Moon Mission: 24 सितम्बर का दिन अंतरिक्ष के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में याद किया जाता है। 2009 में इसी दिन नासा ने पुष्टि की थी कि चांद पर पानी मौजूद है। हालांकि, यह जानकारी नासा द्वारा आधिकारिक तौर पर सितंबर में दी गई, लेकिन भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने इससे तीन महीने पहले ही चांद पर पानी की उपस्थिति का पता लगा लिया था। इस उपलब्धि ने भारत के वैज्ञानिक प्रयासों को वैश्विक मंच पर मान्यता दिलाई।
चांद पर पानी की खोज के तरीके
चांद पर पानी का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने कई मिशनों का सहारा लिया। सबसे पहले, अपोलो मिशन के दौरान चांद की सतह से लिए गए सैम्पल्स में वॉटर मॉलिक्यूल की मौजूदगी की पुष्टि की गई। इसके बाद, 2008 में इसरो के चंद्रयान 1 मिशन ने भी चांद पर पानी की उपस्थिति की पुष्टि की। इस मिशन में नासा द्वारा उपलब्ध कराए गए उपकरणों का उपयोग किया गया था, जो चांद की सतह द्वारा अवशोषित इंफ्रारेड लाइट को मापने में सक्षम थे।
नासा के प्रयोग
2009 में नासा ने लूनर रेजोनेंस आर्बिटल और लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट के जरिए प्रयोग किए, जिससे स्पष्ट हुआ कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी मौजूद है। इसके अतिरिक्त, नासा की स्ट्रेटोस्फीयर ऑब्जर्वेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) ने भी चांद पर पानी और अन्य यौगिकों की खोज के लिए स्पेक्ट्रोमीटर का इस्तेमाल किया।
VIPER मिशन: चांद पर अगला कदम
नासा अब चांद पर पानी और बर्फ की जानकारी जुटाने के लिए VIPER (वोलाटाइल्स इंवेस्टिगेटिंग पोलर एक्सप्लोरेशन रोवर) मिशन की तैयारी कर रहा है। यह नासा का पहला रोबोटिक रोवर होगा, जिसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन 100 दिनों का होगा और इसमें रोवर द्वारा एकत्रित डेटा से यह पता चलेगा कि चंद्रमा पर बर्फ कहां-कहां मिलने की सबसे अधिक संभावना है।
निष्कर्ष
चांद पर पानी की खोज ने अंतरिक्ष विज्ञान में नए आयाम खोले हैं। नासा और इसरो जैसे अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रयासों से यह स्पष्ट हो गया है कि चांद पर पानी का अस्तित्व है, जो भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। VIPER मिशन की मदद से वैज्ञानिक चांद के रहस्यों को और भी गहराई से समझ सकेंगे।