Rajasthan Politics: पूर्व बीजेपी सांसद और चूरू से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार राहुल कस्वां पार्टी छोड़ने के बाद अब पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ पर हमलावर हैं बातचीत में कस्वां ने राठौड़ का नाम लिए बिना कहा- वो चुनाव में खुद के वजन से ही दब गए, खुद को मुख्यमंत्री बता रहे थे। खुद सीट बदली, खुद टिकट बांटे। जब हार गए तो दूसरों को दोष दे रहे है। वो पूरे सियासी जीवन में चूरू के लिए कोई एक बड़ा काम बता दें। एक पुल बनाया, वो भी टूट गया, उसे डिस्मेंटल करना पड़ेगा।
कस्वां ने कहा- जिन लोगों ने वसुंधरा राजे के बारे में भरी मीटिंग्स में अपशब्द कहे, उन लोगों को स्टेट लीडरशिप के पद दिलवा दिए।
प्रश्न: आपका परिवार चार दशक से कांग्रेस के खिलाफ लड़ता रहा। एक बार टिकट कटते ही विरोधी पार्टी के साथ आ गए, अचानक ऐसे क्या हालात बन गए ?
राहुल कस्वां: परिस्थितियां एक व्यक्ति विशेष और कुछ लोगों द्वारा बनाई गई। अच्छा काम कर रहे थे, जनता ने कभी कोई शिकायत नहीं की। जनता का बार बार आशीर्वाद मिलता रहा।
उन व्यक्ति विशेष का कोई पर्सनल ईगो है, जो 15 साल से कभी मेरे पिता तो कभी मेरे पीछे लगे रहे कि टिकट नहीं मिलना चाहिए।
उन्हें पॉलिटिकल कंपीटीशन नजर आ रहा था या उनके जीवन में क्या मजबूरियां थीं, यह सवाल तो आपको उनसे पूछना चाहिए।
इन परिस्थितियों को देखते हुए मुझे फैसला करना पड़ा। मैं चूरू लोकसभा क्षेत्र की जनता की आवाज सुनकर कांग्रेस में आया।
मेरे लोगों ने मुझसे कहा कि आप एक व्यक्ति से हार मान लेंगे तो बाकी का क्या होगा? मैंने अपनी जनता की आवाज सुनी और कांग्रेस में आया।
प्रश्न: जिस दिन आपकी जॉइनिंग हुई, प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा ने कहा कि किसान का बेटा होने के कारण टॉर्चर किया गया। सच में आप टॉर्चर हो रहे थे तो आवाज क्यों नहीं उठाई?
राहुल कस्वां: टॉर्चर तो क्या घुटन हो रही थी। कोई सुन ही नहीं रहा था। 15 साल बहुत हो जाते हैं, एक दिन की बात नहीं है।
पिताजी का करियर आगे बढ़ रहा था तो आपने कहा कि टिकट काट दीजिए। उस वक्त पार्टी में मजबूत लोग बैठे हुए थे तो उन्होंने मुझे एक मौका दिया।
जब हम आगे बढ़ रहे थे, चूरू में अच्छा काम कर रहे थे। चूरू में हाईवे, नई ट्रेन लेकर आए। यह सब देखकर उन्हें चुभन हुई होगी कि यह इतने काम क्यों हो रहे हैं, क्योंकि उनसे तो कुछ हुआ नहीं।
इतने लंबे राजनीतिक करियर में नेचर पार्क को छोड़कर कोई एक बड़ा काम गिना दें, उसमें भी स्टेट की पॉलिसी थी तो आ गया। एक पुल बनवाया, वह भी टूट गया, उसे डिस्मेंटल करना पड़ेगा।
ऐसे लोगों को उभरते हुए किसान कौम के युवा पसंद नहीं आते तो जो विकास के काम करवाते हों। वही उनकी चिढ़ थी कि वे 15 साल से हमारे पीछे पड़े हुए थे।
प्रश्न: आप नाम नहीं ले रहे हैं, खुलकर नाम ही ले लीजिए, आपका इशारा किसकी तरफ है?
राहुल कस्वां: नाम तो आपको लेना चाहिए, वे खुद जानते हैं। हजार बार उन्होंने मेरे बारे में उल्टे शब्द कहे हैं। मैं तो इस हालात में आ गया हूं कि मुझे बोलना पड़ रहा है।
पहले मैं कभी बोला ही नहीं। न मैंने कभी यह कहा कि इनकी टिकट काट दीजिए, मुझे यहां से चुनाव लड़ना है। मैं तो किसी कंपीटीशन में था ही नहीं, मेरा कंपीटीशन तो खुद से ही था कि मुझे डेवलपमेंट में चूरू को नंबर वन बनाना है।
प्रश्न: आपका इशारा पूर्व नेता प्रतिपक्ष राठौड़ की तरफ है? उन्होंने विधानसभा चुनाव में हार के बाद आप पर भितरघात कर आराेप लगाया था, टिकट कटने की वजह भी यही बताई जा रही है।
राहुल कस्वां: जयपुर से गंगानगर हाईवे पर चलेंगे तो 500 किलोमीटर में केवल एक एमएलए है बीजेपी का। किसने टिकट बांटी, पैनल कौन बना रहा था? किसके घर पर दावेदारों की लाइन लगी थी?
