Shaktikanta Das News: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 4 नवंबर को शुरू हो चुकी है, और इसके निर्णयों की घोषणा 6 नवंबर को आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास करेंगे। यह बैठक भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बीच हो रही है, जहां महंगाई और आर्थिक मंदी के बीच संतुलन बनाना एक कठिन कार्य है।
महंगाई और आर्थिक मंदी का दोहरा दबाव
सितंबर और अक्टूबर 2023 के दौरान खुदरा महंगाई के आंकड़े आरबीआई के सहिष्णुता स्तर को पार कर गए। अक्टूबर में महंगाई दर 6.2% रही, जो पिछले एक साल में सबसे अधिक थी। इसके विपरीत, दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि घटकर 5.4% रह गई, जो दो वर्षों में सबसे कम है।
मैन्युफैक्चरिंग और निजी निवेश में गिरावट और कृषि क्षेत्र में मामूली वृद्धि के बावजूद, समग्र आर्थिक गतिविधियां दबाव में हैं। यह स्थिति आरबीआई की मौजूदा मौद्रिक नीति के प्रभाव पर सवाल खड़े कर रही है।
रेपो रेट में कटौती की मांग
आरबीआई ने फरवरी 2023 के बाद से रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखा है। हालांकि, बढ़ती महंगाई के बावजूद अर्थशास्त्री और राजनीतिक नेता अब ब्याज दरों में कटौती की मांग कर रहे हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी दरों में कटौती का समर्थन किया है।
विश्लेषकों का मानना है कि ब्याज दरों में कटौती से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। इसके बावजूद, आरबीआई गवर्नर दास महंगाई को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखते हुए दरों में कटौती के लिए अनिच्छुक दिख रहे हैं।
लिक्विडिटी और सीआरआर का मुद्दा
हाल ही में बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की तंगी ने आरबीआई के लिए नई चुनौतियां खड़ी की हैं। जीएसटी आउटफ्लो, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट, और रातोंरात उधारी की बढ़ती लागत ने इस समस्या को बढ़ा दिया है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि आरबीआई चरणबद्ध कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) में कटौती या ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ) के माध्यम से इस समस्या का समाधान कर सकता है। सीआरआर में 25 आधार अंकों की कटौती से बैंकिंग प्रणाली में 1.15 लाख करोड़ रुपये की तरलता आ सकती है।
भविष्य की दिशा: क्या हो सकता है निर्णय?
आरबीआई की बैठक से क्या उम्मीद की जाए, इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि दिसंबर में रेपो रेट में कटौती की संभावना सीमित है। महंगाई के आंकड़े दबाव बनाए हुए हैं, लेकिन जीडीपी में गिरावट ने दरों में कटौती के लिए दबाव बढ़ा दिया है।
एक "डोविश होल्ड" दृष्टिकोण, जहां आरबीआई दरों को स्थिर रखते हुए भविष्य में कटौती का संकेत देता है, अधिक संभावित दिखता है। डीबीएस बैंक की राधिका राव ने कहा कि फरवरी 2024 की बैठक में दर में कटौती की संभावना अधिक है, लेकिन हालिया आर्थिक आंकड़ों को देखते हुए, एमपीसी इस बैठक में भी कोई बड़ा निर्णय ले सकती है।
निष्कर्ष: संतुलन बनाना है चुनौती
आरबीआई के लिए यह बैठक न केवल मौद्रिक नीति के दिशा-निर्देश तय करेगी, बल्कि यह भी संकेत देगी कि बैंक महंगाई और आर्थिक मंदी के बीच कैसे संतुलन बनाता है। क्या गवर्नर दास दरों में कटौती का जोखिम उठाएंगे, या महंगाई को नियंत्रित करने की प्राथमिकता देंगे? इसका उत्तर 6 नवंबर को मिलेगा।
यह निर्णय आम आदमी के लिए भी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि ब्याज दरों में बदलाव से ऋण और बचत पर सीधा प्रभाव पड़ता है। आने वाले महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा इस निर्णय से तय होगी।