Tata Group:रतन टाटा के दौर में टाटा ग्रुप ने ऐसे पूरी दुनिया में लहराया परचम

08:28 PM Oct 10, 2024 | zoomnews.in

Tata Group: देश के दिग्गज कारोबारी रतन टाटा भले ही आज दुनिया में न हों लेकिन देशवासियों के दिल में वो हमेशा रहेंगे. रतन टाटा के साथ कारोबारी जगत में पूरा एक युग ही खत्म हो गया है. उनकी लीडरशिप में टाटा ग्रुप ने नमक से लेकर जहाज बनाने तक के बिजनेस किए हैं. यही नहीं हर घर में टाटा का कोई न कोई प्रोडक्ट भी इस्तेमाल हो रहा है. जिसके चलते टाटा ग्रुप की मार्केट वैल्यू भी बढ़ी और ये देश का सबसे बड़ा ग्रुप बन चुका है. ऐसे में आइए जानते हैं रतन टाटा के दौर में कैसे सरताज बन गया टाटा ग्रुप…

33 लाख करोड़ की हैसियत

टाटा ग्रुप की शुरुआत साल 1868 में एक ट्रेडिंग फर्म से हुई थी. आज 2024 में 160 साल बाद टाटा ग्रुप में करीब 100 से ज्यादा कंपनियां हैं. वहीं शेयर बाजार में टाटा ग्रुप की 29 कंपनियां लिस्टेड हैं. इन कंपनियों की मार्केट वैल्यू करीब 33 लाख करोड़ रुपये के करीब है. वहीं टाटा की वेबसाइट के मुताबिक टाटा ग्रुप ने देश को पहली बड़ी स्टील कंपनी, पहला लग्जरी होटल, और पहली देसी कंज्यूमर गुड्स कंपनी भी दी थी. टाटा ग्रुप ने ही देश की पहली एयरलाइन कंपनी टाटा एयरलाइंस भी दी है जो बाद में बदल कर एयर इंडिया हो गई. यही नहीं देश की आजादी से भी टाटा की पावर का बोलबाला था. देश आजाद होने से पहले ही देश को टाटा मोटर्स द्वारा बने ट्रक मिलने लगे थे.

रतन टाटा की पावर का कमाल

जब 1991 में रतन टाटा टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने तो उन्होंने दुनियाभर में पांव पसारने शुरू कर दिए. उनकी बदौलत कई विदेशी कंपनियां भारत आईं और टाटा ग्रुप को भी विदेशों में पहचान मिली. रतन टाटा की लीडरशिप में टाटा ग्रुप ने टेटली टी का अधिग्रहण किया. इसके अलावा आज हर किसी की जुबान पर छाने वाली इन्श्योरेंस कंपनी AIG के साथ उन्होंने बॉस्टन में ज्वाइंट वेंचर के तौर पर TATA AIG नाम की इन्श्योरेंस कंपनी शुरू की. इसके अलावा उन्होंने यूरोप की कोरस स्टील और JLR का भी अधिग्रहण किया.

बदलावों से मिली उड़ान

टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनने के बाद रतन टाटा ने मैनेजमेंट के पुराने रूल्स में बड़े बदलाव करके नए रूल्स लागू किए. उन्होंने समझा कि टाटा ग्रुप को बड़ा बनाने के लिए ग्रुप को एक दिशा की जरूरत है. उन्होंने सबसे पहले कंपनियों में टाटा संस की हिस्सेदारी बढ़ाकर कम से कम 26 फीसदी करने पर जोर दिया. इसके बाद उन्होंने ग्रुप में जोश भरने और एक दिशा देने की पहल की.

बदलाव लाने की कड़ी में रतन टाटा ने कुछ बिजनेस को बेचने का फैसला किया. उन्होंने सीमेंट कंपनी एसीसी, कॉस्मेटिक्स कंपनी लैक्मे और टेक्सटाइल बिजनेस बेच दिया गया. इसके अलावा उन्होंने ग्रुप कंपनियों से रॉयल्टी फीस लेनी शुरू कर दी. ये रॉयल्टी फीस टाटा नाम का इस्तेमाल करने के लिए होल्डिंग कंपनी टाटा संस को दी जाती है.

विदेशों में भी फैला कारोबार

रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के बिजनेस को देश ही नहीं विदेशों में भी फैलाने का काम किया. आज टाटा ग्रुप चाय से लेकर आईटी सेक्टर में बड़ा नाम बन गया है. लेकिन असलियत में टाटा का सपना साल 2009 में पूरा हुआ, जब टाटा मोटर्स ने देश में पहली सबसे सस्ती और अफोर्डेबल कार नैनो को मार्केट में लॉन्च किया. टाटा ने हर वर्ग के आदमी को देखकर कार को बाजार में उतारा और कार की सिर्फ एक लाख रुपए ही थी. हालांकि, कुछ कॉन्ट्रोवर्सी के चलते कार बाजार में उतनी चली नहीं.

होटल का आइडिया कहां से आया

भारत के कारोबारी और रतन टाटा के परदादा जमशेद जी टाटा जब मुंबई के सबसे महंगे होटल में गए, तब उनके उनके रंग की वजह से उन्हें होटल में नहीं घुसने दिया गया. उसी समय उन्होंने सोच लिया कि वे भारतीयों के लिए इससे भी अच्छा होटल बनाएंगे और 1903 में टाटा ग्रुप ने मुंबई में सबसे खूबसूरत ताज महल पैलेस होटल तैयार किया. यह मुंबई का पहला ऐसा होटल था जिसमें बिजली, अमेरिकन फैन और जर्मन लिफ्ट थी.

इसी तरह उन्हें लैंकशायर कॉटन मिल की भी क्षमता का अंदाजा उन्हें हुआ और चुनौती देते हुए उन्होंने 1877 में भारत की पहला कपड़ा मिल खोल दी. 1907 में उनके टाटा स्टील ने उत्पादन शुरू कर दिया.