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Israel-Iran War:अरब देशों को छोड़, ईरान क्या इजरायल के खिलाफ भारत की मदद चाहता है?

Israel-Iran War: मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ता जा रहा है, ईरान-इजराइल के बीच टकराव की आशंका के बीच ज्यादातर बड़े प्लेयर्स ने अपना-अपना खेमा चुन लिया है. यही वजह है

Israel-Iran War: इजराइल के खिलाफ बढ़ते तनाव के बीच ईरान के राष्ट्रपति पेजेश्कियान ने एशियाई देशों से सहयोग की अपील की है। थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न शिनावात्रा से मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि इजराइल के जवाबी हमलों के कारण क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया है।

पेजेश्कियान ने इजराइल पर आरोप लगाया कि वह आत्मरक्षा के बहाने निर्दोष नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को निशाना बना रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी को शर्मनाक बताते हुए कहा कि एशियाई देशों को विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।

हालांकि, अरब देशों की अमेरिका और इजराइल के साथ करीबी रिश्तों के चलते ईरान को सहयोग मिलना मुश्किल है। ईरान ने अरब देशों से इजराइल के साथ व्यापार समाप्त करने की कई बार अपील की, लेकिन कोई विशेष परिणाम नहीं मिला है।

ईरान को उम्मीद है कि अगर भारत जैसे देशों का सहयोग मिले तो वह मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव को कम करने में सफल हो सकता है। भारत की मजबूत साख और विभिन्न देशों के साथ संतुलित रिश्ते, विशेष रूप से इजराइल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर, उसे इस भूमिका में मदद कर सकते हैं।

पेजेश्कियान, जो पहले इजराइल के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ थे, अब हालात के मद्देनजर जवाबी कार्रवाई का विकल्प चुन रहे हैं। यदि तनाव बढ़ता है, तो यह ईरान के लिए बड़ा खतरा बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में एक और भयंकर संघर्ष की आशंका है।

ईरान के साथ नहीं अरब देश!

पेजेश्कियान अच्छी तरह जानते हैं कि अरब देशों की नजदीकी अमेरिका और इजराइल के साथ है, वहीं क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई और शिया-सुन्नी विवाद के चलते भी ज्यादातर अरब मुल्क ईरान का साथ नहीं देंगे. गाजा में एक साल से जारी जंग के बीच ईरान कई बार अरब देशों समेत तमाम इस्लामिक मुल्कों से इजराइल से व्यापार खत्म करने की अपील करता रहा है लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ. जबकि गाजा में एक साल की जंग में करीब 41 हजार लोग मारे जा चुके हैं.

दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी समेत कई पश्चिमी देश इजराइल के साथ मजबूती से खड़े हैं, लिहाजा पेजेश्कियान इस संघर्ष में मजबूत और भरोसेमंद साथ के लिए एशिया के बड़े प्लेयर्स की ओर रुख कर रहे हैं. रूस और चीन पहले से ईरान के साथ हैं ऐसे में अगर ईरान को भारत का साथ मिल जाए तो वह इस तनाव को बढ़ने से रोकने में कामयाब हो सकता है.

ईरान को भारत से बड़ी उम्मीद?

बड़ी बात ये है कि भारत की साख न केवल एशिया बल्कि पश्चिमी देशों के बीच भी मजबूत है. रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए भारत की भूमिका कितनी अहम हो सकती है ये बात अमेरिका जानता है, ऐसे में अगर भारत मिडिल-ईस्ट में बढ़ते तनाव को रोकने में आगे आता है तो मुमकिन होगा अमेरिका समेत पश्चिमी देश उसका साथ दें.

इसके अलावा ईरान और इजराइल दोनों के साथ भारत के मजबूत संबंध हैं, भारत इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में भी ‘टू नेशन समाधान’ यानी इजराइल के अस्तित्व के साथ-साथ आजाद फिलिस्तीन का समर्थन करता है. भारत ग्लोबल साउथ की मजबूत आवाज और एशिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है, ऐसे में इस टकराव को कम करने में भारत की भूमिका काफी अहम साबित हो सकती है. यही वजह है कि ईरान के राष्ट्रपति एशियाई देशों से साथ आने की अपील कर रहे हैं.

टकराव बढ़ा तो ईरान के लिए बड़ा खतरा?

ईरानी राष्ट्रपति पेजेश्कियान उदारवादी विचारधारा वाले माने जाते हैं और शुरुआत में वह इजराइल के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ थे. इसे लेकर उनके और सुप्रीम लीडर खामेनेई के बीच तनातनी की खबरें भी सामने आईं थीं, लेकिन इजराइल ने हमास चीफ हानिया के बाद हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह को भी खत्म कर दिया. ईरान में विरोध और बढ़ते दबाव के चलते पेजेश्कियान को जवाबी कार्रवाई का फैसला करना पड़ा. लेकिन अब वह जानते हैं कि अगर ये टकराव बढ़ता है तो इसका नतीजा क्या हो सकता है.

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