India-Pakistan Relations: भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर संवाद लगभग ठप है और सीमाओं पर भी समय-समय पर तनाव की स्थिति देखी जाती है। इसके बावजूद हाल ही में एक बड़ी खबर सामने आई है कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर पाकिस्तान की यात्रा पर जाने वाले हैं। यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भाग लेने के लिए होगी, जो पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आयोजित हो रही है।
कब है SCO सम्मेलन?
SCO सम्मेलन का आयोजन 15-16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में होने जा रहा है। यह शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इसमें SCO के सदस्य देशों के नेताओं और मंत्रियों के बीच आर्थिक, सुरक्षा और अन्य सहयोग के मुद्दों पर चर्चा होगी। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए सदस्य देशों को आमंत्रित किया गया है, और इसी के तहत भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी पाकिस्तान जाएंगे।
पीएम मोदी को मिला था न्योता
SCO सम्मेलन के लिए पाकिस्तान ने अगस्त के आखिर में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आमंत्रण भेजा था। पाकिस्तान की ओर से यह निमंत्रण इस उम्मीद के साथ भेजा गया था कि दोनों देशों के बीच संबंधों में कुछ नरमी आ सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे। उनकी जगह विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
SCO का महत्व
SCO (शंघाई सहयोग संगठन) एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, और मध्य एशिया के कुछ देशों के सदस्य हैं। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सुरक्षा, और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना है। यह संगठन एशिया में स्थिरता और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण मंच माना जाता है।
SCO की शिखर बैठक में भाग लेने से पहले सदस्य देशों के बीच मंत्रिस्तरीय वार्ता और वरिष्ठ अधिकारियों की कई दौर की बैठकें होंगी, जिनमें वित्तीय, आर्थिक, और सांस्कृतिक मुद्दों पर बातचीत होगी। ऐसे में जयशंकर की यह यात्रा न केवल SCO के संदर्भ में बल्कि भारत और पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों के बीच एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है।
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर संभावित असर
जयशंकर की इस यात्रा से यह उम्मीद की जा रही है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ हद तक कूटनीतिक वार्ता की शुरुआत हो सकती है। हालांकि, दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि इस यात्रा से सीधे तौर पर द्विपक्षीय संबंधों में कोई बड़ी प्रगति होगी। फिर भी, यह यात्रा दोनों देशों के बीच संवाद के एक नए रास्ते की संभावना जरूर पैदा करती है।