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Lok Sabha Elections:क्या वरुण को अमेठी से उतारा जाए? कार्यकर्ताओं का कांग्रेस ने टटोला मन

Lok Sabha Elections: वरुण गांधी पीलीभीत से बीजेपी के टिकट पर नहीं लड़ रहे हैं, ये तो साफ हो चुका है. बीजेपी से टिकट कटने के बाद वरुण गांधी को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं. इस बीच, कांग्रेस ने अमेठी में पार्टी के कार्यकर्ताओं का मन टटोला है और जानने

Lok Sabha Elections: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पीलीभीत के मौजूदा सांसद वरुण गांधी का टिकट काट दिया है. वरुण गांधी की जगह जितिन प्रसाद को मैदान में उतारा गया है. बीजेपी से टिकट कटने के बाद वरुण गांधी को लेकर राजनीतिक गलियारे में कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं. कोई कह रहा है कि उन्हें कांग्रेस के टिकट पर अमेठी या रायबरेली से लड़ना चाहिए तो कोई पीलीभीत से निर्दलीय लड़ने की बात कर रहा है. कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने तो वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर भी दे दिया.

वरुण गांधी को लेकर जारी चर्चाओं के दौर के बीच कांग्रेस आलाकमान ने अमेठी के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया है. वरुण को लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में दो राय है. एक खेमा चाहता है कि राहुल, प्रियंका गांधी के न लड़ने की सूरत में वरुण निर्दलीय अमेठी से लड़ें और कांग्रेस-सपा उनका समर्थन करे. लेकिन दूसरा खेमा कहता है कि सोनिया गांधी के बाद इस पीढ़ी से कांग्रेस में राहुल, प्रियंका हैं तो तीसरा गांधी क्यों चाहिए?

बता दें कि संजय गांधी की तैयार की अमेठी पर 1980 से गांधी परिवार के राजीव गांधी खेमा काबिज है. कभी सोनिया तो कभी राहुल यहां के सांसद रहे. 1977 में संजय गांधी अमेठी से हारे थे. लेकिन 1980 में उन्हें जीत मिली. इसी साल उनका निधन हो गया. फिर उपचुनाव में राजीव गांधी जीते.

गांधी परिवार में टूट दिखी. इंदिरा गांधी ने राजीव का साथ दिया. 1985 में अमेठी में मेनका गांधी ने विरासत पर हक जमाते हुए चुनाव लड़ा और नारा लगाया- गली गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है. मेनका अब बीजेपी के टिकट पर सुल्तानपुर से उतारी गई हैं. ऐसे में वरुण को अमेठी लाने पर गांधी परिवार में कोई चर्चा नहीं हुई. मेनका टिकट लौटाने जैसा कोई फैसला करें तब जाकर किसी चर्चा की गुंजाइश संभव है. मेनका के सुल्तानपुर से बीजेपी के टिकट पर लड़ने पर चर्चा की भी जरूरत नहीं है.

सीईसी की बैठक में नहीं होगी चर्चा

कांग्रेस CEC की आज यानी बुधवार को बैठक भी है. इसमें अमेठी और रायबरेली पर चर्चा नहीं होगी. दरअसल, सीईसी को सूचित कर दिया गया है कि जिला और राज्य इकाइयां चाहती हैं कि गांधी परिवार अमेठी-रायबरेली से लड़े और अंतिम फैसला वो करे. इसलिए अब सीधे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के यहां से गांधी परिवार का फैसला आएगा. यही वजह है कि इन सीटों पर अब सीईसी में चर्चा नहीं होगी.

अमेठी में कब किसे मिली जीत?

अमेठी को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. 1967 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. 1971 में भी उसने फिर बाजी मारी. 1977 में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. 1980 में संजय गांधी यहां के सांसद बने. 1981 उपचुनाव, 1984, 1989 और 1991 में राजीव गांधी यहां के सांसद रहे. 1991 उपचुनाव और 1996 चुनाव में भी कांग्रेस की जीत हुई. 1998 में बीजेपी ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई. लेकिन 1999 में कांग्रेस ने वापसी की और सोनिया गांधी यहां की सांसद बनीं.

2004 में यहां से राहुल गांधी उतरे. उन्होंने अपने पहले ही चुनाव में जीत दर्ज की. 2009 में भी वह जीते. 2014 में राहुल गांधी ने जीत की हैट्रिक लगाई, लेकिन 2019 में वह बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार गए.

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