Iltija Mufti Statement: जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी और पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती के हिंदुत्व पर दिए गए बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है। उनके बयान को लेकर बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री सहित कई नेताओं और धार्मिक संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
इल्तिजा का विवादित बयान
इल्तिजा मुफ्ती ने हिंदुत्व को नफरत का दर्शन बताया। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व और हिंदू धर्म में बड़ा अंतर है। हिंदुत्व को वीर सावरकर द्वारा 1940 के दशक में फैलाए गए विचारों से जोड़ते हुए इल्तिजा ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य हिंदुओं का वर्चस्व स्थापित करना है। उन्होंने यह भी कहा कि "जय श्री राम" का नारा अब रामराज्य से अधिक लिंचिंग जैसी घटनाओं का पर्याय बन गया है।
धीरेंद्र शास्त्री का पलटवार
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हिंदुत्व बीमारी नहीं, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए दवा है।" उन्होंने हिंदुत्व को जीवन जीने की एक सकारात्मक विचारधारा बताया, जो "वसुधैव कुटुंबकम" और "नर में नारायण" की भावना को बढ़ावा देता है। शास्त्री ने इल्तिजा पर व्यक्तिगत हमला करते हुए कहा कि उन्हें अपनी मानसिकता का इलाज कराने की जरूरत है।
बीजेपी की मांग: माफी और संयमित भाषा
जम्मू बीजेपी ने भी इस बयान को अपमानजनक बताते हुए आलोचना की है। बीजेपी नेता रविंदर रैना ने कहा, "राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इस तरह की भाषा का इस्तेमाल अस्वीकार्य है। इल्तिजा मुफ्ती को अपने बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए।"
हिंदुत्व और हिंदू धर्म की बहस
इल्तिजा मुफ्ती के बयान ने एक बार फिर हिंदुत्व और हिंदू धर्म के बीच अंतर को लेकर चर्चा को हवा दी है। हिंदू धर्म जहां सहिष्णुता, प्रेम, और करुणा का संदेश देता है, वहीं हिंदुत्व को राजनीतिक विचारधारा के रूप में देखा जाता है। इस विवाद ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नए सवाल खड़े किए हैं।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
इस पूरे प्रकरण ने आम जनता और राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर हिंदुत्व समर्थकों ने इल्तिजा के बयान को भारत की सांस्कृतिक एकता पर हमला बताया, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों ने इसे उनके विचार व्यक्त करने का अधिकार बताया।
निष्कर्ष
इल्तिजा मुफ्ती का बयान और उस पर आई प्रतिक्रियाएं इस बात का उदाहरण हैं कि धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दे भारतीय राजनीति में कितने संवेदनशील हैं। हिंदुत्व और हिंदू धर्म पर बहस अब केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और वैचारिक मंचों पर भी चर्चा का केंद्र बन चुकी है। इस प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या बयानबाज़ी से जुड़े विवादों को स्वस्थ संवाद में बदला जा सकता है?