Congress Party:महाराष्ट्र-हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस दिल्ली से कितनी दूर हो गई?

02:02 PM Nov 30, 2024 | zoomnews.in

Congress Party: हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को मिली करारी हार ने पार्टी को सकते में डाल दिया है। लोकसभा चुनाव 2024 में शानदार प्रदर्शन के बाद जहां कांग्रेस के पुनरुत्थान की चर्चा हो रही थी, वहीं इन दो महत्वपूर्ण राज्यों में हार ने पार्टी के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन हारों का असर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 पर भी पड़ेगा?

दिल्ली में अगले तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पहले ही चुनावी अभियान में जुट चुकी हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस अब तक अपने संगठनात्मक ढांचे को सुधारने में लगी है।

हरियाणा और महाराष्ट्र की हार से झटका

हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में कांग्रेस को बढ़त मिलने की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी को न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा, बल्कि महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी तक गंवा दी। 2024 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित रूप से कमजोर साबित हुई। हरियाणा में भी लोकसभा में 50% सीटें जीतने वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत नहीं दिखा पाई।

दिल्ली में कांग्रेस की राह क्यों मुश्किल?

1. त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना कम

दिल्ली की राजनीति अब तक बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच द्विध्रुवीय रही है। कांग्रेस के लगातार कमजोर प्रदर्शन को आप भुनाने की तैयारी में है। आम आदमी पार्टी जनता को यह संदेश देने में जुटी है कि अरविंद केजरीवाल ही बीजेपी को हराने का विकल्प हैं। अगर यह नैरेटिव सफल होता है, तो चुनाव त्रिकोणीय न होकर दो पार्टियों के बीच सिमट जाएगा, जिससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान होगा।

2. नेतृत्व का अभाव

हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह दिल्ली में भी कांग्रेस बिना किसी स्पष्ट चेहरे के चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इसके उलट, अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के स्पष्ट सीएम फेस हैं, और बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति बना रही है।

3. मुस्लिम वोटर्स का रुझान

दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 12% है। आमतौर पर बीजेपी को हराने की स्थिति में मुस्लिम वोट एकतरफा उस पार्टी को जाते हैं, जो बीजेपी का मजबूत विकल्प लगती है। अगर दिल्ली में यह धारणा बनती है कि आप बीजेपी को हराने में सक्षम है, तो कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

4. संगठनात्मक संकट

दिल्ली कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल का दौर जारी है। हाल के महीनों में कई वरिष्ठ नेता जैसे वीर सिंह धींगान, सुमेश शौकीन, और मतीन अहमद पार्टी छोड़ चुके हैं। यह संकट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को कमजोर कर रहा है, जिससे चुनावी तैयारियां प्रभावित हो रही हैं।

5. घटता जनाधार

दिल्ली में कांग्रेस का जनाधार लगातार गिरता गया है। 2013 के बाद से पार्टी की स्थिति कमजोर होती गई। 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली, और उसका वोट प्रतिशत घटकर 4.26% पर आ गया।

आप और बीजेपी की तैयारियां तेज

आम आदमी पार्टी ने अपने कमजोर क्षेत्रों में मजबूती के लिए 11 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इनमें से 6 उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से आए हुए हैं। वहीं, बीजेपी ने दिल्ली चुनाव के लिए एक बड़ी प्रबंधन टीम बनाई है, जो प्रचार और रणनीति का नेतृत्व करेगी।

कांग्रेस के लिए आगे की चुनौती

दिल्ली में कांग्रेस का नेतृत्व वर्तमान में देवेंद्र यादव के हाथों में है, लेकिन उनकी अपील पूरी दिल्ली में सीमित है। पार्टी के पास शीला दीक्षित के बाद कोई मजबूत चेहरा नहीं है। जय प्रकाश अग्रवाल और सुभाष चोपड़ा जैसे वरिष्ठ नेता अब सक्रिय भूमिका में नहीं हैं।

क्या कांग्रेस संभाल पाएगी दिल्ली में अपनी जमीन?

हरियाणा और महाराष्ट्र की हार ने दिल्ली में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। मजबूत नेतृत्व और स्पष्ट रणनीति के बिना, कांग्रेस के लिए दिल्ली का चुनाव जीतना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। आम आदमी पार्टी और बीजेपी के आक्रामक चुनावी अभियान के बीच कांग्रेस को अपना खोया जनाधार वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।