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Chhath Puja 2024:छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य देने के बाद यह व्रत कथा जरूर पढ़ें

Chhath Puja 2024: वैसे तो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा शुरू होती है, लेकिन छठ पर्व में षष्ठी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसमें

Chhath Puja 2024: आस्था का महापर्व छठ, विशेष रूप से दिल्ली, बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चार दिन चलता है और सूर्यदेव तथा छठी मैया को समर्पित होता है। छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है, जिसे नहाय-खाय कहते हैं। इसके बाद, हर दिन एक विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसमें व्रति विशेष प्रकार के व्रत, उपवास और पूजा करते हैं।

छठ पूजा की परंपराएँ

छठ पूजा चार दिन का महापर्व है। पहले दिन नहाय-खाय में व्रति स्नान करके शुद्धता का प्रतीक मानकर भोजन करते हैं। दूसरे दिन खरना की परंपरा होती है, जिसमें दिनभर उपवास रखकर रात को घर में विशेष प्रकार की खीर और रोटी बनाई जाती है। तीसरे दिन, यानी छठी तिथि को सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और साथ ही व्रत कथा का पाठ भी किया जाता है। चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस पर्व का समापन होता है।

संध्या अर्घ्य का समय

2024 में 7 नवंबर को छठ पूजा का तीसरा दिन है, जिस दिन संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्यदेव का अर्घ्य शाम 5 बजकर 29 मिनट तक दिया जाएगा। सूर्योदय सुबह 6:42 बजे और सूर्यास्त शाम 5:48 बजे होगा। व्रति महिलाएं इस दिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं और पूजा के बाद व्रत कथा का पाठ करती हैं।

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

छठ पूजा से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी हुई है। राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी संतान प्राप्ति के लिए कई उपायों के बावजूद नि:संतान थे। एक दिन उन्होंने महर्षि कश्यप से संतान प्राप्ति के उपाय के बारे में पूछा। महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया और उसकी खीर को राजा की पत्नी को खिलाई। खीर के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश, पुत्र मृत पैदा हुआ। दुखी राजा ने श्मशान जाकर आत्महत्या का प्रयास किया, तब वहां देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि यदि वे विधिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे तो संतान प्राप्ति का वरदान मिलेगा।

राजा प्रियव्रत ने देवी षष्ठी की पूजा की और उसी वर्ष रानी मालिनी को एक जीवित पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। इसके बाद से ही कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को छठ पूजा और व्रत की परंपरा शुरू हुई।

कर्ण और सूर्यदेव

धर्म ग्रंथों में महाभारत काल में दानवीर कर्ण का भी उल्लेख मिलता है, जो सूर्यदेव के पुत्र थे। कर्ण रोजाना सूर्यदेव को जल अर्घ्य दिया करते थे और उनकी कृपा से वह महान योद्धा बने। कर्ण का सूर्यदेव के प्रति यह आस्था छठ पूजा की परंपरा से जुड़ी हुई है।

द्रौपदी और छठ व्रत

एक अन्य पौराणिक कथा में महाभारत काल के समय द्रौपदी ने भी छठ व्रत किया था। जब पांडव जुए में अपना राज्य हार गए थे, तब द्रौपदी ने इस व्रत को रखा और पूजा करने के बाद सूर्यदेव की कृपा से पांडवों को उनका राज्य वापस मिल गया। यह कथा भी छठ पूजा से जुड़ी है, जो यह दर्शाती है कि इस पर्व में सूर्यदेव और छठी मैया की विशेष कृपा होती है।

छठ पूजा की व्रत कथा

छठ पूजा से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी हुई मिलती है. इस कथा के अनुसार, किसी राज्य में प्रियव्रत नाम का एक राजा हुआ करता था. राजा और उनकी पत्नी मालिनी हमेशा परेशान रहते थे, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए बहुत से उपाय किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और वे नि:संतान रहे. एक बार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी संतान प्राप्ति की कामना के लिए महर्षि कश्यप के पास गए और बोले, हे महर्षि! हमारी कोई संतान नहीं है. कृप्या हमें संतान प्राप्ति के लिए कोई कारगर उपाय बताइए.

राजा प्रियव्रत का दुख सुनने के बाद महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए राजा के यहां भव्य यज्ञ का आयोजन करवाया. महर्षि कश्यप ने यज्ञ आहुति के लिए खीब बनवाने का आदेश दिया. फिर महर्षि कश्यप आहुति के लिए बनाई गई खीर को राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खिलाने के लिए कहा. राजा ने अपनी पत्नी को वो खीर खिला दी.उस खीरर के प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई. फिर 9 महीने बाद रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ. यह देख राजा और उनकी पत्नी और अधिक दुखी हो गए. इसके बाज राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में आत्महत्या का प्रयास करने लगे.

उसी समय श्मशान में एक देवी प्रकट हुईं. देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की पुत्री देवसेना हूं और सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से मुझे षष्ठी कहा जाता है. मुझे अपनी चिंता की वजह बताओ. राजा ने सारी कहानी बताई. राजा का दुख सुनने के बाद षष्ठी देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि अगर तुम विधिपूर्वक मेरी पूजा करोगे और दूसरों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करोगे तो मैं तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्ति का वरदान दूंगी.

निष्कर्ष

छठ पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है, जो आस्था, त्याग, और समर्पण का प्रतीक है। सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा से जुड़ी पौराणिक कथाएँ भी इस पर्व के महत्व को बढ़ाती हैं। छठ पूजा का उद्देश्य जीवन में सुख, समृद्धि, और संतान सुख की प्राप्ति के लिए सूर्य देवता और छठी मैया की कृपा प्राप्त करना है।

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