जूझ रहा है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के शासनकाल में देश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाओं में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। यह स्थिति 1971 में देश की आजादी के बाद के सबसे खराब दौर के रूप में देखी जा रही है।
नोबेल विजेता से उम्मीदें और निराशा
प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद मोहम्मद यूनुस को उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा रहा था। लोगों को लगा था कि एक नोबेल विजेता देश को संकट से निकालने और समाज को स्थिरता देने का काम करेंगे। लेकिन इसके विपरीत, यूनुस के कार्यकाल में अल्पसंख्यक समुदायों पर हिंसा और मानवाधिकार हनन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।
टीवी9 नेटवर्क के इंग्लिश क्लस्टर के संपादक राकेश खेर का कहना है,
"बांग्लादेश में हाल के हफ्तों में मानव अधिकारों का सबसे बुरा हनन हुआ है। यह स्थिति देश के लोकतंत्र और सामाजिक संतुलन के लिए बेहद खतरनाक है।"
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी
अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की चुप्पी भी चिंताजनक है। न्यूज9 प्लस के संपादक संदीप उन्नीथन ने कहा कि फाइव आईज अलायंस (पश्चिमी खुफिया एजेंसियों का एक गठजोड़) ने इन घटनाओं पर अपनी आंखें मूंद ली हैं। इसका एक कारण बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की स्थापना में कथित रूप से अमेरिका की भूमिका हो सकती है।
गोवा क्रॉनिकल के संस्थापक और प्रधान संपादक सवियों रोड्रिग्स ने मोहम्मद यूनुस को सीआईए का "कठपुतली" बताते हुए कहा,
"शेख हसीना को हटाने की साजिश अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने रची थी। यूनुस का झुकाव इस्लामी कट्टरपंथ की ओर है, जो बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से दूर ले जा रहा है।"
भारत के लिए संभावित खतरे
बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति भारत के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है। रोड्रिग्स का मानना है कि यूनुस का इस्लामिक कट्टरपंथ को समर्थन देना भारत के लिए एक नया सिरदर्द बन सकता है।
"पाकिस्तान पहले से ही भारत के लिए एक इस्लामी पड़ोसी है। अगर बांग्लादेश भी इसी दिशा में बढ़ता है, तो यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरनाक हो सकता है।"
इसके अलावा, भारत-बांग्लादेश के बीच व्यापार, सीमा सुरक्षा और आप्रवासन जैसे मुद्दे भी मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित हो सकते हैं।
लोकतंत्र पर मंडराता संकट
अंतरिम सरकार से अपेक्षा की गई थी कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराएगी, लेकिन यूनुस सरकार ने इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। इसके बजाय, सत्ता पर पकड़ मजबूत करने और विपक्ष को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सवियों रोड्रिग्स का कहना है कि बांग्लादेश के नागरिकों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज उठानी होगी।
बांग्लादेश का भविष्य: संकट और उम्मीदें
बांग्लादेश के लिए यह दौर अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। एक ओर, अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार और कट्टरपंथ का प्रसार देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा रहा है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी और सरकार की निष्क्रियता इस संकट को और गहरा बना रही है।
बांग्लादेश को अब एक मजबूत लोकतांत्रिक ढांचे, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, और मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह संकट न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए गंभीर परिणाम लेकर आ सकता है।