One Nation One Election: भारत में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर सरकार की मजबूत घेराबंदी के लिए कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। पार्टी का मुख्य लक्ष्य यह है कि बीजेपी के नैरेटिव को शिकस्त दी जाए और एक मजबूत विरोधी मोर्चा खड़ा किया जाए। इस दिशा में जल्दी ही जमीन पर सक्रियता देखने को मिल सकती है।
इंडिया गठबंधन की एकजुटता
हालांकि कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीयist कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) जैसे दलों की ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के संबंध में अलग-अलग राय थी, लेकिन अब इंडिया गठबंधन इस मुद्दे पर एकजुट नजर आ रहा है। कांग्रेस का अगला कदम है सहयोगी दलों के साथ मिलकर बीजेपी के नैरेटिव के खिलाफ अपना नैरेटिव तैयार करना।
दो प्रमुख मोर्चे
कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरने के लिए दो प्रमुख मोर्चों पर अपनी रणनीति तैयार की है:
विशेष बहुमत की आवश्यकता: कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, इस अधिनियम को पास कराने के लिए सरकार को विशेष बहुमत यानी दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। वर्तमान में एनडीए के पास केवल 293 सांसद हैं, जो जरूरी 362 वोटों से काफी कम है। यदि इंडिया गठबंधन लोकसभा में एकजुट रहता है, तो मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
संघीय ढांचे पर हमला: कांग्रेस का मानना है कि यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो इससे राज्यों की सरकारों को गिराने का रास्ता खुलेगा। पार्टी यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि यह प्रस्ताव संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार है, जिससे अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी सरकार के खिलाफ मुखर हो सकें।
तर्कों की तैयारी
कांग्रेस यह समझाने का प्रयास कर रही है कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ कैसे संभव नहीं है। इसके लिए पार्टी ने 1952 में एक साथ चुनाव कराने के अनुभव को आधार बनाया है, जब सरकार गिरने और राष्ट्रपति शासन के चलते अब अलग-अलग चुनाव कराए जा रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
सरकार के तर्कों—जिनमें कहा गया है कि इससे पैसे की बचत होगी और नीति बनाने में सहूलियत होगी—के खिलाफ कांग्रेस ने दलीलें तैयार की हैं। पार्टी का सवाल है कि उद्योगपतियों के लोन माफ करने वाली सरकार इन बातों का ध्यान क्यों नहीं रखती? अगर नीति निर्माण की बात है, तो सरकार के पास 4 साल 11 महीने का समय होता है।
शीतकालीन सत्र में मुद्दा बन सकता है
इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का खुलकर विरोध किया है। अखिलेश यादव ने इसे एक साजिश करार दिया है, जबकि आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी इससे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहती है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है।
विपक्ष के इस मुद्दे पर हमलावर होने से यह स्पष्ट हो रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में यह मुद्दा गरम रहने की संभावना है।
निष्कर्ष
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का यह प्रयास ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर सरकार को चुनौती देने का है। यदि विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट रहता है, तो यह न केवल मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है, बल्कि भारतीय राजनीति के परिदृश्य को भी बदल सकता है।