Supreme Court News:अब 'कानून अंधा' नहीं है..., बदली गई न्याय की देवी की मूर्ति, CJI चंद्रचूड़ की कवायद

08:59 PM Oct 16, 2024 | zoomnews.in

Supreme Court News: देश की अदालतों, फिल्मों और कानूनविदों के चेंबर्स में आंखों पर बंधी पट्टी के साथ न्याय की देवी की मूर्तियां आमतौर पर देखी जाती हैं। परंतु, अब नए भारत की न्याय की देवी की आंखें खुल गई हैं, और उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान है। यह बदलाव भारत की न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक परिवर्तन को दर्शाता है, जो कि ब्रिटिश काल के कानूनों को पीछे छोड़ते हुए एक नई दिशा की ओर बढ़ रहा है।

पट्टी हटने का प्रतीक

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने इस परिवर्तन की पहल की है। सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की मूर्ति में आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है। यह संदेश स्पष्ट है: "कानून अंधा नहीं है।" इस कदम के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने एक सकारात्मक संकेत दिया है कि अब न्याय प्रणाली सभी को समान रूप से देखती है और इसके निर्णयों में पूर्वाग्रह का कोई स्थान नहीं है।

नई मूर्ति की विशेषताएं

CJI चंद्रचूड़ के निर्देश पर न्याय की देवी की मूर्ति को नए सिरे से बनवाया गया है। इस नई मूर्ति में न्याय की देवी की आंखें खुली हैं, जो कि पूर्ववर्ती मूर्ति की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। अब, उनके हाथ में तराजू है, जो न्याय का प्रतीक है, लेकिन तलवार की जगह संविधान को रखा गया है। यह परिवर्तन दर्शाता है कि न्याय अब संविधान के अनुसार किया जाएगा, न कि किसी दंडात्मक दृष्टिकोण से।

परिवर्तन की आवश्यकता

सूत्रों के अनुसार, CJI चंद्रचूड़ का मानना है कि अब अंग्रेजी विरासत से आगे बढ़ने का समय आ गया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि कानून कभी अंधा नहीं होता, बल्कि यह सभी के लिए समान रूप से लागू होता है। इस संदर्भ में, न्याय की देवी का स्वरूप बदलना आवश्यक था। देवी के एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में तराजू का होना, यह संदेश देता है कि न्याय संविधान के अनुसार होना चाहिए, जबकि समाज में सभी के प्रति समानता का विचार भी महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

इस परिवर्तन के साथ, भारत की न्यायपालिका ने एक नई पहचान बनाई है, जो न केवल देश के कानूनों में बदलाव का प्रतीक है, बल्कि यह न्याय के प्रति एक नई दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। न्याय की देवी की यह नई मूर्ति भारतीय समाज में संविधान की महत्ता को दर्शाती है और यह दर्शाती है कि भारतीय न्याय प्रणाली सभी को समान रूप से देखती है। इस बदलाव का स्वागत होना चाहिए, क्योंकि यह एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।