टिकट आप बांट रहे थे। खुद की सीट आप चेंज कर रहे हो। किसी ने कहा नहीं, खुद ने वीटो पावर लगाई कि सीट चेंज करूंगा।
जिलाध्यक्ष, महामंत्री से लेकर जिले की पूरी टीम आप बना रहे हो। आपने सांसद के नाते मुझसे कभी इस मामले में चर्चा तक नहीं की।
जिस दिन फॉर्म भरने जा रहे थे, उस दिन सुबह 8:30 बजे फोन आया कि मैं नामांकन करने जा रहा हूं, आप भी आना। मैंने उनसे कहा था कि इतला दे रहे हो या बुला रहे हो, कोई जवाब नहीं था। मैं मेरा भादरा का प्रोग्राम बीच में छोड़कर पहुंचा।
चुनाव में एक दिन भी नहीं कहा कि प्रचार करना है, टूर का प्रोग्राम है। मैं प्रचार के लिए सरदारशहर गया, नोहर, राजगढ़, भादरा गया।
प्रश्न: फिर आपको क्या लगता है, राठौड़ की हार की वजह क्या रही?
राहुल कस्वां: जनता सब समझती है। आपको अपने ऊपर बहुत घमंड था कि सब कुछ मैनेज कर लिया जाएगा, किसी व्यक्ति की जरूरत ही नहीं है।
उस वक्त पूरे चुनाव को जातिगत बनाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। पूरे चूरू लोकसभा में ऐसा माहौल बना दिया कि जातियों के आधार पर चुनाव खड़ा कर दिया।
रिजल्ट निगेटिव आ गया तो इल्जाम दूसरों पर डालने का प्रयास कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि वे अपने चुनाव में खुद के वजन से ही दब गए।
परसेप्शन यह बनाने का प्रयास किया कि मैं ही मुख्यमंत्री हूं। मैं ही सब कुछ करने जाऊंगा। लोगों ने उस परसेप्शन को दरकिनार किया है।
लोगों ने उनके खिलाफ वोटिंग की है। यह उन्हें स्वीकार करना चाहिए। दूसरों पर इल्जाम डालने से कुछ नहीं होता।
प्रश्न: आरोप है कि मेहनत से अपना मुकाम बनाने वाले किसान के बेटे खिलाड़ी को आप बर्दाश्त नहीं कर पाए और पार्टी छोड़ दी?
राहुल कस्वां: इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं, यह सही है। मैंने कहां उनका विरोध किया? मेरा मकसद यह नहीं है कि रिप्सलमेंट किससे किया, टिकट कोई इश्यू ही नहीं है, यह बड़ा मुद्दा नहीं है।
हमारे परिवार ने 47 साल से चुनाव लड़े हैं। छह चुनाव तो निर्दलीय लड़े हैं। पहले पार्टी ने कहा कि एक परिवार से दो टिकट नहीं देंगे तो हमने चूं तक नहीं और सीट छोड़ दी।
शेखावत साहब ने मेरे पिताजी से 1999-2000 में कहा था कि एमपी साहब! यह इलेक्शन आपको नहीं लड़ना है, सतीश पूनिया लड़े थे। हमने अपनी सीट छोड़ दी थी। यह मुद्दा ही नहीं था।
प्रश्न: तो फिर नाराजगी किस बात को लेकर थी?
राहुल कस्वां: टिकट काटने का तरीका गलत है। एक आदमी ने दावा किया कि मैं टिकट नहीं लेने दूंगा। मैंने टिकट कटवाई है, मुद्दा वो है।
बात को घुमाने से कोई बात नहीं बनने वाली है। सच्चाई बोलिए न, क्यों डरते हो? क्यों शर्माते हो? अगर पार्टी ने कभी कहा होता कि इस बार हम आपको टिकट नहीं देंगे, रिप्लेस करेंगे तो मैं उफ्फ भी नहीं करता।
हमने 47 साल के सियासी जीवन में एक झटके में टिकट छोड़ी है। इस बार जो तरीका अपनाया गया, वो मुद्दा है।
प्रश्न: क्या पार्टी बदलने का कारण केवल राजेंद्र राठौड़ से अनबन और पर्सनल इगो है? पार्टी कहती तो सीट छोड़ देते?
राहुल कस्वां: वसुंधरा राजे, शेखावत साहब के समय कोई मुद्दा होता था तो उसे सुलझा लिया जाता था। आज का समय ऐसा आ गया कि कोई कम्युनिकेशन ही नहीं है।
अध्यक्ष महोदय की जिम्मेदारी है कि स्टेट में भाजपा कार्यकर्ता को कोई भी समस्या है तो उसका समाधान कराए।
अब कम्युनिकेशन ही नहीं है, आप अपने फील्ड में काम कर रहे हो, मैं एक तारीख को मीटिंग ले रहा हूं और अगले दिन पता लगा कि टिकट ही नहीं है।
जो व्यक्ति मेरी टिकट कटवाने का दावा कर रहा है, उसके लोग पटाखे जला रहे हैं। हमारी पब्लिक एज लार्ज को उन चीजों से टॉर्चर किया जा रहा था।
वो चीजें घुटन पैदा करती है, इससे लोगों में आक्रोश है। जनता के मन की बात सुनी है। उनका मन था कि चुनाव लड़ना है।