Bangladesh Vijay Diwas: आज बांग्लादेश में 'विजय दिवस' धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह दिन 1971 में भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के वीर योद्धाओं की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक है, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के संयुक्त नेतृत्व में आत्मसमर्पण किया था। इस जीत के बाद पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की।
हालांकि इस खुशी के मौके पर, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने प्रतिद्वंद्वी और देश के वर्तमान अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला किया है। हसीना ने यूनुस को "फासीवादी" करार देते हुए आरोप लगाया कि उनका नेतृत्व बांग्लादेश की लोकतांत्रिक धारा को कमजोर करने और मुक्ति संग्राम के योगदानियों की आवाज को दबाने का प्रयास कर रहा है।
हसीना का आरोप: अलोकतांत्रिक और फासीवादी नेतृत्व
शेख हसीना ने रविवार को अपने बयान में मोहम्मद यूनुस की सरकार को "फासीवादी" बताते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में सरकार का मुख्य उद्देश्य मुक्ति संग्राम के प्रति सम्मान और उस संघर्ष में भाग लेने वाली ताकतों की भावना को दबाना है। हसीना ने आरोप लगाया कि इस सरकार का कोई लोकतांत्रिक जनाधार नहीं है और यह बिना किसी जवाबदेही के देश की सत्ता पर काबिज हो गई है।
हसीना का कहना था, "फासीवादी यूनुस के नेतृत्व वाली इस अलोकतांत्रिक सरकार ने असंवैधानिक तरीके से सत्ता पर कब्जा किया है और यह देश की जनता के अधिकारों को छीनने का काम कर रही है।" उनका यह बयान बांग्लादेश में बढ़ती असहमति और राजनीतिक तनाव को उजागर करता है।
जनता के सामने बढ़ती समस्याएं
हसीना ने आगे कहा कि बांग्लादेश के लोग बढ़ती कीमतों और जीवन यापन की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि यह सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी नहीं गई है, इसलिए उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती। हसीना का आरोप था कि यूनुस सरकार का मुख्य उद्देश्य मुक्ति संग्राम और उसके समर्थकों की आवाज़ को दबाना है, जो बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम की असली भावना को कमजोर करता है।
सत्ता पर कब्जे का आरोप
शेख हसीना ने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार देश के भीतर असंवैधानिक तरीकों से सत्ता पर कब्जा कर रही है और यह जनकल्याण कार्यों में अवरोध उत्पन्न कर रही है। उनका आरोप था कि "राष्ट्र विरोधी समूहों" ने असंवैधानिक तरीके से सत्ता संभाली है, जो बांग्लादेश के लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है।
भारत से शरण लेने की घटना
इस साल अगस्त में, शेख हसीना को बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के कारण अपनी सुरक्षा की चिंता में भारत आना पड़ा था। यह विरोध प्रदर्शन सरकार की नीतियों के खिलाफ था, और इसे बांग्लादेश में लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के रूप में देखा गया था। हसीना के अनुसार, यह विरोध उनकी सरकार के खिलाफ जनता की निराशा को दर्शाता था, जो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी नहीं गई थी।
'विजय दिवस': एक प्रतीक और संघर्ष का दिन
विजय दिवस बांग्लादेश के लिए सिर्फ एक ऐतिहासिक दिन नहीं है, बल्कि यह दिन उस संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है जिसने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई। इस दिन की घटनाओं ने न केवल बांग्लादेश का नक्शा बदला, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति को भी नया दिशा दी। शेख हसीना और मोहम्मद यूनुस के बीच बढ़ता राजनीतिक तनाव इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश की राजनीति अभी भी संघर्ष और असहमति से मुक्त नहीं है।
विजय दिवस के इस खास दिन पर जहां एक ओर देश अपनी स्वतंत्रता और वीरता को सम्मानित कर रहा है, वहीं देश की आंतरिक राजनीति और नेतृत्व के मुद्दे भी सामने आ रहे हैं। यह दिन बांग्लादेश के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है, जहां संघर्ष जारी है और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवाज उठाई जा रही है।