Share Market Crash: पिछले दो महीनों में भारतीय शेयर बाजार को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। सेंसेक्स और निफ्टी ने अपने ऑल-टाइम हाई से काफी गिरावट दर्ज की है, और निवेशकों के 50 लाख करोड़ रुपए डूब चुके हैं। विदेशी निवेशकों (FPI) की मुनाफा वसूली ने बाजार को इस हाल तक पहुंचा दिया है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि आगामी 50 दिन बाजार के लिए बेहद अहम होंगे और यह तय करेंगे कि बाजार इस नुकसान की भरपाई कर पाएगा या नहीं।
शेयर बाजार में भारी गिरावट का कारण
विदेशी निवेशकों की मुनाफा वसूली
अक्टूबर और नवंबर के दौरान विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 1.16 लाख करोड़ रुपए निकाल लिए हैं। केवल अक्टूबर में ही 94,017 करोड़ रुपए की निकासी हुई, जो रिकॉर्ड है। इसका मुख्य कारण भारतीय शेयर बाजार का महंगा मूल्यांकन है, जिससे निवेशक मुनाफा कमाने के लिए निकासी कर रहे हैं।अमेरिकी चुनाव और ट्रंप प्रशासन की नीतियां
डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत के बाद उनके आर्थिक और राजनीतिक इशारों ने वैश्विक बाजारों पर प्रभाव डाला है। चीन पर संभावित टैरिफ, डॉलर की मजबूती, और भारत-चीन व्यापार संबंधों में बदलाव भारतीय बाजार पर असर डाल रहे हैं।Trending :दूसरी तिमाही के खराब परिणाम
2020 के बाद पहली बार दूसरी तिमाही में इंडिया इंक की कमाई में गिरावट दर्ज की गई। इसका असर कंपनियों के शेयरों पर पड़ा, जिससे बाजार में गिरावट आई।
सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट का विश्लेषण
- सेंसेक्स
27 सितंबर को अपने ऑल-टाइम हाई 85,978.25 पर था, जो अब तक 9,013.19 अंक यानी 10.50% गिर चुका है। - निफ्टी
26,277.35 अंकों के ऑल-टाइम हाई से 2,926.95 अंक यानी 11.13% की गिरावट देखी गई है।
क्या बाजार की स्थिति सुधरेगी?
विदेशी निवेशकों की रफ्तार में कमी
हाल के हफ्तों में विदेशी निवेशकों की निकासी की रफ्तार धीमी हुई है। पिछले हफ्ते सिर्फ 2,500 करोड़ रुपए की निकासी हुई, जो पहले हफ्तों की तुलना में कम है। यह बाजार के लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है।
नए फ्रेमवर्क की भूमिका
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और सेबी (SEBI) ने एफपीआई को एफडीआई में बदलने के लिए नया फ्रेमवर्क तैयार किया है। इससे विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा, खासतौर पर मिड-कैप कंपनियों में। यह दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित करेगा और बाजार में स्थिरता लाएगा।
घरेलू निवेशकों की भूमिका
अगर विदेशी निवेशक अपनी निकासी रोकते हैं, तो घरेलू निवेशक बाजार में स्थिरता ला सकते हैं। म्यूचुअल फंड और खुदरा निवेशकों के निवेश से बाजार को समर्थन मिलेगा।
अमेरिकी नीतियों का प्रभाव
ट्रंप प्रशासन की नीतियों, जैसे चीन पर सख्ती और भारत के साथ मजबूत संबंध, बाजार को प्रभावित कर सकते हैं। अगर अमेरिकी-चीन तनाव बढ़ता है, तो भारत दक्षिण एशिया में अमेरिका का प्रमुख सहयोगी बन सकता है।
कमाई के अनुमान
विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरी और चौथी तिमाही में कंपनियों की कमाई में सुधार होगा, जो बाजार में तेजी ला सकता है।
निष्कर्ष
आने वाले 50 दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए निर्णायक होंगे। विदेशी निवेशकों की मुनाफा वसूली और वैश्विक कारकों के बावजूद, घरेलू निवेशकों की भूमिका और नीतिगत सुधार बाजार को पटरी पर ला सकते हैं।
हालांकि बाजार में उतार-चढ़ाव बने रहने की संभावना है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह निवेशकों के लिए बेहतर अवसर भी प्रस्तुत कर सकता है।