Business News: फोर्ड इंडिया ने भारत में लंबे समय तक कारोबार किया, लेकिन उसे सही सफलता नहीं मिल सकी. नतीजा ये हुआ कि उसने अपने भारत के कारोबार को बेच दिया. फोर्ड ने काफी समय तक अपनी गुजरात फैक्टरी के लिए अच्छे खरीदार की तलाश की, लेकिन ऐन मौके पर उसकी मदद Tata Group ने और फैक्टरी खरीद ली. अब यही परिस्थिति जर्मनी की कार कंपनी फॉक्सवैगन के साथ बन रही है, और उसकी डूबती नैया को सहारा देने के लिए महिंद्रा आगे आ सकती है.
जी हां, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि फॉक्सवैगन इंडिया अपने भारतीय कारोबार को बेचने के लिए महिंद्रा के साथ बातचीत कर रही है. भारत में करीब 2 अरब डॉलर का निवेश करने के बावजूद उसे मार्केट में मनचाही सफलता नहीं मिली है.
महिंद्रा बचाएगी फॉक्सवैगन ब्रांड
भारत में फॉक्सवैगन कंपनी के पास 2 कार ब्रांड हैं. इसमें स्कोडा और फॉक्सवैगन शामिल हैं. वैसे फॉक्सवैगन की पेरेंट कंपनी Das Auto के पास दुनिया के 10 बड़े कार ब्रांड हैं. इनमें ऑडी से लेकर लैंबोर्गिनी, पोर्शे और बेंटले तक शामिल है.
इंडिया जैसे प्राइस सेंसिटिव मार्केट में कंपनी को काफी स्ट्रगल करना पड़ रहा है. इसलिए भी कंपनी ने इंडिया के कारोबार से बाहर होने या एक स्थानीय पार्टनर को इसमें जोड़ने का प्लान बनाया है. स्कोडा ऑटो के सीईओ क्लाउस जेलमर ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कंपनी इंजीनियरिंग, सेल्स और प्रॉक्योरमेंट के लेवल पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए पार्टनर की तलाश में है.
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सप्लाई चेन को लेकर महिंद्रा की पहले भी फॉक्सवैगन के साथ पार्टनरशिप रही है. ऐसे में सबसे ज्यादा संभावना है कि इस बार फॉक्सवैगन को बचाने के लिए महिंद्रा ही आगे आए. महिंद्रा की लीगेसी भी है पुराने ब्रांड्स को बचाने की. कंपनी ने जावा और येज्दी बाइक्स को रिवाइव किया है.
क्यों फ्लॉप हो रही विदेशी ऑटो कंपनियां?
भारत में किसी विदेशी ऑटो कंपनी के फ्लॉप होने का ये पहला मामला नहीं है. जनरल मोटर्स या शेवरले इसका बड़ा उदाहरण है. इसके अलावा फोर्ड की स्थिति भी सबको पता ही है, और अब बात है फॉक्सवैगन की. इन सभी कंपनियों की एक बड़ी समस्या ये है कि भारत जैसे प्राइस सेंसिटिव मार्केट में ये प्राइसिंग को लेकर सही आकलन नहीं कर पाती हैं. महंगी गाड़ी और सर्विस नेटवर्क की कमी इन कंपनियों की डिमांड को लिमिटेड करती है.
इससे भी बड़ी बात, भारतीय जरूरतों के मुताबिक प्रोडक्ट को मार्केट में नहीं ला पाना, उनकी जरूरत के प्रोडक्ट और कीमत के बीच संतुलन नहीं बना पाना और भारतीय ग्राहकों के माइंडसेट को नहीं समझ पाना, इन सब वजहों से ये ग्राहकों के बीच पैठ नहीं बना पाती हैं.
जबकि इसके उलट टाटा मोटर्स, महिंद्रा और मारुति सुजुकी इस काम को बखूबी करती हैं. हुंडई और उसकी सिस्टर कंपनी किआ इस मामले में अपवाद हैं जो कोरियन होकर भी भारतीय मार्केट में अच्छी पकड़ बना चुकी हैं.