Rupee vs Dollar Decline: भारतीय करेंसी मार्केट में सोमवार को बड़ा झटका देखने को मिला जब रुपया डॉलर के मुकाबले 58 पैसे की गिरावट के साथ 86.62 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ। यह दो सालों में एक दिन में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट है। करेंसी मार्केट के आंकड़ों के मुताबिक, रुपया सोमवार को 86.12 के स्तर पर खुला और दिनभर के कारोबार में 86.11 तक गिर गया। इस भारी गिरावट का मुख्य कारण अमेरिकी डॉलर की मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल रहा।
डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट के प्रमुख कारण
विदेशी निवेशकों की बेरुखी: विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से भारी मात्रा में पैसे निकाले हैं। जनवरी में अब तक 22,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी हो चुकी है, जिससे रुपए पर दबाव बढ़ा है।
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल: भारत अपनी कच्चे तेल की ज़रूरत का 85% से अधिक आयात करता है। क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतें रुपए पर दबाव डालती हैं।
अमेरिकी चुनाव के प्रभाव: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद डॉलर इंडेक्स में तेज़ी आई है। मौजूदा समय में यह 110 के स्तर तक पहुंच चुका है।
गोल्ड की खरीदारी: 2024 में दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों द्वारा सोने की खरीदारी में इजाफा हुआ है। भारत भी इस सूची में अग्रणी रहा। चूंकि गोल्ड की खरीदारी डॉलर में होती है, इसलिए डॉलर की मांग बढ़ने से रुपए पर दबाव बना।
एक्सपोर्ट में गिरावट: नवंबर 2024 में भारत के निर्यात में 5% से अधिक की गिरावट देखने को मिली। निर्यात घटने से डॉलर की आमदनी कम हो जाती है, जिससे रुपए की स्थिति कमजोर होती है।
पिछले एक दशक में रुपए की स्थिति
अगर पिछले एक दशक की बात करें तो डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हुआ है। अप्रैल 2014 में एक डॉलर की कीमत 60.32 रुपये थी, जो अब बढ़कर 86.62 रुपये हो गई है। इस दौरान रुपए में 43.60% की गिरावट दर्ज की गई।
बीते एक महीने में गिरावट
पिछले एक महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 2% गिर चुका है। जबकि बीते एक साल में यह गिरावट 4.30% से अधिक हो चुकी है।
रुपए में गिरावट का भारत पर प्रभाव
डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट का असर न केवल भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, बल्कि आम आदमी की जेब पर भी भारी पड़ता है।
1. इंपोर्ट बिल में बढ़ोतरी
रुपए में गिरावट से देश का इंपोर्ट बिल बढ़ता है। जीटीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार, रुपए में गिरावट के कारण भारत का इंपोर्ट बिल 15 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है।
2. कच्चे तेल के इंपोर्ट बिल में इजाफा
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात करता है। रुपए में गिरावट से कच्चा तेल महंगा होता है, जिससे देश का इंपोर्ट बिल बढ़ता है।
3. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेजी
कच्चे तेल के महंगे होने से पेट्रोल और डीजल के प्रोडक्शन कॉस्ट में बढ़ोतरी होती है। इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है, क्योंकि ईंधन महंगा होने से ट्रांसपोर्ट और अन्य सेवाओं की लागत बढ़ती है।
4. विदेशी सामान होगा महंगा
रुपए में गिरावट के कारण आयातित वस्तुएं जैसे कपड़े, जूते, घड़ियां, और विदेशी शराब महंगी हो जाएंगी। इसका असर उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति पर पड़ेगा।
5. विदेश में पढ़ाई होगी महंगी
विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों को अपनी शिक्षा के लिए अब अधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे। डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी का सीधा असर उनकी ट्यूशन फीस और रहने की लागत पर पड़ेगा।
6. विदेशी दवाएं होंगी महंगी
कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों की कई दवाएं भारत विदेशों से आयात करता है। रुपए में गिरावट से ये दवाएं महंगी हो जाएंगी।
7. दालें और खाने का तेल महंगा होगा
भारत बड़ी मात्रा में दाल और खाने का तेल आयात करता है। रुपए में गिरावट से इन वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होगा, जिससे खाद्य महंगाई बढ़ेगी।
8. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट
देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घट रहा है। तीन जनवरी को समाप्त सप्ताह में यह 5.69 अरब डॉलर घटकर 634.58 अरब डॉलर पर आ गया है। पिछले पांच हफ्तों में फॉरेक्स रिजर्व में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
जानकारों की राय
एचडीएफसी सिक्योरिटी के करेंसी कमोडिटी हेड अनुज गुप्ता के अनुसार, अमेरिकी बाजार में बेहतर रोजगार आंकड़े और रूस पर नए प्रतिबंधों के चलते डॉलर मजबूत हुआ है। इससे अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल भी बढ़ा है। उन्होंने बताया कि 2025 में डॉलर-रुपया एक्सचेंज रेट 85.50 से 87.50 के बीच रह सकता है।
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा कि ग्लोबल मार्केट में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण रुपया कमजोर हुआ है।
डॉलर इंडेक्स में तेजी
डॉलर इंडेक्स, जो दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापता है, 0.29% बढ़कर 110 के स्तर को पार कर गया है। बीते पांच कारोबारी दिनों में इसमें डेढ़ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि एक महीने में यह 2.83% और तीन महीनों में 6.38% बढ़ा है। बीते एक साल में डॉलर इंडेक्स में 7.30% की तेजी आई है।
निष्कर्ष
डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट का दौर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। इससे न केवल आयात महंगा होगा, बल्कि आम आदमी पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। महंगाई बढ़ने के साथ-साथ विदेशी शिक्षा, दवाएं, और जरूरी सामानों की लागत में इजाफा होगा। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार को मजबूत आर्थिक नीतियों की जरूरत होगी।