+

Haryana Election 2024:राहुल की रैली से ठीक पहले नाराज सैलजा को कांग्रेस ने कैसे मनाया?

Haryana Election 2024: कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक सैलजा हिस्सेदारी को लेकर नाराज थीं. उन्हें लग रहा था कि जिस तरह से अभी उनके समर्थकों को इग्नोर किया गया है

Haryana Election 2024: हरियाणा में चल रहे चुनावी संग्राम के बीच कद्दावर कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा, जो बीते 13 दिनों से नाराज थीं, अब कांग्रेस हाईकमान के साथ अपने मतभेद सुलझाकर चुनाव प्रचार में लौट आई हैं। सैलजा अब कांग्रेस के उम्मीदवारों के पक्ष में धुआंधार रैलियां करेंगी, जिसकी शुरुआत वह राहुल गांधी की असंध जनसभा से करने जा रही हैं।

सैलजा की नाराजगी: क्या थी वजह?

कुमारी सैलजा की नाराजगी की प्रमुख वजह टिकट बंटवारे में उनके समर्थकों को नजरअंदाज किया जाना था। सैलजा द्वारा पब्लिक में जिन नामों की घोषणा की गई थी, उनमें से कुछ को टिकट नहीं मिला। खासकर, नारनौंद से अजय चौधरी का टिकट कटना सैलजा के गुट के लिए एक बड़ा झटका था। इसके अलावा, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली को लेकर भी सैलजा असंतुष्ट थीं, खासतौर पर उनके उस बयान को लेकर जिसमें बाबरिया ने कहा था कि सांसद विधायक का चुनाव नहीं लड़ सकते। सैलजा का मानना था कि इस तरह के फैसले हाईकमान के स्तर पर होने चाहिए, न कि प्रदेश प्रभारी के।

सैलजा को कैसे मनाया गया?

राहुल गांधी की असंध रैली से शुरुआत

राहुल गांधी ने करनाल के असंध से अपनी चुनावी रैली की शुरुआत की, जहां से कुमारी सैलजा के करीबी शमशेर सिंह गोगी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। असंध एक सिख और राजपूत बाहुल्य इलाका है, लेकिन यहां दलित मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 2019 में सैलजा की अध्यक्षता में कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की थी, और इस बार भी असंध को एक हॉट सीट माना जा रहा है।

राहुल गांधी की रैली की शुरुआत असंध से करना न केवल सैलजा के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह उनकी नाराजगी दूर करने का भी एक तरीका था। असंध में पहले से ही भाजपा और बसपा के नेताओं द्वारा रैलियों का आयोजन किया गया है, जिससे सैलजा के गुट के लिए टेंशन बढ़ गई थी। राहुल की इस रणनीतिक रैली ने सैलजा को कांग्रेस की मुख्यधारा में वापस लाने में अहम भूमिका निभाई।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की भूमिका

नाराज सैलजा को मनाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सैलजा के साथ दो बार बैठक की। पहली मीटिंग 22 सितंबर को हुई, जिसमें सैलजा ने अपनी शिकायतें कांग्रेस अध्यक्ष के सामने रखीं। उन्होंने टिकट बंटवारे में पारदर्शिता की कमी और प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली पर सवाल उठाए।

दूसरी मीटिंग 24 सितंबर को हुई, जो सैलजा के जन्मदिन के दिन थी। इस मुलाकात में खरगे ने सैलजा को केक खिलाते हुए सोशल मीडिया पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें दोनों हंसते हुए दिख रहे थे। इस मुलाकात के बाद सैलजा ने चुनाव प्रचार में उतरने का फैसला किया।

सत्ता में हिस्सेदारी का आश्वासन

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, सैलजा की नाराजगी की एक प्रमुख वजह सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर उनकी चिंताएं थीं। उन्हें डर था कि जिस तरह उनके समर्थकों को टिकट बंटवारे में नजरअंदाज किया गया है, सत्ता आने पर भी उन्हें ऐसा ही इग्नोर किया जा सकता है।

कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार बनने पर उन्हें उचित भागीदारी मिलेगी। इसके बाद सैलजा ने चुनावी प्रचार में सक्रिय होने का निर्णय लिया।

सैलजा की ताकत और हरियाणा में दलित राजनीति

कुमारी सैलजा की छवि एक मजबूत दलित नेता की है, और हरियाणा में दलित वोटरों का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में लगभग 20 प्रतिशत दलित आबादी है, जिनके लिए 17 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। सैलजा ने हरियाणा से ज्यादा राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई है, और वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं।

अंबाला और सिरसा की राजनीति में सैलजा का मजबूत प्रभाव है, जहां कुल 20 विधानसभा सीटें हैं। 2019 के चुनावों में कांग्रेस को इन 20 सीटों में से 7 पर जीत मिली थी, और सैलजा का इस जीत में अहम योगदान रहा।

भविष्य की राह

हालांकि, सैलजा के लिए हरियाणा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी आसान नहीं होगी, क्योंकि भूपिंदर हुड्डा का यहां मजबूत जनाधार है। बावजूद इसके, सैलजा की वापसी ने कांग्रेस के चुनावी कैंपेन को मजबूती दी है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सैलजा और हुड्डा के बीच सत्ता के समीकरण कैसे बनते हैं।

निष्कर्ष

कुमारी सैलजा की राजनीति में वापसी से कांग्रेस को हरियाणा चुनावों में एक नई ऊर्जा मिली है। उनकी दलित राजनीति में पकड़ और हाईकमान के साथ उनके संबंध कांग्रेस के लिए चुनावी समीकरण को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, उनके सामने मुख्यमंत्री पद के लिए भूपिंदर हुड्डा जैसी मजबूत चुनौती है, लेकिन सत्ता में हिस्सेदारी का आश्वासन उन्हें नई उम्मीदें दे रहा है।

facebook twitter