Manmohan Singh: डॉक्टर मनमोहन सिंह राजनीति की उपज नहीं थे, बल्कि वे एक प्रख्यात अर्थशास्त्री थे। उनका योगदान और कार्य उनके राजनीतिक दृष्टिकोण से अधिक उनके पेशेवर कौशल और निष्ठा के कारण पहचाने जाते हैं। जब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तो नरसिंह राव सरकार ने उन्हें वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी थी, ताकि वे देश को वित्तीय संकट से उबार सकें। और उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए और एक नए आर्थिक युग की शुरुआत की।
निष्कलंक जीवन और विश्वास का प्रतीक
मनमोहन सिंह का जीवन कभी भी राजनीति से प्रेरित नहीं था। उनका राजनीतिक करियर गांधी परिवार के साथ उनके रिश्तों के कारण ही फला-फूला। उन्होंने अपनी जीवनशैली और कार्यों से खुद को निष्कलंक साबित किया, और यही कारण था कि प्रधानमंत्री पद पर उनका चयन कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए सहज था। उन्हें कभी व्यक्तिगत जनाधार की आवश्यकता महसूस नहीं हुई, क्योंकि उनका विश्वास उनके कार्यों और समर्पण में था। उनके प्रधानमंत्री बनने के दस वर्षों के दौरान, उन्होंने कभी भी सत्ता के लिए राजनीतिक आडंबरों का हिस्सा नहीं बना और न ही कभी किसी पद या लाभ के लिए कोई प्रयास किया।
आर्थिक सुधारों के जनक
1991 में जब भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार की केवल दो सप्ताह की आयात मूल्य की क्षमता बची थी, तब प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उन्हें वित्त मंत्री के रूप में चुना। राव सरकार ने उन्हें पूरी छूट दी, और मनमोहन सिंह ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई। उनकी कड़ी मेहनत और समझदारी के परिणामस्वरूप भारत ने आर्थिक सुधारों की दिशा में अग्रसर किया, जिसके कारण आज भारत एक प्रमुख आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। उनके नेतृत्व में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण के कदमों ने भारत को वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
सोनिया गांधी के प्रति विश्वास और प्रधानमंत्री बनने की यात्रा
1996 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर थी, मनमोहन सिंह का गांधी परिवार के प्रति विश्वास और बढ़ा। उनकी निष्ठा और कार्यशैली ने उन्हें 2004 में प्रधानमंत्री पद तक पहुँचाया, जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकराया। सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी दी, और वे सत्ता में आते ही कांग्रेस के लिए एक मजबूत समर्थन का स्तंभ बने। हालांकि उनके पास स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी, फिर भी उन्होंने गठबंधन सरकार को सहर्ष नेतृत्व प्रदान किया।
कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष और अन्ना आंदोलन का प्रभाव
मनमोहन सिंह की प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष जारी रहा। सोनिया गांधी ने उनके ऊपर नकेज नियंत्रण रखा, जबकि पार्टी और सहयोगी दलों ने उन्हें राजनीति में नियंत्रण रखने की कोशिश की। अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने सरकार के लिए समस्याएं खड़ी कीं। इस आंदोलन ने यूपीए-2 की सरकार को असहमति और आरोपों के घेरे में ला खड़ा किया। फिर भी, मनमोहन सिंह की निष्ठा और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठा।
निष्कलंक प्रधानमंत्री
डॉक्टर मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री कार्यकाल विशेष रूप से उनके समर्पण, ईमानदारी और अपने कार्यों में उत्कृष्टता के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, खाद्यान्न सुरक्षा, शिक्षा, सूचना के अधिकार, आधार, और कृषि ऋण माफी जैसी योजनाओं के माध्यम से देश को प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाया। इसके अलावा, उनका कार्यकाल भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते जैसी ऐतिहासिक उपलब्धियों से भी भरा रहा।
मनमोहन सिंह का जीवन उनके नेतृत्व, समर्पण और स्थिरता का प्रतीक था। उनका व्यक्तित्व शांत, सौम्य और शिष्ट था, और इसी कारण उनके कार्यकाल को कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। उनकी निष्ठा और समर्पण हमेशा अविस्मरणीय रहेंगे, हालांकि कभी-कभी उन्हें अपनी खामोशी और निर्णयों में पिछड़ने के कारण आलोचना का सामना भी करना पड़ा। लेकिन उनकी इस खामोशी के भीतर एक गहरी सोच और समझ छुपी हुई थी, जो उनके जीवन के कई अनकहे पहलुओं को उजागर करती है।
मनमोहन सिंह का जीवन यह दर्शाता है कि कभी-कभी अच्छे कामों का मूल्यांकन राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि उनके समर्पण और निष्ठा से किया जाना चाहिए।