SpaDeX Docking Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार सुबह अपने महत्वाकांक्षी SpaDeX (Space Docking Experiment) मिशन को लेकर एक बड़ा अपडेट जारी किया है। इसरो के अनुसार, इस मिशन में दोनों उपग्रहों के बीच की दूरी को 15 मीटर से घटाकर 3 मीटर तक लाने का सफल परीक्षण किया गया है। परीक्षण के बाद, दोनों अंतरिक्ष यान को सुरक्षित दूरी पर वापस ले जाया गया है। अब इस परीक्षण के डेटा का गहराई से विश्लेषण करने के बाद डॉकिंग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। हालांकि, फिलहाल डॉकिंग की प्रक्रिया को रोक दिया गया है और इस पर आगे का निर्णय डेटा विश्लेषण के आधार पर लिया जाएगा।
क्या है SpaDeX मिशन?
SpaDeX (Space Docking Experiment) मिशन में दो उपग्रह शामिल हैं - पहला उपग्रह चेसर (Chaser) और दूसरा टारगेट (Target)। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य स्पेस डॉकिंग की तकनीक को विकसित और परीक्षण करना है।
चेसर उपग्रह का काम टारगेट उपग्रह के पास जाना और उससे जुड़ना है। इसके अतिरिक्त, इस मिशन में एक और महत्वपूर्ण तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है। इसरो ने उपग्रह में एक रोबोटिक आर्म भी फिट किया है, जो हुक (Tethered System) के माध्यम से टारगेट उपग्रह को अपनी ओर खींचेगा।
इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक का सफल परीक्षण भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में अहम भूमिका निभाएगा। इससे न केवल कक्षा में घूम रहे उपग्रहों को नियंत्रित किया जा सकेगा, बल्कि ऑर्बिट में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग (ईंधन भरने) की संभावनाएं भी खुल जाएंगी। साथ ही, इस तकनीक के माध्यम से उन उपग्रहों को भी वापस कक्षा में लाया जा सकेगा, जो अपनी कक्षा से भटक गए हैं।
SpaDeX मिशन के लाभ:
स्पेसक्राफ्ट डॉकिंग तकनीक का विकास: इस मिशन के माध्यम से ISRO अंतरिक्ष में दो अलग-अलग यानों को जोड़ने की तकनीक को विकसित कर रहा है। यह भविष्य में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जैसे प्रोजेक्ट्स में भारत की भागीदारी को मजबूत करेगा।
ऑर्बिट में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग: इस तकनीक से अंतरिक्ष में पहले से मौजूद उपग्रहों की मरम्मत और रीफ्यूलिंग संभव हो सकेगी। यह स्पेस मिशन की लागत को कम करेगा और उपग्रहों की उम्र बढ़ाएगा।
भटके हुए उपग्रहों को कक्षा में लाना: SpaDeX मिशन के जरिए इसरो उन उपग्रहों को वापस उनकी निर्धारित कक्षा में लाने की तकनीक पर भी काम कर रहा है, जो तकनीकी खराबी के कारण अपने मार्ग से भटक जाते हैं।
क्या है डॉकिंग की प्रक्रिया?
डॉकिंग की प्रक्रिया अंतरिक्ष अभियानों में एक महत्वपूर्ण तकनीक है, जिसमें दो अंतरिक्ष यानों को नियंत्रित तरीके से एक-दूसरे के बहुत करीब लाकर जोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया बेहद जटिल होती है और इसके लिए उच्च स्तर की सटीकता और तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है।
डॉकिंग का मुख्य उद्देश्य दो उपग्रहों को जोड़कर डेटा का आदान-प्रदान करना, पावर सोर्स को एक साथ जोड़ना या किसी विशेष मिशन को अंजाम देना होता है। अंतरिक्ष में डॉकिंग की प्रक्रिया के दौरान एक अंतरिक्ष यान को दूसरे यान के पास लाया जाता है और धीरे-धीरे उन्हें जोड़ा जाता है ताकि कोई नुकसान न हो।
SpaDeX मिशन की चुनौतियां:
सटीक नेविगेशन: अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को बेहद करीब लाकर जोड़ने के लिए नेविगेशन सिस्टम की सटीकता बेहद जरूरी है।
सुरक्षा: डॉकिंग के दौरान टकराव का खतरा रहता है। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि दोनों यान सही दूरी और गति से संपर्क करें।
रोबोटिक आर्म का परीक्षण: इसरो द्वारा इस्तेमाल किया गया रोबोटिक आर्म एक नई तकनीक है। इसे सफलतापूर्वक ऑपरेट करना और टारगेट को पकड़ना एक चुनौती है।
इसरो का अगला कदम:
SpaDeX मिशन के तहत किए गए परीक्षण के डेटा का विश्लेषण किया जाएगा। डेटा के आधार पर यह तय किया जाएगा कि डॉकिंग की प्रक्रिया कब और कैसे आगे बढ़ाई जाए। इसरो के अनुसार, इसमें लंबा वक्त लग सकता है, क्योंकि स्पेस डॉकिंग तकनीक काफी जटिल है और इसे विकसित करने के लिए कई चरणों में परीक्षण करने की जरूरत होगी।
नतीजा:
SpaDeX मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस मिशन के जरिए भारत न केवल स्पेस डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल कर सकता है, बल्कि भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी नए रास्ते खोल सकता है। अगर यह मिशन सफल होता है, तो इससे अंतरिक्ष में उपग्रहों की सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग के क्षेत्र में नई संभावनाएं विकसित होंगी, जिससे भारत की अंतरिक्ष क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
SpaDeX Docking Update:
— ISRO (@isro) January 12, 2025
A trial attempt to reach up to 15 m and further to 3 m is done.
Moving back spacecrafts to safe distance
The docking process will be done after analysing data further.
Stay tuned for updates.#SpaDeX #ISRO